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बचपन से ही जरूरी है धूप और विटामिन-डी

बचपन से ही जरूरी है धूप और विटामिन-डी

नयी दिल्ली 16 जनवरी(वार्ता) चारों तरफ शीशे से बंद पूर्णतः एयरकंडीशनिंग वाले घर और दफ्तर भले ही आरामदायक महसूस होते हों, लेकिन ये आपकी हड्डियों को खोखला बना रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक साबित हो सकता है।

वरिष्ठ अस्थि शल्य चिकित्सक डॉ. राजू वैश्य ने देश के अलग-अलग शहरों में जोड़ों में दर्द एवं गठिया (ऑर्थराइटिस) के एक हजार मरीजों पर अध्ययन करने पर पाया कि इनमें से 95 प्रतिशत मरीजों में विटामिन-डी की कमी है जिसका एक मुख्य कारण पर्याप्त मात्रा में धूप नहीं मिलना है जो विटामिन-डी का मुख्य स्रोत है।

आर्थराइटिस केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. वैश्य ने यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि विटामिन-डी का मुख्य स्रोतसूर्य की रोशनी है, जो हड्डियों के अलावा पाचन क्रिया में भी बहुत उपयोगी है। व्यस्त दिनचर्या और आधुनिक संसाधनों के कारण लोग तेज धूप सहन नहीं कर पाते। सुबह से शाम तक आधुनिक कार्यालयों में रहते हैं। खुले मैदान में घूमना-फिरना और खेलना भी बंद हो गया। इस कारण धूप के जरिये मिलने वाला विटामिन-डी शरीर तक नहीं पहुंच पाता। जब भी किसी को घुटने या जोड़ में दर्द होता है, तो उसे लगता है कैल्शियम की कमी हो गई। विटामिन-डी की ओर ध्यान ही नहीं जाता।

डॉ. वैश्य के अनुसार अगर कैल्शियम के साथ-साथ विटामिन-डी की भी समय पर जांच करवा ली जाए तो ऑर्थराइटिस को बढ़ने से रोका जा सकता है। आम तौर पर माना जाता है कि ऑर्थराइटिस (गठिया रोग) की मुख्य वजह कैल्शियम की कमी है लेकिन ऐसा नहीं है। विटामिन-डी की कमी भी इसकी बड़ी वजह है।

उन्होंने कहा कि भारतीय लोगों में विटामिन-डी की कमी का एक कारण यह भी है कि सांवली रंग की त्वचा धूप को कम अवषोशित करती है जबकि गोरी रंग की त्वचा धूप को अधिक अवषोशित करती है। इस कारण से गोरी रंग की त्वचा वाले लोग कम समय भी धूप में रहें तो विटामिन-डी की कमी पूरी हो जाती है। इसके अलावा, एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों में लोग आहार के साथ विटामिन-डी एवं कैल्शियम के सप्लीमेंट भी लेते हैं इस कारण वहां लोगों को विटामिन-डी एवं कैल्शियम की कमी पूरी हो जाती है जबकि हमारे देश में ऐसा नहीं है।

बचपन में खान-पान की गलत आदतों के कारण कैल्शियम की कमी होने से आॅर्थराइटिस के अलावा ओस्टियोपोरोसिस हाेने की संभावना बहुत अधिक होती है। ओस्टियोपोरोसिस में कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों का घनत्व एवं अस्थि मज्जा बहुत कम हो जाता है। साथ ही हड्डियों की बनावट भी खराब हो जाती है जिससे हड्डियां अत्यंत भूरभूरी और अति संवेदनशील हो जाती हैं। इस कारण हड्डियों पर हल्का दबाव पड़ने या हल्की चोट लगने पर भी वे टूट जाती हैं। ओस्टियोपोरोसिस को साइलेंट डिजीज भी कहा जाता है। यह इतना खतरनाक रोग है कि इस रोग के गंभीर रूप लेने और हड्डियों में अचानक फ्रैक्चर होने से पहले इसका तनिक भी आभास नहीं होता। इस घातक रोग से बचने के उपाय कम उम्र में ही करने की जरूरत है।

डाॅ. वैश्य के अनुसार अधिकांश लोगों में 18 से 20 वर्ष की उम्र तक उनकी हड्डियों का घनत्व अधिकतम स्तर तक पहुंच जाता है। इस उम्र तक हड्डियों को एक मजबूत आधारशिला नहीं दी गई, तो आने वाले वर्षों में परेशानी आ सकती है। महिलाओं में 50 वर्ष की उम्र के पश्चात् हर साल एक से दो प्रतिशत तक हड्डियों का घनत्व घटता है जबकि पुरुषों में 60 से 65 वर्ष की उम्र के बाद 0.5 से एक प्रतिशत की दर से हड्डियों का घनत्व घटता है। अल्प घनत्व का मतलब है कि जटिल फ्रैक्चर की अत्यधिक संभावना। हर व्यक्ति को अपने आहार में कैल्शियम, प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित उचित खुराक लेनी चाहिए। इस आदत को स्कूल उम्र से ही शुरू कर देना चाहिए ताकि शिक्षक यह सुनिश्चित कर सकें कि हर बच्चा दिन भर में उचित पोषक तत्व ले रहा है। महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों में अधिकतर नुकसान पहले से ही हो चुका होता है, इसलिए उन्हें कैल्शियम, बाईफास्फोनेट और पैराथाइरॉयड होर्माेन के रूप में मिनिस्कल सहारे की ज़रूरत होती है। समग्र स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना और धूप के संपर्क में रहना हर किसी के लिए अनिवार्य है।

वार्ता

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