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लोकरुचि


पन्ना में बाघों का ही नहीं दुर्लभ चौसिंगा का भी बढ़ रहा कुनबा

पन्ना में बाघों का ही नहीं दुर्लभ चौसिंगा का भी बढ़ रहा कुनबा

पन्ना, 14 जुलाई (वार्ता) मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में सिर्फ बाघों का ही कुनबा नहीं बढ़ा अपितु यहां के सुरक्षित वन क्षेत्र में शर्मीले स्वभाव वाले नाजुक आैर खूबसूरत वन्य प्राणी चौसिंगा की भी अच्छी खासी तादाद है।

चौसिंगा प्रजाति का हिरण भारत के अलावा दुनिया के अन्य किसी भी देश में प्राकृतिक रूप से नहीं पाया जाता है। सिर्फ नेपाल में बहुत ही कम संख्या में छिटपुट रूप से चौसिंगा मिलता है। तेजी के साथ विलुप्त हो रहे इस प्रजाति की सबसे अच्छी संख्या पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में है। आश्चर्य की बात यह है कि इस लुप्त प्राय प्रजाति के बारे में बहुत ही कम लोगों को यह पता है कि एक नाजुक और खूबसूरत वन्य प्राणी लुप्त होने की कगार पर है।

लुप्त हो रहे चौसिंगा के आचार-व्यवहार, आदतों और संख्या के संबंध में पहली बार यहां कौस्तुभ शर्मा ने गहन अध्ययन व शोध किया था, तब इस अनूठे वन्य जीवन के बारे में लोगों को जानकारी हुई। शोधार्थी कौस्तुभ शर्मा के मुताबिक चौसिंगा का महत्व टाइगर से कम नहीं है। चूँकि यह प्रजाति अन्यत्र कहीं नहीं पाई जाती, इसलिये वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 के अन्तर्गत बाघ व चौसिंगा को एक ही श्रेणी में रखा गया है।

श्री शर्मा ने बताया कि खुशी और गौरव की बात है कि दुनिया से लुप्त हो चुके वन्य प्राणी की यह दुर्लभ प्रजाति पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में अभी भी अच्छी खासी संख्या में है। वर्ष 2009 में पन्ना का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप यहां उजड़ चुके बाघों के संसार को फिर से आबाद करने के लिये बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू की गई थी, जिसे चमत्कारिक सफलता मिली।

मौजूदा समय पन्ना का जंगल बाघों से आबाद हो चुका है और यहां पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र सहित बफर व आस-पास के जंगल में लगभग 55 बाघ स्वच्छन्द रूप से विचरण कर रहे हैं। प्रकृति व वन्य जीव प्रेमियों का यह

मानना है कि चौसिंगा की उपलब्धता के कारण आने वाले समय में पन्ना टाइगर रिजर्व की ख्याति पूरी दुनिया में फैलेगी और पर्यावरण प्रेमियों व पर्यटकों का आकर्षण इस पार्क की ओर बढ़ेगा।

कौस्तुभ शर्मा की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में (543 वर्ग किमी.) उस समय 600 से भी अधिक चौसिंगा पाये गये थे। मौजूदा समय इनकी संख्या कितनी है, इस संबंध में अधिकृत रूप से गणना के कोई आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वन अधिकारियों के बताये अनुसार चौसिंगा की संख्या में इजाफा हुआ है।

जानकारी के मुताबिक यह सबसे प्राचीन प्रजातियों में से एक है, ऐसा कहा जाता है कि नीलगाय व चौसिंगा दोनों ही प्राचीन प्रजाति के वन्य प्राणी हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में नीलगाय, चिंकारा व चौसिंगा का एक ही जगह पर प्रचुर संख्या में पाया जाना आश्चर्यजनक और दुर्लभ घटना है। कोमल और नाजुक सा दिखने वाला यह वन्य प्राणी इतना अहिंसक होता है कि अभी तक इन्हें लड़ते हुये नहीं देखा गया।

प्राय: मनुष्य की आबादी वाले क्षेत्रों से दूर रहने वाला यह वन्य प्राणी खुले शुष्क पतझड़ी वनों के ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाके अधिक पसंद करता है। पौधों की कोमल पत्तियां, आँवला तथा महुआ का फूल इसका पसंदीदा भोजन है। हिंसक पशुओं से बचने का मुख्य हथियार इनका छिपने की कला में पारंगत होना है। लम्बी दूरी का धावक न होने के कारण चौसिंगा अपना बचाव छिपकर करता है।

यह 30 से 40 मीटर की दूरी तक ही आमतौर पर दौड़ता है और फिर रुककर छिप जाता है। इस तरह से हिंसक जानवरों को चकमा देकर चौसिंगा अपने प्राणों की रक्षा करता है। इस अनूठे वन्य जीव की एक विशेषता यह भी है कि यह एकाकी प्राणी है और यदा कदा ही दो-चार के समूह में दिखता है। यह अपने इलाके में ही रहना पसंद करता है तथा ज्यादा विचरण नहीं करता।

प्रजनन काल (मई से जुलाई) के दौरान नर चौसिंगा अन्य नरों के प्रति आक्रामक भी हो जाता है। यहां यह जानना जरूरी है कि सिर्फ नर चौसिंगा में ही सींग होता है। जिस चौसिंगा के आगे के सींग बड़े होते हैं, उसमें प्रजनन की क्षमता अधिक होती है। नर चौसिंगा में 15 माह के बाद ही सींग बढऩा शुरू होता है तथा मादा चौसिंगा आमतौर पर दो शावकों को जन्म देती है। बच्चे जब तक बड़े नहीं हो जाते तब तक सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें पृथक-पृथक कुछ दूरी पर रखकर पालती है। चौसिंगा के बच्चे अपनी माँ के साथ लगभग एक साल तक रहते हैं।

सं बघेल

वार्ता

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