नयी दिल्ली, 15 नवंबर (वार्ता) पत्रकारों पर किये गये एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयाी है कि देश में करीब 61 प्रतिशत पत्रकारों को अपनी खबरों अथवा उससे संबंधित तथ्यों के कारण कभी-न-कभी धमकी अथवा अन्य प्रकार के दबाव का सामना करना पड़ता है।
सर्वेक्षण के अनुसार देश और दुनिया में पत्रकारों पर बढ़ते हमलों के कारण अभिव्यक्ति की आजादी का खतरा भी बढ़ रहा है। मीडिया घरानों और समाचार के क्षेत्र में प्रभावी नियामक नहीं होने से स्थिति दिनों दिन और अधिक कठिन होती जा रही है।
गैर लाभकारी संगठन दि विजन फाउंडेशन और देश में पत्रकारों के प्रमुख संगठन नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट-इंडिया ने पत्रकारों की सुरक्षा और मीडिया समूहों के लिए सुरक्षा प्रावधानों पर एक अध्ययन एवं सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार की है,जिससे पत्रकारों पर हमलों अथवा प्रताड़ना के संदर्भ समझे जा सकें और समय रहते प्रभावी कार्ययोजना बनायी जा सके।
देशभर के पत्रकारों के बीच यह सर्वेक्षण तीन नवंबर से 14 नवंबर के दरमियान किया गया।
सर्वेक्षण में करीब 823 पत्रकारों ने हिस्सा लिया जिसमें 21 प्रतिशत महिलाएं शामिल हैं। सर्वे में 266 मीडियाकर्मी प्रिंट मीडिया समाचार-पत्र, पत्रिका, 263 ऑनलाइन मीडिया और 98 टीवी से संबद्ध रहे। देश में 2019 के दौरान चार पत्रकारों की हत्या कर दी गयी। इससे पहले 2018 में देश के पांच पत्रकारों को उनके काम के कारण अथवा काम के दौरान मार डाला गया। सर्वेक्षण में शामिल मीडियाकर्मियों का आकलन है कि राजनीतिक स्थितियों और विचारों में भिन्नता के कारण पत्रकारों को मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है।
गौरतलब है कि एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के मामले में साल 2008 से 2018 का समय सबसे खराब रहा। पत्रकारों को उनके काम के कारण हमलों का शिकार होना पड़ा।
सर्वे में शामिल होने वाले करीब 74 प्रतिशत पत्रकारों का कहना है कि उनके मीडिया संस्थान में समाचारों के प्रकाशन के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्यों की सटीकता है। तेरह प्रतिशत पत्रकारों का कहना है कि संस्थान की प्राथमिकता विशेष प्रकार के समाचारों का प्रकाशन है। करीब 33 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि 21वीं सदी में पत्रकारिता के सामने सबसे
बड़ी चुनौती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बढ़ते हमले हैं। जबकि करीब 21 प्रतिशत पत्रकारों का मानना है कि फर्जी और भुगतान समाचार आने वाले समय की सबसे बड़ी चुनौती बनेंगे।
करीब 18 प्रतिशत पत्रकारों का कहना है कि समाचार बेवसाइट की बेतहाशा वृद्धि से मुख्यधारा के अखबार और मीडिया की उपेक्षा बढ़ रही है, जिससे लोगों का समाचारों पर भरोसा कम हुआ है। यह पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर संकट है।
किसी प्रकार की धमकी अथवा प्रताड़ना के शिकार करीब 44 प्रतिशत पत्रकारों ने बताया कि इस प्रकार के मामलों में उन्होंने इसकी शिकायत अपने मीडिया संस्थान के अधिकारियों से की जबकि केवल 12 प्रतिशत पत्रकारों ने इस प्रकार की धमकी की सूचना पुलिस अथवा कानून प्रवर्तक एजेंसियों की दी। सर्वेक्षण में शामिल करीब 61 प्रतिशत पत्रकारों को कभी -न -कभी हमले अथवा धमकी झेलनी पड़ी जबकि 76 प्रतिशत पत्रकारों के मीडिया संस्थाान में सुरक्षा संबंधी प्रावधान नहीं हैं अथवा उन्हें इस प्रकार के सुरक्षा प्रशिक्षण के अनुपालन या प्रोटोकाल संबंधी कोई जानकारी नहीं है।
अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने एवं सर्वेक्षण करने वाले पत्रकार उमेश सिंह ने बताया कि बड़े शहरों और बड़े अखबारों के पत्रकारों पर हमले अथवा धमकी की घटनाओं की खबरें अक्सर मीडिया की सुर्खियां नहीं बन पाती हैं। मुख्यधारा का मीडिया क्षेत्रीय अथवा गैर-अंग्रेजी समाचार संकलन करने वाले पत्रकारों की उपेक्षा करता है, जिससे यह चर्चा के केन्द्र में नहीं आ पाता। यह बहुत खराब स्थिति है। सरकार को तुरंत एक प्रभावी नियामक बनाने और संयुक्त राष्ट्र की कार्यवाही योजना को क्रियान्वित करने की जरूरत है।
श्रवण आशा
वार्ता