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लोकरूचि निकुंज उत्सव दाे अंतिम मथुरा

आचार्य गोस्वामी ने बताया कि सोमवार की शाम निकुंज उत्सव में कल्पवृक्ष की विशेष निकुंज में राधारमणलाल को सजाया गया था। निकुंज मे सखी मंजरियों की अभिलाषा को पूरा करने के लिए प्रिया प्रियतम ने स्नान करते हुए जगमोहन में दर्शन दिये। निकुंज में न केवल विभिन्न प्रकार के कल्पवृक्ष थे बल्कि उन पर लगे सभी ऋतुओं के फल वातावरण में चार चांद लगा रहे थे।
केले के पत्तों के साथ फूल बंगले में उकेरे गए ऋतुओं के फलों की झांकी हर किसी के लिए मनभावन थी। बंगले में केले के पत्तों से बने हाथी, मोर, कोयल, हंस जैसे पशु पक्षी आदि ऐसे शोभायमान हो रहे थे जैसे वे प्रिया प्रियतम का जयकार करते हुए झूम रहे हों। निकुंज में आठ सखियां प्रिया-प्रियतम के दर्शन कर उनकी स्तुति कर रही थीं।
उन्होने बताया कि इस अवसर पर जब मिट्टी के 108 बड़े घड़ों में एकत्रित शीतल जल से राधारमण लाल को स्नान कराया गया तो वे बुखार से पीड़ित हो गए। मां यशोदा को लाला के अस्वस्थ होने के बारे में पता चला तो उन्होंने बादाम का हलुवा ठाकुर को खिलाकर उनका ज्वर शांत किया।
वनबिहार के अंतर्गत ठाकुरजी कुमुद वन में विराजमान हुए जहां कमल ही कमल थे। सायंकाल की संध्या आरती पूर्ण राजोपचार विधि से आचार्य सुवर्ण गोस्वामी ने करके जलयात्रा का समापन भक्तों द्वारा किये गए राधारमणलाल के जयकारे से किया।
सं प्रदीप
वार्ता
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