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बदहाली का शिकार है ऐतिहासिक पक्का तालाब

बदहाली का शिकार है ऐतिहासिक पक्का तालाब

इटावा, 16 जुलाई (वार्ता) अंग्रेज हुक्मरानो के आन, बान और शान का प्रतीक रहा ऐतिहासिक पक्का तालाब अफसरशाहों के उदासीन रवैये की भेंट चढ़ कर अपनी चमक खो चुका है।   


      इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया पक्का तालाब में नौका बिहार का आनंद लेती थी। आजादी के बाद ऐतिहासिक तालाब की देखरेख स्थानीय प्रशासन के जिम्मे रही जिसने मरम्मत पर होने वाले खर्च के नाम पर लाखों रूपये के वारे न्यारे किये लेकिन समय के साथ करीब दो सदी पुराने तालाब की रंगत शनै. शनै. फीकी पड़ती गयी और आज कीचड़ और काई से लबरेज यह धरोहर अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है। 

    लोगो के लिए आर्कषण का केंद्र रहने वाले तालाब के फुब्बारे बंद हो गए है वही दूसरी ओर तालाब के चारो ओर लगाई लाइट भी बंद हो गयी है । पानी में पसरी गंदगी से जैविक आक्सीजन में कमी के चलते जलीय जीव भी तालाब छोड़ कर जा चुके हैं। इस दुर्दशा के चलते सुबह व शाम के समय तालाब के आसपास घूमने वाले लोगों की संख्या भी कम हो रही है।   

     वर्ष 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के बाद साल 2014 में पूर्व पालिका अध्यक्ष कुलदीप गुप्ता ने पक्का तालाब के सौंदर्यीकरण का जिम्मा उठाया । साथ ही पानी व पत्थर के बीच खाली जगह पर पेड़ पौधे भी लगाए गए । साथ ही 40 लाख रुपए की लागत से फुब्बारे भी लगाये गये ।

    कुछ दिनों बाद ही तालाब के फुव्वारे बंद हो गए और धीरे धीरे यह दुर्दशा की ओर बढ़ने लगा। आसपास के लाेग कूड़े को तालाब में फेंकने लगे जिससे यहां पानी भी खराब हो गया और यहां रहने वाले बतक व अन्य जलीय जीव गायब हो गए । स्थिति यह है कि अब पानी में दुर्गंध आ रही है लेकिन इसके बावजूद इसकी साफ-सफाई पर किसी का ध्यान नहीं है । पालिका के संरक्षण में आने के बावजूद तालाब के प्रति उदासीनता से लोग परेशान हैं ।

वर्ष 2014 में पालिका द्वारा पक्के तालाब की सतह को कंक्रीट के जरिए पक्का कर दिया गया जिसके बाद से तालाब में पानी रिचार्ज की सुविधा खत्म हो गई है हालांकि दावा किया गया था कि वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के जरिए पानी रिचार्ज की सुविधा पानी में मौजूद है । यही कारण है कुछ दिनों बाद तालाब का पानी कम हो जाता है और इसमें बार-बार पानी टयूबबैल के जरिए भरा जा रहा है।

     पक्का तालाब के बीच में लगे अशोक स्तंभ पर एक गोल रनिंग गुब्बारा लगाया गया था इसके अलावा चार अलग- अलग कोनों पर समरपंप भी लगाए गए थे कुछ ही दिनों बाद बंद हो गए । ऐसे में इनसे होने वाले आक्सीडेशन के कारण यहां पर रहने वाली जलीय जीव विलुप्त हो गए ।पक्का तालाब अपने तरह का एक विशेष तालाब है । यह अंग्रेजों के जमाने से स्थित है।

    इसके एक किनारे पर ब्रिटिश कालीन मेमोरियल हाल बना हुआ है, वहीं श्री साईंधाम के साथ शिवालय, हनुमान मंदिर सहित अनेक मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बने हुए हैं। यहां हर सुबह अनेक लोग भ्रमण के लिए आते हैं, वहीं आस्था से जुड़े लोगों का मेला सा लगा रहता है।ब्रिटिश शासन काल में महारानी विक्टोरिया के भारत आगमन पर विक्टोरिया मैमोरियल की स्थापना की गई थी। इसके पास बने प्राचीन तालाब को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया था।   

      समय के साथ बदहाल हुए पक्के तालाब को 2003 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने सौन्दर्यीकरण कराने के लिए चुना था जिसके बाद तालाब का सौन्दर्यीकरण भी कराया गया था लेकिन सरकार जाने के बाद रुके हुए अधूरे निर्माण से व्यवस्थाएं बिगड़ गई। अब बार फिर नगर पालिका परिषद ने इस तालाब को पर्यटन स्थल बनाने के लिए काम शुरू किया है।

महारानी विक्टोरिया के नाम पर जिले के रजवाड़ा व धनाढ्य घरानों ने शहर के पक्का तालाब के किनारे विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का निर्माण कराया । जब ब्रिटिश सरकार ने रजवाड़ों को भारत दौरे पर आ रहीं इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को खुश करने की सलाह दी। पक्का तालाब के किनारे न सिर्फ आजादी की लड़ाई के रूप में बल्कि कुछ अन्य स्मृतियों के साथ इसे संजोया गया है।

        15 अगस्त 1957 को अंग्रेजी हुकूमत की यादों को मिटाने के लिए विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का नाम बदलकर कमला नेहरू हॉल रखा गया और पक्के तालाब के बीचों-बीच अशोक स्तम्भ स्थापित कर दिया गया। यह निशानी थी कि भारत अब आजाद है ।

     इटावा की नगर पालिका अध्यक्ष नौशाबा खान का कहना है कि ऐतिहासिक पक्का तालाब इटावा नगर की धरोहरो मे से मुख्य मानी जाती है । इसकी बदहाली को दूर करने की दिशा मे सतही तौर पर काम किया जायेगा । अभी तक जो भी कार्य यहॉ पर कराये गये वो तकनीकी तौर पर पूरी तरह से सही नही थे नतीजे के तौर पर वो एक भी कारगर नही हो सके ।

    इटावा के के.के.कालेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डा.शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि यह पक्का तालाब आजादी के वक्त का ना केवल निर्मित है बल्कि इससे इटावा की पहचान बनी हुई है । जिम्मेदार संस्थाओ को इस ऐतिहासिक तालाब की बदहाली दूर करने की दिशा मे सक्रिय रह कर काम करने की जरूरत है।

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