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बीकानेर की तीन दशक पुरानी रेल बाईपास योजना अभी भी उलझी

बीकानेर, 20 अक्टूबर (वार्ता) राजस्थान में बीकानेर शहर की तीन दशक पुरानी रेल बाईपास का निर्णय राज्य में शासन द्वारा बार-बार किए जाने के बावजूद प्रशासन की नौकरशाही के जंजाल में अभी भी उलझा हुआ है।
बीकानेर में रेल बाईपास बनाने को लेकर एडवोकेट पूर्व विधायक आर.के.दास गुप्ता एवं व्यापार उद्योग मंडल के संरक्षक कन्हैयालाल बोथरा कलेक्टर नमित मेहता से मिले। गुप्ता ने बताया कि रेल बाईपास का निर्माण एक वर्ष की समय अवधि में होना संभव है और जब तक रेल बाईपास का निर्माण नहीं हो तब तक कुछ नए सुझाव भी कलेक्टर को दिए गए हैं। उन्होंने बताया कि इस महत्वपूर्ण समस्या को लेकर सर्वदलीय जन आंदोलन आज से 29 वर्षों पूर्व हुआ था। उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने तत्कालीन रेल मंत्री जाफर शरीफ को बीकानेर में मौका दिखाकर रेलवे के शीर्ष अधिकारियों के बीच बैठक कराकर रेलमंत्री ने मंत्रालय के इस निर्णय की घोषणा की थी।
इस दौरान श्री शेखावत ने रेल बाईपास के लिए वांछित जमीन रेलवे को मुफ्त में दिए जाने की घोषण भी की थी। उसके बाद प्रस्ताव रखा गया, सर्वे हुआ और फिर मामला नौकरशाही के जंजाल में फंसता गया। श्री गुप्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पहले कार्यकाल वर्ष 2002 में आरयूआईडीपी के तहत 60 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा लेकिन राज्य में शासन पलटने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस रुपए का उपयोग अन्य हिस्से में कर लिया। हालांकि इस दौरान रेलवे ने भी स्वीकृत कार्य तौर पर वर्ष 2003-04 के लिए अपनी पींक बुक में रेल बाईपास योजना को डिपोजिट वर्ग में शामिल कर लिया और फिर राज्य सरकार ने एक करोड़ रुपया दे भी दिया लेकिन मामला फिर नौकरशाही ने उलझा दिया।
श्री गुप्ता ने बताया कि वर्ष 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती राजे ने केईएम रोड एवं एक ही रेलवे क्रॉसिंग गेट सांखला फाटक पर ऐलीवेटेड रोड बनाने की योजना स्वीकार कर ली एवं नेशनल हाईवे ऑथोरिटी के सहयोग से इसको मूर्त रुप देने के लिए कार्यवाही आरंभ कर दी लेकिन जन आंदोलन हुआ और अधिकांश व्यापारी वर्ग ने इसका विरोध किया। उच्च न्यायालय राजस्थान जोधपुर में जनहित याचिका दायर की गयी एवं खण्डपीठ ने इस एलीवेटेड रोड योजना को स्टे कर रखा है एवं मामला माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन चल रहा है।
संजय रामसिंह
वार्ता
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