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बुंदेलखंड में होने लगी विकास की सुगबुगाहट

बुंदेलखंड में होने लगी विकास की सुगबुगाहट

 


झांसी 29 दिसम्बर (वार्ता) राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में दशकों से बदहाली का दंश झेलने वाले बुंदेलखंड में  भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र और प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं से विकास की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है हालांकि पृथक बुंदेलखंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलनरत एक तबका अब भी सरकार की योजनाओं से संतुष्ट नहीं दिखता है।             

      सरकार ने वर्ष 2018 के दौरान बुंदेलखंड के चहुंमुखी विकास और स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न कल्याणकारी और विकासपरक योजनाओं की शुरूआत की । क्षेत्र की पानी, बेरोजगारी, पलायन जैसी मूलभूत समस्याओं के समाधान के लिए सबसे पहले दिसम्बर 2017 में प्रदेश की नयी औद्योगिक नीति में बुंदेलखंड के लिए विशेष प्रावधान किये गये। इस नीति के तहत पानी की कमी के कारण खेती की बड़ी संभावनाओं की दृष्टि से सीमित संभावनाओं वाले इस क्षेत्र के औद्योगिक विकास का खाका सरकार ने खींचा। इस क्षेत्र में डिफेंस कॉरिडोर, एक्सप्रेस वे और उद्योगों की स्थापना के लिए विशेष छूट और कागजी कार्रवाई में कमी लाकर प्रक्रिया सरलीकरण के काम किये  गये ।

      एक नये निवेश मित्र पोर्टल की शुरूआत की गयी है जिसमें लगभग 70 सेवाओं और 20 विभागों को ऑनलाइन कर दिया गया है । कोई उद्यमी के उद्योग विशेष की स्थापना का फार्म भरते ही उसके लिए आवश्यक चीजों की जानकारी स्वत: मुहैया करा दी जाती है । इस तरह उद्योग की स्थापना से पहले अनापत्तिप्रमाण पत्र प्राप्त करने तथा अन्य स्वीकृतियों के लिए अलग अलग विभागों में चक्कर लगाने जैसी चीजें पूरी तरह से खत्म कर दी गयीहै। प्रक्रिया सरलीकरण की इस कवायद से उद्योगों की स्थापना का काम आसान हुआ है और इससे बुंदेलखंड में बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन और पलायन रोकने की पहल की गयी।

     निजी क्षेत्र की कंपनी आरएसपीएल ने यहां 60 करोड़ का निवेश किया है और इसमें लगभग 800 लोगों को रोजगार दिया गया है। बबीना में इंडो गल्फ लगभग 150 करोड का निवेश कर रही है, जहां 800 से 1000 लोगों को रोजगार दिया जायेगा। पतंजलि 1200 करोड का निवेश इस क्षेत्र में करने जा रहा है। वैद्यनाथ ने 148 करोड़ के निवेश पर काम शुरू कर दिया है। इसके अलावा छोटे उद्यमी भी निवेश के लिए कार्रवाई शुरू कर चुके हैं।

     इस तरह बुंदेलखंड में बडे निवेश और उद्यमो की स्थापना से बडे पैमाने पर रोजगार सृजन कर पलायन रोकने की सरकार ने रणनीति बनायी है। इतना ही नही “ एक जिला, एक उत्पाद” योजना के तहत प्रदेश के 75 जिलों से एक एक उत्पाद को चुनकर उस क्षेत्र से जुड़े छोटे कामगारों को प्रशिक्षण, धन और अन्य सुविधाएं मुहैया कराकर उनके उत्पाद की बिक्री तक की व्यवस्था की गयी है। इस योजना का भी उद्देश्य बड़े पैमाने पर लोगों को स्वरोजगार मुहैया कराना और इसके जरिए उनके आर्थिक स्तर में सुधार लाना है।

इसके अलावा जिले के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के स्थानीय दस्तकारों एवं पारंपरिक कारीगरों के विकास के लिए सरकार ने विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना संचालित करने का निर्णय लिया। इस योजना के तहत पारंपरिक कारीगर बढ़ई, दर्जी, टोकरी बुनकर, नाई, सुनार, लोहार, कुम्हार, हलवाई, मोची, राजमिस्त्री एवं हस्तशिल्पियों में आजीविका के संसाधनों का सुदृढ़ीकरण कर उनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है।

    इन सभी योजनाओं से सरकार की मंशा समाज के सभी तबकों को न केवल रोजगार मुहैया कराने बल्कि पुश्तैनी कार्यों में लगे कामगारों को भी आर्थिक रूप से सुदृढ बनाने की है। औद्योगिक विकास के लिए सरकार बुंदेलखंड में यूं तो काफी प्रयास शुरू कर चुकी है लेकिन यह सभी योजनाएं अभी काफी प्रारंभिक स्तर पर हैं ।

    डिफेंस कॉरिडोर और एक्सप्रेस वे या बडे उद्योगों की स्थापना ऐसे विषय है कि इनमें बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार तो जरूर मिलेगा लेकिन व्यवहारिक रूप से ऐसा होने में कुछ  समय लगेगा हालांकि इन पर काम शुरू होते ही अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलना भी शुरू हो जायेगा लेकिन सही रूप से इसके लाभ कितने लोगों को मिल पाये हैं। इसका पता इन योजनाओं के पूरा होने के बाद ही चल पायेगा लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि सरकार ने प्रयास शुरू कर दिये हैं जिसके परिणाम चार से पांच साल में पूरी तरह से मिल पायेंगे।

    बुंदेलखंड मे उद्योगों के विकास को बढावा देने के साथ साथ किसानों के लिए भी स्थितियां ठीक करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और पर्यावरण ,पानी की कमी और लंबे ग्रीष्मकाल के अनुसार किसानों को खेती से लाभ पहुंचाने के लिए कई प्रकार के प्रयास सरकारी स्तर पर किये जा रहे हैं। शासन के स्तर पर इस क्षेत्र में जैविक खेती और कम पानी वाली फसलों  को लगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी तरह से उपलब्ध पानी की कम से कम बरबादी को ध्यान में रखते हुए किसानों को स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई के लाभों के बारे में न केवल बताया जा रहा है बल्कि इसके इस्तेमाल के लिए जरूरी प्रशिक्षण और आवश्यक साजोसामान उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जा रही है।

किसानों का फसल का उचित मूल्य दिलाने के लिए सरकारी क्रय केंद्रों की व्यवस्था की गयी है। कृषि मे इस्तेमाल होने वाले यंत्रों की खरीद के लिए लघु, सीमांत, महिला और अनुसूचित जाति व जनजाति के किसानों को 50 फीसदी जबकि अन्य किसानों को 40 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गयी है। कस्टम हायरिंग केंद्रों की स्थापना पर 40 प्रतिशत, फार्म मशीनरी बैंक की स्थापना पर 80 प्रतिशत, फसल अवशेष प्रबंधन के लिए तीन या उससे अधिक यंत्रों की खरीद पर 80 प्रतिशत तथा एक या दो यंत्रों की खरीद पर 50प्रतिशत का अनुदान,प्रमाणित बीज की खरीद पर खरीफ में 80 प्रतिशत और रबी में 60 प्रतिशत अनुदान की व्यवस्था की गयी है।

    इसके अलावा मिट्टी की नि:शुल्क जांच, जल संरक्षण के लिए खेत तालाब योजना के तहत 50 प्रतिशत अनुदान , स्प्रिंकलर सेट वितरण में लघु और सीमांत किसानों को 90 प्रतिशत और सामान्य किसानों को 40 प्रतिशत अनुदान , जैविक उर्वरकता बढाने के लिए हर गांव में एक वर्मी कम्पोस्ट यूनिट पर छह हजार रूपये तक का अनुदान जैसी व्यवस्थाएं किसानों के लिए की गयी हैं।

    किसानों के लिए बेहद चिंतित नजर आने वाली सरकार के इतनी व्यवस्थाएं किये जाने के बाद भी उनके चेहरों पर खुशी की लहर नजर नहीं आ रही है । इससे साफ होता है कि यह प्रयास कहीं न कहीं किसानों की नजर में नाकाफी साबित हो रहे हैं।

    गर्मियों में पानी की जबरदस्त किल्लत से जूझ रहे किसानों के लिए बड़ी संख्या में तालाब खुदवाने की योजना बनायी गयी थी लेकिन अच्छी बरसात ने जमीन और खेतों की न केवल प्यास बुझायी बल्कि भूमिगत जलस्तर को भी ऊपर कर दिया । इस कारण पानी की भारी किल्लत की मार झेल रहे बुंदेलखंड में  किसानों की इस बड़ी समस्या का प्रकृति ने ही समाधान कर दिया लेकिन तालाब और जल संचय की अन्य व्यवस्थाओं की योजनाएं हवा हवाई ही रहीं जमीनी स्तर पर इनके लिए कोई प्रभावी काम नजर नहीं आ रहा है।

किसानों के अनुसार जहां तक उनको इस सरकार के आने के बाद हुए लाभ का सवाल है तो न तो उन्हें पिछली सरकारों से कोई लाभ मिला और न ही इस सरकार से।  किसानों का आरोप है कि पुरानी नीतियों को ही नया अमली जामा पहनाकर इस सरकार ने भी आगे बढाया है । इस कारण जैसा पहले की सरकारों में उनकी स्थिति थी वैसी ही इस सरकार के कार्यकाल में भी है जबकि पिछली सरकारों से बड़ी नाउम्मीदी हाथ लगने के बाद इस सरकार को इतने बड़े समर्थन के साथ सत्ता सौंपी गयी थी लेकिन अब भी उनकी हालत जस की तस है।

    किसानों की नाराजगी भांपकर और बुंदेलखंड के विकास को गति देने के लिए सरकार ने अब बुंदेलखंड विकास बोर्ड के गठन की घोषणा की है जिसका अध्यक्ष स्वंय मुख्यमंत्री या उनके द्वारा नामित कोई व्यक्ति होगा। यह एक तरह का सलाहकारी बोर्ड होगा जिसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री या उनके द्वारा नामित व्यक्ति होगा। दो उपाध्यक्ष 12 सरकारी और 11 गैर सरकारी सदस्य होंगे। यह बोर्ड हर छह माह में समीक्षा करेगा। इस तरह बुंदेलखंड के विकास को लेकर मुख्यमंत्री की गंभीरता यूं ही परिलक्षित होती है कि इस बोर्ड से उन्होंने खुद को सीधा जोडा है। 

    बुंदेलखंड  के विकास के लिए सरकार की ओर से की जा रही इस सारी कवायद  अलग राज्य की मांग को लेकर पिछले एक महीने से भी अधिक समय से आंदोलन कर रहे राज्य समर्थकों की नजर मे नाकाफी साबित हो रही है।  बुंदेलखंड निर्माण मोर्चा (बुनिमो)की अगुवाई में बड़ी संख्या में कई राज्य समर्थक संगठन आंदोलन कर रहे हैं । बुनिमो के अध्यक्ष भानु सहाय ने कहा कि बुंदेलखंड के लिए इस तरह की जा रही छोटी छोटी कवायदों या विकास बोर्ड के गठन से बुंदेलियों को किसी तरह का स्थायी लाभ नही होने जा रहा है। ऐसा ही एक निगम पिछले 40 साल से अधिक समय से बना हुआ है लेकिन इससे कितना लाभ बुंदेलखंड को मिला यह किसी से छिपा नहीं है । हमारा विकास अलग राज्य बनाने से ही होगा जो वादा केंद्र और राज्य सरकार ने बुंदेलखंडवासियों से किया था उसे पूरा करें नहीं तो इसके परिणाम सरकार को 2019 के चुनाव में भुगतने होंगे।

    सरकार लगातार इस प्रयास में लगी है कि इस क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए हर संभव प्रयास किये जाएं लेकिन सरकार के इन प्रयासों से आमजन कितना संतुष्ट है इसका पता आगामी 2019 के चुनाव परिणामों के सामने आने पर ही साफ हो पायेगा। 

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