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मध्यप्रदेश आईएएस पत्र विवाद तीन अंतिम भोपाल

सुश्री गौरी सिंह ने पत्र की शुरूआत में लिखा है कि जांच एजेंसियों में जिम्मेदार पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा मामले की उचित जांच करने के पहले ही केस से संबंधित विवरण, शिकायत और संभावित निष्कर्ष प्रेस के साथ साझा किए जाकर प्रसिद्धि पाने का चलन देखा जा रहा है। यह चलन शासकीय सेवकों के लिए काफी हतोत्साहित करने वाला और निर्णय लेने की प्रक्रिया पर विपरीत प्रभाव डालने वाला है।
उन्होंने लिखा है कि अधिकारी अक्सर अपने आधिकारिक दायित्व के चलते जटिल निर्णय लेते हैं, जिसमें कई लोग शामिल रहते हैं। ऐसे अनेक मामले हैं, जिनमें प्रतिस्पर्धियों के हित अंतिम निर्णय से प्रभावित होते हैं और वे या तो अदालत की शरण में जाते हैं या फिर जांच एजेंसियों में शिकायत दर्ज कराते हैं। इन स्थितियों में जांच एजेंसियों से अपेक्षा की जाती है कि वे निष्पक्ष भाव से ऐसे मामलों की जांच करें और इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि संस्थाओं और व्यक्तियों की छवि अनावश्यक रूप से मलिन नहीं की जाए।
इस पत्र के साथ मुख्य सचिव को भोपाल स्मार्ट सिटी से संबंधित इंटीग्रेटेड कमांड कंट्रोल सेंटर (आईसीसीसी) को लेकर तथ्य भी लिखित में मुहैया कराए गए हैं। इसमें कहा गया है कि आईसीसीसी से संबंधित न्यूज आज के समाचार माध्यमों में प्रकाशित हुयी है।
इसमें कहा गया है कि वास्तविकता यह है कि ईओडब्ल्यू ने आईसीसीसी से संबंधित जानकारी नगरीय विकास एवं आवास विभाग से नहीं मांगी है। यह एक खतरनाक चलन है कि तथ्यों की जांच किए बगैर एजेंसीज प्रेस के बीच जाती हैं, जिससे अधिकारी और राज्य की मशीनरी की छवि प्रभावित होती है।
दरअसल भोपाल स्मार्ट सिटी से संबंधित करोड़ों रुपयों का ठेका किसी विशेष कंपनी को दिए जाने को लेकर एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की शिकायत ईओडब्ल्यू में की गयी है। इसी से संबंधित खबरें यहां मीडिया में आयी हैं। संबंधित अधिकारी पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल के दौरान नगरीय विकास एवं आवास विभाग में प्रमुख पद पर पदस्थ थे। वर्तमान में वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं।
प्रशांत
वार्ता
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