गाजीपुर 09 अक्टूबर (वार्ता) पूर्वी उत्तर प्रदेश में गाजीपुर स्थित सिद्धपीठ हथियाराम मठ पर विजयदशमी के मौके पर करीब 650 वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुये बुढ़िया माई भोग लगा हलवा प्रसाद का वितरण मंगलवार देर शाम किया गया।
महामंडलेश्वर स्वामी श्री भवानी नंदन यति जी महाराज ने प्रसाद वितरण किया। गाजीपुर,आजमगढ़,बलिया समेत समूचे पूर्वांचल से जुटे श्रद्धालुओं ने कतारबद्ध होकर प्रसाद ग्रहण किया।
दिलचस्प है कि प्राचीन परंपरा के अनुसार आज भी उक्त प्रसाद का वितरण वनवासियों द्वारा तैयार पत्तल में पैक कर किया जाता है जिसमें स्थानीय क्षेत्र के शिशवार गांव के दर्जन भर से अधिक वनवासी परिवार शामिल है।
गौरतलब है कि सिद्धपीठ हथियाराम मठ पर विजयादशमी के दिन ध्वज पूजन, शस्त्र पूजन, शास्त्र पूजन, समी वृक्ष पूजन, शिवपूजन, शक्ति पूजन के बाद बुढ़िया माई को भोग लगा हलवा पूड़ी का प्रसाद वितरित किया जाता है। जिसके लिए समूचा शिष्य समुदाय उपस्थित रहता है। खास बात है कि आज के समय तमाम आधुनिक व्यवस्था उपलब्ध हो जाने के बावजूद प्रसाद पैकिंग के लिए जनपद के सिसवार गांव के बनवासी परिवारों से पत्तल मंगाया जाता है। हालांकि उक्त बनवासी परिवार के लोगों द्वारा पत्तल बनाने का काम बंद कर दिया गया है, लेकिन प्रत्येक वर्ष विजयादशमी पर सिद्धपीठ द्वारा 50,000 पत्तल सिसवार गांव के बनवासी उपलब्ध कराते हैं।
इस संबंध में शंकर वनवासी, कांता बनवासी, रामकृत बनवासी और मोती बनवासी ने बताया कि आज के समय में हमारे हाथ से बने पत्तलों की मांग लगभग समाप्त हो जाने से अब हम लोगों ने अपना पारंपरिक काम बंद कर दिया। वह अन्य माध्यमों से अपना रोजी-रोटी चलाने का काम करते हैं लेकिन सिद्धपीठ द्वारा प्रत्येक वर्ष 50 से 60 हजार पत्तल मांगे जाते हैं। जिसके लिए हमारी पूरी बस्ती सहर्ष यह काम करके सिद्धपीठ पर पहुंचाती है, जहां हमें गौरव की अनुभूति होती है। इतने बड़े सिद्धपीठ पर आज भी हम से पत्तल मांगा जाता है जिसकी हम आपूर्ति करते हैं।
सिद्धपीठ के महामंडलेश्वर व पीठाधीश्वर स्वामी श्री भवानीनंदन यति जी महाराज ने कहा कि वनवासी भाई हमारे समाज के अंग हैं। हालिया राजनीतिक स्थिति में हिंदू समाज में भेदभाव बढ़ाने का काम किया जबकि पारंपरिक तौर पर प्राचीन काल से हम एक दूसरे से इन मांगलिक व धार्मिक कार्यों के माध्यम से मजबूती से बंधे हुए थे। ‘मंदिर का भोग हो या शादी का भोज हो’ सब कुछ बनवासी भाइयों के बने पत्तल में हीं किया जाता रहा जिसका आज भी पालन करने की आवश्यकता है।
सं प्रदीप
वार्ता