पटना 22 अप्रैल (वार्ता) बिहार के कोसी इलाके की हाईप्रोफाइल मधेपुरा लोकसभा सीट का चुनाव महज एक सीट भर की बात नहीं है बल्कि इसे जनता दल यूनाईटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की प्रतिष्ठा से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
बिहार में तीसरे चरण में जिन पांच लोकसभा सीटों पर 23 अप्रैल 2019 को चुनाव होने हैं, उनमें मधेपुरा सीट काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। देश में मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि और 'यादव लैंड' के नाम से मशहूर यह क्षेत्र समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं के लिए उर्वर रहा है। श्री बिंदेश्वरी प्रसाद (बीपी) मंडल से लेकर शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बारी-बारी से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है।
मधेपुरा से वर्तमान सांसद पप्पू यादव इस बार का चुनाव महागठबंधन में शामिल होकर लड़ना चाहते थे लेकिन बात नहीं बन सकी। राजद अध्यक्ष की पप्पू यादव से नाराजगी जगजाहिर है। वह अपनी जन अधिकार पार्टी (जाप) के टिकट पर समर में उतरे हैं वहीं जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव इस बार राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के टिकट से चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की ओर से जनता दल यूनाईटेड (जदयू) उम्मीदवार पूर्व सांसद एवं बिहार के आपदा एवं लघु सिंचाई मंत्री दिनेशचंद्र यादव चुनावी रणभूमि में है, जिससे इस सीट पर त्रिकोणीय और दिलचस्प मुकाबला होगा।
बिहार की हाइप्रोफाइल सीट में शुमार मधेपुरा सीट के परिणाम का राजनीति के क्षेत्र में दूरगामी असर पड़ेगा। यहां से जीतने वाला यादव समुदाय का स्वाभाविक नेता माना जाता है। ऐसे में कई दिग्गज नेताओं की व्यक्तिगत साख भी दांव पर है। मधेपुरा लालू यादव के मजबूत किलों में से एक है। श्री यादव चारा घोटाला मामले में अभी जेल में हैं और पार्टी की कमान उनके छोटे बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव के पास है। बड़े भाई तेजप्रताप के बगावती सुरों के बीच तेजस्वी को खुद को स्वाभाविक नेता के तौर पर और पुख्ता तरीके से पेश करना है। मधेपुरा जीते तो संदेश जाएगा कि उनकी पार्टी यादवों की पहली पसंद है और वह पार्टी के।
राजद से निलंबित सांसद पप्पू यादव की राह में फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती लोकतांत्रिक जनता दल (लोजद) के अध्यक्ष शरद यादव हैं, जो वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव राजद के सिंबल पर लड़ रहे हैं। कभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सारथी रहे शरद यादव ने 2014 का आम चुनाव जदयू के टिकट पर लड़ा था लेकिन उन्हें राजद प्रत्याशी पप्पू यादव से करीब 56209 मतों के अंतर से पराजित होना पड़ा। हालांकि बाद में पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पप्पू यादव राजद से निष्काषित कर दिये गये। अब यदि वह मधेपुरा सीट जीतने में कामयाब हो जाते हैं तो वह जाहिर तौर पर इलाके के बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो जाएंगे। हालांकि लोगों का मानना है कि यह लड़ाई सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और शरद यादव के बीच हो गई है। यदि श्री शरद यादव जीतने में सफल होते हैं तो यह श्री कुमार के लिए बड़ा झटका होगा। यदि वह हारते हैं तो श्री कुमार इसे लालू के गढ़ में अंतिम फतह के रूप में पेश कर सकते हैं। श्री कुमार ने पिछली बार श्री शरद यादव को जिताने के लिये मधेपुरा में जबरदस्त कैंपेन किया था वहीं इस बार समीकरण बदलने से वह लोजद अध्यक्ष को हराने और पार्टी प्रत्याशी दिनेश चंद्र यादव को जिताने के लिये जबरदस्त प्रचार कर रहे हैं।
कभी जनता दल और बाद में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में दूसरों की जीत-हार की व्यूह रचना करने वाले श्री शरद यादव की हसरत आठवीं बार संसद पहुंचने की है लेकिन पप्पू यादव और दिनेश चंद्र यादव उनकी राह रोकने के लिए तैयार हैं। कुछ ऐसे ही त्रिकोणात्मक संघर्ष में पिछली बार शरद यादव को हार का सामना करना पडा था। हालांकि इस बार राजद सुप्रीमो लालू यादव फिर शरद यादव के साथ हैं। माना जा रहा है कि मधेपुरा की जंग हकीकत में लालू यादव लड़ रहे हैं और शरद यादव उनके प्रतिनिधि के रूप में मैदान में हैं। बदले वक्त में बदलाव यह हुआ है कि सांसद पप्पू यादव ने अपना झंडा- बैनर अलग कर जन अधिकारी पार्टी और शरद यादव ने जदयू से अलग होकर लोकतांत्रिक जनता दल बना लिया। जदयू अब राजग का हिस्सा हो गया है वहीं लोजद अध्यक्ष इस बार राजद के टिकट पर चुनावी मैदान में हैं।
राजद अध्यक्ष और शरद की राजनीतिक मित्रता एक अंतराल के बाद दुबारा परवान चढ़ी है। वर्ष 1999 में राजग के उम्मीदवार के रूप में शरद यादव ने लालू यादव को पराजित किया था। उस समय लालू यादव ने घोषणा की थी कि वह शरद को कागजी शेर और जनाधारविहीन नेता साबित कर देंगे। दूसरी तरफ शरद यादव का दावा था कि वे खुद को यादवों का असली और बड़े नेता के रूप स्थापित करेंगे। हालांकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां बदल गयी हैं और शरद यादव को लालू यादव का साथ मिल गया है।
इस बार के चुनाव में सभी दल के प्रत्याशी अपनी जीत का दावा कर रहे हैं। पप्पू यादव क्षेत्रीय और बाहरी को मुद्दा बनाकर जीत हासिल करना चाहते हैं जबकि शरद यादव फिर से लालू यादव के मुस्लिम- यादव (एमवाई) समीकरण के बल पर चुनाव में जीत हासिल करना चाहते हैं। शरद यादव का कहना है कि मधेपुरा की लड़ाई संविधान को बचाने के लिए है। वहीं, जदयू प्रत्याशी दिनेश चंद्र यादव विकास के बल पर चुनाव लड़ रहे हैं। उनके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जमकर प्रचार कर रहे हैं। यहां सबकी नजरें पचपनिया मतदाताओं पर लगी हैं, जो यादवों के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं। वर्ष 2014 में पचपनिया मतदाताओं के जदयू प्रत्याशी को वोट करने के कारण ही भाजपा प्रत्याशी विजय कुमार सिंह को मोदी लहर में भी हार का सामना करना पड़ा था।
मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र के लिए पहली बार 1967 में वोट डाले गए थे। मधेपुरा से पहली बार लोकसभा में नुमाइंदगी करने का गौरव दिग्गज समाजवादी नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (बीपीमंडल) को हासिल है। वह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे। वर्ष 1968 के उपचुनाव में भी जीत उन्हीं के हाथ लगी। वर्ष 1971 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के राजेंद्र प्रसाद यादव ने चुनाव जीता। वर्ष 1977 के चुनाव में फिर भारतीय लोक दल (बीएलडी) के टिकट पर बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने चुनाव जीता। वर्ष 1980 के चुनाव में राजेंद्र प्रसाद यादव फिर विजयी हुये। इसके बाद वर्ष 1984 के चुनाव में मधेपुरा सीट पर कांग्रेस के महावीर प्रसाद यादव सांसद बने।
इसके बाद वर्ष 1989 में रामेंद्र कुमार यादव रवि, जनता दल के टिकट पर संसद पहुंचे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शरद यादव ने मधेपुरा को अपनी सियासी कर्मभूमि के रूप में चुना। वर्ष 1991 और 1996 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर यहां से जीतकर शरद यादव लोकसभा पहुंचे। वर्ष 1998 में राजद अध्यक्ष लालू यादव ने मधेपुरा से चुनाव जीता। वर्ष 1999 में फिर शरद यादव जदयू की टिकट पर यहां से चुनाव जीते। वर्ष 2004 में फिर लालू प्रसाद यादव ने इस सीट पर विजय पताका फहराई। वर्ष 2009 में यहां से जदयू के शरद यादव फिर जीतने में कामयाब रहे। वर्ष 2014 में यहां से पप्पू यादव राजद के टिकट पर जीतकर लोकसभा पहुंचे।
वर्ष 2008 में हुए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति थोड़ी बदल गयी है। पहले मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में आलमनगर, किशुनगंज, कुमारखंड, सिंहेश्वर, मधेपुरा और सहरसा जिले का सोनवर्षा विधानसभा क्षेत्र शामिल था। नए परिसीमन के बाद मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा के अलावा सहरसा जिले का सहरसा, सोनवर्षा और महिषी विधानसभा सीट शामिल हैं।
इस लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली छह विधानसभा सीटों में से तीन पर वर्तमान में जदयू जबकि तीन पर राजद का कब्जा है। इनमें आलमनगर से नरेन्द्र नारायण यादव (जदयू), बिहारीगंज से निरंजन कुमार मेहता (जदयू), मधेपुरा से चंद्रशेखर (राजद), सहरसा से अरुण कुमार (राजद), सोनवर्षा (सु) से रत्नेश सदा (जदयू) और महिषी ने डॉ. अब्दुल गफूर (राजद) के विधायक हैं। वर्ष 2019 के आम चुनाव में मधेपुरा संसदीय क्षेत्र से कुल 13 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें राजद, जदयू और जाप के अलावा पांच निर्दलीय समेत 13 उम्मीदवार शामिल हैं। इस क्षेत्र में करीब 18 लाख 84 हजार मतदाता हैं। इनमें करीब नौ लाख 74 हजार पुरुष और नौ लाख आठ हजार महिला मतदाता तथा करीब दो हजार सर्विस वोटर शामिल हैं, जो तीसरे चरण में 23 अप्रैल को होने वाले मतदान में 13 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला कर देंगे।
प्रेम सूरज
वार्ता