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मिथिला और बंगाल का संबंध "वस्तु और दर्पण" की तरह : संकर्षण ठाकुर

मिथिला और बंगाल का संबंध "वस्तु और दर्पण" की तरह : संकर्षण ठाकुर

दरभंगा, 28 नवंबर (वार्ता) वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक चिंतक संकर्षण ठाकुर ने मिथिला और बंगाल के संबंध को "वस्तु और दर्पण" की तरह बताया और कहा कि दोनों संस्कृतियां एक-दूसरे में अपने आपको देख सकती हैं।

श्री ठाकुर ने रविवार को महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की 114वीं जयंती समारोह में "मिथिलाज इनएलीयेनबल बट कॅमप्लेक्स रिलेशनशिप विथ बेंगाल" (बंगाल के साथ मिथिला के अटूट लेकिन जटिल सम्बन्ध) विषय पर महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह स्मृति व्याख्यान में कहा कि मिथिला और बंगाल का संबंध "वस्तु और दर्पण" की तरह है। ये दोनों संस्कृतियां एक दूसरे में अपने आपको देख सकती हैं। भोजन में माछ-भात, तिलकोर, या चर्चरी हो या दुर्गा पूजा जैसा वार्षिक उत्सव हो, दोनों ही काली के पूजक हैं। सुजनी को सुजनी और फूफी को पीसी दोनों कहते हैं और तो और दोनों मसनद पर सोना पसंद करते हैं। ये एकरुपताएं इतनी अधिक हैं कि आप इन्हें नकार नहीं सकते हैं।

राजनीतिक चिंतक ने कहा कि मैथिलों को भ्रम होता है कि उन्हें उनके अपने इतिहास ने ही धोखा दिया है। परम्परा, धर्म, दर्शन, साहित्य, खान-पान, पारिवारिक संबंध हर विरासत जो संस्कृति का निर्माण करते हैं, का बंगाल से इतना गहरा लगाव और निकटता है कि इन्हें बरबस बंगाल की देन या प्रभाव मान लिया जाता है। यहां तक कि दुर्गा पूजा और काली पूजा, खान-पान, वेश-भूषा को बंगाली संस्कृति का विस्तार मान लिया जाता है। इस भ्रम का मूल कारण काफी हदतक मैथिलों की हीनभावना है। यह जटिलता काफी हदतक मिथिला और बंगाल के इतिहास की देन है, जिसे वर्तमान ने पुख्ता कर दिया है।

सं.सतीश

जारी वार्ता

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