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राष्ट्रीय अयाेध्या अमन दो अयोध्या

अतीत में झांके तो इतिहासकारों के मुताबिक 1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ था हालांकि सात समंदर पार से देश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ने आये अंग्रेजो ने 1859 में पूजा और नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। वर्ष 1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई जबकि तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
30 अक्टूबर 1990 को तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार के शासनकाल में हजारों रामभक्तों ने अयोध्या में प्रवेश किया और विवादित ढांचे के ऊपर भगवा ध्वज फहरा दिया जबकि दो नवम्बर, 1990 को कारसेवकों पर गोली चलायी गयी जिसमें कोलकाता के कोठारी बंधुओ समेत कई कारसेवक मारे गये। गोलीकांड के विरोध में चार अप्रैल, 1991 को दिल्ली के वोट क्लब पर अभूतपूर्व रैली हुई जिसके चलते श्री मुलायम सिंह यादव को इस्तीफा देना पड़ा।
सितम्बर, 1992 में भारत के गांव-गांव में श्रीराम पादुका पूजन का आयोजन किया गया और छह दिसम्बर को गीता जयंती के मौके पर रामभक्तों से अयोध्या पहुंचने का आह्वान किया गया। इसी रोज हजारों कार सेवकों ने बाबरी ढांचे को ढाह दिया, और टीले पर अस्थाई तौर पर रामलला की स्थापना कर दी। ढांचा ढहाए जाने के परिणामस्वरूप देश भर में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमें 2000 से ज्यादा लोगों की जान गयी।
16 दिसंबर, 1992 को मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ। रामलला की दैनिक सेवा-पूजा की अनुमति दिए जाने के संबंध में अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दायर की और एक जनवरी, 1993 को अनुमति दे दी गई। तब से यहां दर्शन-पूजन का क्रम लगातार जारी है।
प्रदीप
जारी वार्ता
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