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भगवान की तरह रोजाना होती है गांधी की पूजा अर्चना

भगवान की तरह रोजाना होती है गांधी की पूजा अर्चना

(प्रसून लतांत से)

नयी दिल्ली, 18 मार्च (वार्ता) महात्मा गांधी अपने नाम पर या स्मृति में कोई स्मारक बनाने के कभी पक्ष में नहीं रहे लेकिन आज उनके नाम पर न केवल कई स्मारक और स्मृति स्थल हैं बल्कि ओडीशा और तेलंगाना में उनका मंदिर है जिनमें स्थापित उनकी मूर्ति की रोजाना पूजा अर्चना की जाती है।

दोनों गांधी मंदिर पारंपरिक मंदिरों की तरह ही हैं। यहां गांधी को भगवान मान कर पूजा अर्चना की जाती है, उनकी प्रिय रामधुन बजायी जाती है और पेड़ों में धागे बांधकर मन्नतें मांगी जाती हैं। इन मंदिरों की खास बात यह है कि यहां भले गांधी भगवान की तरह पूजे जाते हैं पर यहां आने वाले आगंतुकों को उनके विचारों और आदर्शों का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ओडीशा का मंदिर लगभग पांच दशक पुराना है जबकि तेलंगाना में करीब चार वर्ष पहले ही मंदिर बना है।

ओडिशा के संबलपुर जिले के भटारा गांव में गांधी मंदिर बनाने का सपना ग्रामीणों ने उसी समय से देखना शुरू कर दिया था जब 1928 में छुआछूत खत्म करने के लिए महात्मा गांधी वहां पहुंचे थे। उस समय दलितों को किसी भी मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया जाता था। इस मंदिर की आधारशिला 1971 में रखी गई। ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से मंदिर का निर्माण किया। मंदिर में महात्मा गांधी की छह फीट ऊंची प्रतिमा है और बाहर भारत माता की प्रतिमा के अलावा अशोक स्तंभ है।

मंदिर की परिकल्पना स्थानीय शिल्पी तृप्ति दासगुप्ता ने की थी जबकि गांधी की प्रतिमा का निर्माण गंजाम जिले के आर्ट कालेज के छात्रों ने किया। ग्रामीणों ने अपने सपनों को खुद के बलबूते से चार वर्ष में साकार किया। इस मंदिर में गांधी जी के आदर्शों का पालन करते हुए पूजा अर्चना एक दलित द्वारा की जाती है। मंदिर में गांधी की सुबह शाम आरती होती है, उनके उपदेशों का पाठ होता है और रामधुन बजती है। लोगों को नशे और हिंसा से दूर रहने का पाठ पढ़ाया जाता है। गांधी जयंती के दिन यहां मेला सा लग जाता है। आसपास के गांवों से हजारों लोग आते हैं। इसी तरह 30 जनवरी, 26 जनवरी और 15 अगस्त को भी भारी भीड़ उमड़ती हैं। गांधी मंदिर डेबलपमेंट कमेटी मंदिर की देखभाल करती है।

दूसरा गांधी मंदिर तेलंगाना राज्य में विजयवाड़ा—हैदराबाद रोड पर चिटयाल गांव के पास साढ़े चार एकड़ जमीन पर एक पहाड़ी के नीचे बना है। चार साल पहले सेवानिवृत शिक्षकों और डॉक्टरों ने अपने पैसों से इस अनूठे मंदिर का निर्माण कराया है। सभी धर्मों का आदर करते हुए तीस से अधिक पवित्र स्थलों की मिट्टी इस मंदिर की नींव में डाली गई है। मुख्य मंदिर में गांधी की प्रतिमा है, जबकि गर्भगृह के सामने धर्म चक्र और 32 फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ है। मंदिर के दाईं ओर नवग्रहों की प्रतिमाएं हैं जबकि बाईं ओर पंच महाभूत की प्रतीक प्रतिमाएं हैं। मंदिर के निचले तल पर ध्यान कक्ष है। मंदिर में सुबह शाम आरती होती है। इसमें दो पुजारी हैं जो आगंतुकों को पूजा—पाठ कराते हैं।

महात्मा गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट गुंटूर के चेयरमैन श्रीपाल रेड्डी ने बताया कि इस मंदिर में रोजाना करीब दो सौ लोग आते हैं । छुट्टियों के दिनों में संख्या दुगुनी हो जाती है। उन्होंने कहा कि मंदिर के बारे में जैसे-जैसे लोगाें को पता चल रहा है तो आगंतुकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। मंदिर की एक विशेषता यह है कि गांधी जी को भगवान मानते हुए आगंतुक मंदिर परिसर में स्थित विशाल पेड़ की टहनियों में धागे बांधते हैं। लाखों धागे बंधे होने के कारण यह पेड़ सभी को अपनी ओर सहज आकर्षित कर लेता है।

गांधी के इन मंदिरों पर वरिष्ठ गांधीवादी गुणवंत कालबांडे का कहना है कि आज जहां कुछ लोग गांधीजी के खिलाफ दुष्प्रचार करते नहीं थकते उससे तो यह बेहतर है कि उनकी पूजा हो रही है। वैश्विक स्तर पर गांधी जी का सम्मान ,उनके मूल्यों और आदर्शों के कारण लगातार बढ़ रहा है लेकिन अपने देश के कुछ लोग गांधीजी के बारे में भ्रांतियां फैलाने से बाज नहीं आ रहे।

 

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