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लोकरुचि


विदेशी चकाचौंध से अछूता है लोकआस्था का महापर्व

विदेशी चकाचौंध से अछूता है लोकआस्था का महापर्व

प्रयागराज,10 नवम्बर (वार्ता) लोक आस्था का महापर्व 'छठ' की परंपरा को सात समन्दर पार पश्चिमी परिवेश की चकाचौंध भी प्रभावित न/न कर सकी है।


     कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि से प्रारंभ होकर सप्तमी तिथि पर समापन होने वाले पर्व को सात समन्दर पार भी श्रद्धालु परंपरानुसार मनाते हैं। पश्चिमी संस्कृति की चकाचौंध से लोग प्रभावित हो रहे हो लेकिन आस्था के पर्व को मनाने वाले अब भी बड़ी शिद्दत के साथ परंपरानुसार पालन कर रहे हैं।

      सूर्य उपासना का पर्व छठ बिहार, झारखंड, नेपाल एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें न/ न केवल उदयाचल सूर्य की पूजा की जाती है बल्कि अस्ताचलगामी सूर्य को भी पूजा जाता है। महापर्व के दौरान हिंदू धर्मावलंबी भगवान सूर्य देव को जल अर्पित कर आराधना करते हैं।



     बिहार में इस पर्व का खास महत्व है। यह पर्व गंगा तट पर किया जाता है। नदी नहीं होने पर घर के बाहर कुंए और तालाब पर यह पर्व मनाया जाता हैं। अस्ताचलगामी सूर्य को अर्ध्य देकर शुरू किया जाता है और चौथे दिन उदयाचल सूर्य की पूजा के बाद पर्व का समापन होता है।

झारखण्ड मूल के कजरू निवासी यहां राजापुर क्षेत्र में रहने वाले नरेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं नेपाल आदि के लोग जहां गए, वहां अपनी संस्कृति‍ को जीवंत किया। यही कारण है कि छठ महापर्व की गूंज अमेरिका के वाशिंगटन डीसी तक है। वाशिंगटन डीसी के साथ मेरीलैंड, वर्जिनिया और न्यू जर्सी तक के लोग छठ व्रत करते हैं। वाशिंगटन डीसी की पोटॉमॅक नदी तट पर छठ की पूजा करते हैं।

     उन्होंने बताया कि कल से शुरू हो रहे चार दिवसीय त्योहार की शुरुआत नहाय-खाय की परम्परा से होती है। यह त्यौहार पूरी तरह से श्रद्धा और शुद्धता का पर्व है। इस व्रत को महिलाओं के साथ ही पुरुष भी रखते हैं। चार दिनों तक चलने वाले लोक आस्था के इस महापर्व में व्रती को लगभग तीन दिन का व्रत रखना होता है जिसमें से दो दिन तो निर्जला व्रत रखा जाता है।

      मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की अराधना की जाती है। यह पूजा पुत्र की कामना और समृद्धी के लिये किया जाता है। यह पर्व सब को एक सूत्र में पिरोने का काम करता है। इस पर्व में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे का भेद मिट जाता है। सब एक समान एक ही विधि से भगवान की पूजा करते हैं। अमीर हो या गरीब , सब एक साथ गंगा तट पर एक जैसे दिखते हैं। बांस के बने सूप में ही फल, नारियल ,फूल और चुनरी से ढ़क कर सूर्य अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। प्रसाद भी एक जैसा, गंगा और भगवान भास्कर सबके लिए एक जैसे हैं।

शिक्षिका विनीता राय का कहना है यह पर्व साल में दो बार, चैत्र शुक्ल षष्ठी आैर कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथियों को मनाया जाता है। इनमे से कार्तिक की छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।

      शास्त्रों के अनुसार छठ पूजा आैर उपवास मुख्य रूप से सूर्य देव की अाराधना से उनकी कृपा पाने के लिये होता है। एेसी मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा हो जाये तो सेहत अच्छी रहती है, आैर धन-धान्य के भंडार भरे रहते हैं। एेसा भी कहा जाता है कि छठ माई की कृपा से संतान प्राप्त होती। ये व्रत रखने से सूर्य के समान तेजस्वी आैर आेजस्वी संतान के लिये भी रखा जाता है। इस पूजा आैर उपवास से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

      उन्होंने बताया कि त्योहारों के देश भारत में कई ऐसे पर्व हैं, जिन्हें काफी कठिन माना जाता है और इन्हीं में से एक है लोक आस्था का महापर्व छठ, जिसे रामायण और महाभारत काल से ही मनाने की परंपरा रही है। पौराणिक कथाआें के अनुसार रामायण काल में भगवान श्रीराम ने अयोध्या वापस आने के बाद सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना की थी। इसी तरह महाभारत काल में कुंती द्वारा विवाह से पूर्व सूर्योपासना करके पुत्र प्राप्ति करने से भी इस दिन को जोड़ा जाता है। कहते हैं कि कर्ण का जन्म इसी प्रकार हुआ था।

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