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मथुरा में सोमवार को शहनाई एवं नगाड़ा वादन के साथ शुरू होगा श्रीकृष्ण जन्म समारोह

मथुरा में सोमवार को शहनाई एवं नगाड़ा वादन के साथ शुरू होगा श्रीकृष्ण जन्म समारोह




मथुरा, 02 सितम्बर (वार्ता )कान्हा की नगरी मथुरा में श्रीकृष्ण का जन्म समारोह सोमवार को शहनाई एवं नगाड़ा वादन के साथ शुरू होगा।

      प्रसिद्ध भागवताचार्य विभू महराज ने बताया कि कान्हा की नगरी उत्तर प्रदेश के मथुरा में जन्माष्टमी अलग अलग मंदिरों में अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। यहां के किसी मंदिर में श्री कृष्ण के बालस्वरूप में जन्माष्टमी मनाई जाती है तो कहीं बच्चे के रूप में मनाई जाती है। किसी मंदिर में दिन में तो कहीं रात में जन्माष्टमी मनाई जाती है। साधु संतगण ठाकुर का आशीर्वाद लेने के लिए 84 कोस की परिक्रमा करते है।

     उन्होने बताया कि ब्रज का हर मंदिर जन्माष्टमी के आयोजन के लिए मशहूर है। मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली होने के कारण यहां तीर्थयात्रियों का जमावड़ा लगा रहता है। यहां स्थित जेल में ही कान्हा ने मानव रूप में जन्म लिया था।

     श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया कि तीन सितम्बर को शहनाई एवं नगाड़ा वादन के साथ ही श्रीकृष्ण जन्म समारोह शुरू होगा। रजत कमलपुष्प में विराजमान ठाकुरजी के श्रीविग्रह का अभिषेक स्वर्ण मण्डित रजत गौ विग्रह के पयोधरों से निकली दुग्धधारा से होगा। ठाकुरजी के अभिषेक से पूर्व गौमाता का पूजन कर देवताओं का आव्हान किया जायेगा।

     उन्होंने बताया कि स्वर्ण चांदी की मिश्र धातु से बनी 51 किलो वजन की गाय, 51 किलो दूध से कान्हों का अभिषेक करेगी। इस अवसर पर तैतीस करोड़ देवी देवताओं का आह्वान किया जाएगा। ठाकुरजी के श्रीविग्रह का दूध, दही, घी, बूरा,  शहद  आदि सामग्री  से दिव्य महा अभिषेक किया जायेगा। जन्माभिषेक  के उपरान्त इस महाप्रसाद का वितरण जन्मभूमि के निकास द्वार के दोनों ओर वृहद मात्रा में किया जायेगा। भगवान का जन्म महाभिषेक रात्रि 12ः15 बजे से रात्रि 12ः30 बजे तक चलेगा। महा अभिषेक के बाद जन्म की खुशी में जहां कुछ समय तक अनवरत पुष्प वर्षा होती है वहीं इस अवसर पर टाफियां और खिलौने भी लुटाए जाते हैं। तदोपरान्त 12ः40 से 12ः50 तक श्रंगार आरती के दर्शन होंगे।  जन्म के दर्शन रात्रि 1ः30 बजे तक खुले रहेंगे।

प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर के जनसपर्क अधिकारी राकेश तिवारी के अनुसार मंदिर में तीन सितम्बर को  प्रातः सवा छह बजे ठाकुर जी का अभिषेक होगा तथा इसके बाद 11 बजे तक चार झांकियां होगी। शाम साढे़ सात बजे से पुनः दर्शन खुलेंगे तो जो रात नौ बजे बंद हो जाएंगे। इसके बाद रात दस बजे दर्शन खुलेंगे और रात 11 बजकर 45 मिनट पर जन्म के दर्शन के बाद प्रसाद वितरण होगा।

     वृन्दावन के तीन मंदिरों राधारमण, राधा दामोदर एवं टेढ़े खम्भेवाले यानी शाह जी मंदिर में जन्माष्टमी दिन मे ही मनाने के कारण तीन सितम्बर को दिन में वृन्दावन तीर्थयात्रियों का कुंभ बन जाएगा। राधा दामोदर मंदिर में तो अभिषेक के बाद हल्दी मिश्रित दही से होली सी खेली जाती है। श्रीकृष्ण जन्म की खुशी में लोग इस मिश्रण को एक दूसरे पर डालते हैं ।

      राधारमण मंदिर में 27 मन दूध ,दही, बूरा, शहद, घी, औषधियों का प्रयोग अभिषेक में होता है। मंदिर के सेवायत दिनेश चन्द्र गोस्वामी के अनुसार यह अभिषेक लगभग तीन घंटे तक चलता है। इस मंदिर में बालस्वरूप में सेवा होती है इसलिए अभिषेक और फिर शुद्ध जल से अभिषेक के बाद मंदिर के सेवायत आचार्य बालकृष्ण को दीर्घायु का आशीर्वाद देते है। इसी प्रकार का अभिषेक टेढ़े खंभेवाले मंदिर में होता है। तीनो मंदिरों में अभिषेक के बाद तीर्थयात्रियों में अभिषेक का चरणामृत वितरित किया जाता है।

बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य ज्ञानेन्द्र गोस्वामी ने बताया कि तीन सितम्बर की रात 12 बजे के बाद एक नियत समय में मंदिर में मंगला के दर्शन होते हैं। तीर्थयात्रियों को वर्ष में एक बार ही ठाकुर के मंगला के दर्शन देखने को मिलते हैं। वृन्दावन के राधाश्यासुन्दर, गोपीनाथ, राधा बल्लभ,कृष्ण बलराम मंदिर,  गोविन्ददेव, मदनमोहन,गाकुलानन्द में भी विशेष प्रकार से जन्माष्टमी मनाई जाती है। रंग जी मंदिर में तो जन्माष्टमी के अगले दिन लट्ठे का मेला लगता है जिसमें लगभग 50 फीट ऊंचे लटठे पर पहलवान उस समय  बिना किसी सहायता के चढते हैं जब कि लट्ठे में ऊपर से तेलमिश्रित पानी लगातार डाला जाता है। जो पहलवान सबसे पहले खंभे के शिखर तक पहुंच जाता है वही विजयी होता है। इसके बाद मंदिर में मृदंग लूट भी होती है।

     गोकुल में जन्माष्टमी अगले दिन यानी इस बार चार सितंबर को नन्दोत्सव या दधिकांना के रूप में मनाई जाएगी।  यहां के मशहूर प्राचीन राजा ठाकुर मंदिर के सेवायत भीखू जी महराज के अनुसार  श्रीकृष्ण के गोकुल आने की खुशी में गोकुल में हल्दी मिश्रित दही की एक प्रकार से होली होती है तथा लोग श्रीकृष्ण के आगमन पर नृत्य करते है। शहनाई वादन भी होता है। राजा ठाकुर मंदिर में लगभग एक घंटे तक नन्दोत्सव जन्माष्टमी के अगले दिन सुबह होता है जिसमे ठाकुर पालना में विराजते हैं तथा मिठाई, पकवान, फल, वस्त्र, पैसे आदि लुटाए जाते हैं और श्रद्धालुओं पर हल्दी मिश्रित दही डाला जाता है। मंदिर से शोभायात्रा चैक के लिए जाती है जहां पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ लोग एक दूसरे पर हल्दी मिश्रित दही डालकर श्रीकृष्ण जन्म की बधाई देते हैं। महाबन, नन्दगाव, गोवर्धन, राधाकुड में भी जन्माष्टमी अलग अलग तरीके से मनाई जाती है।

      नन्देात्सव के अगले दिन यानी 5 सितम्बर को वृन्दावनवासी निराले तरीके से जन्माष्टमी मनाते हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव समिति के आयोजक कृष्ण गोपालानन्ददेव गोस्वामी के अनुसार सामूहिक नगर संकीर्तन यात्रा गोविन्द घाट से यमुना पूजन के बाद शहर के विभिन्न मार्गों से होकर राधाश्यामसुन्दर मंदिर वृन्दावन में समाप्त होगी तथा इसके बाद विशाल भंडारा होगा। कुल मिलाकर ब्रज की जन्माष्टमी का अलौकिक आनन्द ऐसा होता है कि यहां पर भक्ति भी नृत्य करने लगती है और ब्रजभूमि कृष्णमय हो जाती है।

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