नयी दिल्ली, 27 मई (वार्ता) लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्याओं और दुर्दशा पर उच्चतम न्यायालय में हुई मैराथन सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने जहां अपने प्रयासों का जोरदार तरीके से उल्लेख किया, वहीं इस कठिन परिस्थितियों में भी नकारात्मकता का भाव पैदा करने वाले तथाकथित मसीहों के प्रति गहरे आक्रोश के भाव दर्ज कराये।
केंद्र सरकार का आक्रोश शीर्ष अदालत के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिये पहुंचा, जिन्होंने वातानुकूलित कमरों में बैठकर प्रवासी मजदूरों के हितों की बात करने वालों को ‘कयामत के पैगम्बर’ (प्रोफेट्स ऑफ डूम) करार दिया।
सुनवाई के दौरान श्री मेहता ने न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की खंडपीठ को न केवल प्रवासी मजदूरों के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के आपसी समन्वय से किये जा रहे प्रयासों का विस्तृत लेखाजोखा दिया, बल्कि न्यायाधीशों के सवालों का बखूबी जवाब भी दिया। करीब दो घंटे तक सरकार का पक्ष रखने के बाद उन्होंने अपनी जिरह का अंत देश में नकारात्मकता फैलाने वाले तथाकथित मसीहों के प्रति आक्रोश से किया।
श्री मेहता ने कहा, “केंद्र सरकार (इस मामले में स्वत: संज्ञान लेने के लिए) जहां सुप्रीम कोर्ट का आभार व्यक्त करती है, वहीं मैं एक विधि अधिकारी होने के नाते अपनी शिकायत न्यायालय के रिकॉर्ड में लाना जरूरी समझता हूं।” उन्होंने कहा कि देश में कुछ ऐसे तत्व हैं जो प्रवासी मजदूरों के संकट के बारे में गलत जानकारियां फैलाने पर आमादा हैं। उन्होंने कहा, “(प्रवासी मजदूरों से संबंधित) कुछ अलग-अलग घटनाओं को बार-बार दिखाया जा रहा है। इसका मानव मस्तिष्क पर गहरा असर होता है।”
सॉलिसिटर जनरल ने मानवता के संकट की इस अभूतपूर्व घड़ी में समाज के कुछ वर्ग के लोगों के असभ्य और देशविरोधी व्यवहार का उल्लेख करते हुए कहा कि ये सब तथाकथित मसीहा हैं। उन्होंने कहा, “कोर्ट के अधिकारी के नाते मुझे कुछ कहना है। मेरी कुछ शिकायतें हैं। मैं दो शिकायत दर्ज कराना चाहता हूं, कुछ मीडिया रिपोर्ट और कुछ लोगों के बारे में। कुछ ‘कयामत के पैगम्बर’ हैं, जोे लगातार गलत जानकारियां फैला रहे हैं। ये (तथाकथित मसीहा) देश के प्रति किसी प्रकार की शिष्टता नहीं दिखा रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार कोरोना वायरस ‘कोविड 19’ की रोकथाम के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है, लेकिन हमारे देश में ‘कयामत के पैगम्बर’ मौजूद हैं जो केवल और केवल नकारात्मकता फैलाते हैं। ये आरामतलबी बुद्धिजीवी राष्ट्र के प्रयास को मान्यता नहीं देते हैं।” उन्होंने कहा कि करोड़ों रुपये कमाने वाले इन ‘मसीहों’ से हलफनामा लिया जाना चाहिए कि इन्होंने इन प्रवासी मजदूरों के हितों के लिए क्या किया है?
सुरेश
वार्ता