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भारत भू-सांस्कृतिक क्षेत्र न कि भू-राजनीतिक : प्रो. मिश्र

भारत भू-सांस्कृतिक क्षेत्र न कि भू-राजनीतिक :  प्रो. मिश्र

दरभंगा, 28 नवम्बर (वार्ता) प्रख्यात इतिहासकार प्रो. रत्नेश्वर मिश्र ने भूमण्डलीकरण के युग में राष्ट्रवाद पर चर्चा को विडम्बनापूर्ण लेकिन अप्रत्याशित नहीं बताते हुए कहा कि भारत की अवधारणा वस्तुतः मात्र राष्ट्र या राज्य की नहीं है, बल्कि एक सभ्यता की है।

प्रो. मिश्र ने शनिवार को यहां महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की 113 वीं जयंती समारोह के अवसर पर आयोजित कामेश्वर सिंह स्मृति व्याख्यान में 'राष्ट्रवाद का भारतीय संदर्भ : ऐतिहासिक आयाम' विषय पर अपने संबोधन में कहा कि वर्ष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जब राष्ट्रीय रूप दिया जाने लगा तो वह अभिजन तक सीमित रही लेकिन शीघ्र ही गांधीजी के अभ्युदय के बाद सामान्य जन भी इससे जुड़े। भारत औपनिवेशिक शासन काल में आधुनिक अर्थों में राष्ट्र का रूप ले सका, लेकिन अभी भी विद्वान इसे अप्राकृतिक राष्ट्र, बिना राष्ट्रीयता के राष्ट्र अथवा बहुराष्ट्रीय राज्य जैसी संज्ञाओं से अभीहित करते हैं।

इतिहासकार ने कहा कि वैसे, जन चेतना में राष्ट्र किसी न किसी रूप में सिंधु और वैदिक सभ्यता के समय से रहा, जिसे कई इतिहासकारों ने औपनिवेशिक संप्रभुता से भिन्न आंतरिक तथा आध्यात्मिक संप्रभुता की संज्ञा दी। भारत की अवधारणा वस्तुतः मात्र राष्ट्र या राज्य की नहीं है, बल्कि एक सभ्यता की है और उस सभ्यता-सार को कई इतिहासकारों ने राष्ट्रीयता का प्राक् आधुनिक आधार कहा और कहा कि भारत एक भू-सांस्कृतिक क्षेत्र है न कि भू-राजनीतिक। उन्होंने कहा कि भारत निश्चय ही एक ऐसा राष्ट्र है, जिसे महात्मा गांधी जैसे लोगों ने कहा कि जहां अपने लिए प्रेम है ही बल्कि दूसरे के लिए घृणा बिल्कुल नहीं है।

सं.सतीश सूरज

जारी वार्ता

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