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श्रीकृष्ण की विश्राम स्थली वृन्दावन में अब नही दिखती जन्माष्टमी पर जगमग

श्रीकृष्ण की विश्राम स्थली वृन्दावन में अब नही दिखती जन्माष्टमी पर जगमग

इटावा , 21 अगस्त(वार्ता)भगवान श्रीकृष्ण की विश्रामस्थली के रूप में विख्यात उत्तर प्रदेश के इटावा स्थित वृन्दावन में मुगलकालीन शिल्पकला से निर्मित विशाल गगनचुम्बी मंदिर आवासीय परिसरों में तब्दील हो जाने के बावजूद आज भी लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रहे हैं । 

     इटावा के तत्कालीन जिला सूचना अधिकारी के.एल. चौधरी द्वारा सम्पादित उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग की पुस्तक ”इतिहास के झरोखे में इटावा“ के अनुसार मथुरा से अयोध्या जाते समय भगवान श्रीकृष्ण ने इटावा में जिस स्थान पर विश्राम किया था , उसे वृन्दावन के नाम से पुकारा जाता है । कुछ समय पहले तक इन मंदिरो में मथुरा वृन्दावन की तर्ज पर जन्माष्टमी के दरम्यान भव्यतापूर्ण ढंग से सजाया जाता था और यहॉ आठ दिनो तक मेले की पंरपरा रहा करती थी लेकिन अब यह पंरपरा लोगो की अरूचि के कारण मंदिर सूने रहने लगे है ।

    इटावा के के.के.पी.जी.कालेज के इतिहास विभाग के प्रमुख डा.शैलेंद्र शर्मा का कहना है कि इटावा का पुरबिया टोला एक समय आध्यात्मिक साधना का बडा केंद्र रहा है। असल में पुरबिया टोला के वासी पुरातन पंरपराओं को निभाने में सबसे आगे रहने वाले माने गये है। इसी कड़ी में यहॉ पर धार्मिक आयोजन खासी तादात मे होते रहे है। औरंगजेब के काल मे यहॉ पर टकसाले खोली गई थी पुरबिया टोला गुप्तरूप से आघ्यात्मिक साधना का केंद्र रहा है। बेसक एक वक्त धार्मिक केंद्र के रूप मे लोकप्रिय रहे पुरबिया टोला अतिआधुनिक काल मे पुरानी परपंराओं से दूरी बनाता हुआ दिख रहा है जिसके प्रभाव मे अब पहले की तरह से यहॉ पर जन्माष्टमी नही मनाई जाती है ।

     उन्होंने बताया कि इसी पावन भूमि पर इटावा का प्राचीन गुरुद्वारा भी है जिसे सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक के पुत्र श्री चंद की याद में उनके द्वारा स्थापित उदासीन सम्प्रदाय के भक्तों ने स्थापित किया था। इटावा के पुरबिया टोला मुहल्ले में स्थित इन मंदिरों में ग्यारह बडे़ मंदिर हैं। इन मंदिरों में जवाहरलाल, जगन्नाथ मंदिर, सिपाही राम मंदिर और जिया लाल मंदिर की बनावट पर मुगलकालीन शिल्प कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अन्य मंदिरों की बनावट पारंपरिक है। इन मंदिरों में तीन ठाकुर द्वारे है। दो राधाकृष्ण के और एक राम, लक्ष्मण , सीता का मंदिर है। शेष शिव मंदिर हैं।

इन सभी मंदिरों की बनावट काफी चित्ताकर्षक है और इनकी गगनचुंबी चोटियां देखकर दूर से ही इस बात का आभास हो जाता है कि यहां पर विशालकाय मंदिर हैं। मंदिरों की इन गगनचुम्बी चोटियों पर आकर्षक तरीके से तरह-तरह की नक्काशी कीगई है और मंदिरों की दीवारों पर लगे पत्थरों को काट-काट कर उन पर देवी-देवताओं की तस्वीरें और तरह-तरह की नक्काशी की गई है। पुरबिया टोला में जो ग्यारह बडे़ मंदिर हैं, उनमें सबसे पुराना जियालाल का मंदिर है। यह मंदिर नालापार क्षेत्र में अवस्थित है। जियालाल मंदिर के कारण ही पुरबिया टोला नालापार की पहचान होती है।

       इस मंदिर के पास स्थित कुएं का निर्माण सन 1875 में किया गया था। इससे अनुमान लगाया जाता है कि मंदिर का निर्माण भी इसी के आसपास हुआ होगा। सन 1895 में रामगुलाम मंदिर की स्थापना हुई थी ।

      इसके अलावा बडा मंदिर जो अपने सर्वाेच्च शिखर के लिए मशहूर है वह दो बार में निर्मित हुआ था। पहले चौधरी दुर्गा प्रसाद द्वारा बनवाया गया था। फिर 1907 में उनके निधन के बाद दिलासा राम की देखरेख में 1915 में बन कर तैयार हुआ था। तलैया मैदान में स्थित चौधरी दुर्गाप्रसाद के मंदिर की ऊंचाई समुद्रतल से करीब 90 फीट है। पहले इस मंदिर में भगवान शंकर की सोने चांदी की मूर्तियां स्थापित थी लेकिन अब वे यहां नहीं हैं ।

       इन सभी मंदिरों की बनावट काफी चित्ताकर्षक है और इनकी गगनचुंबी चोटियां देखकर दूर से ही इस बात का आभास हो जाता है कि यहां पर विशालकाय मंदिर हैं। मंदिरों की इन गगनचुम्बी चोटियों पर आकर्षक तरीके से तरह-तरह की नक्काशी की गई है और मंदिरों की दीवारों पर लगे पत्थरों को काट-काट कर उन पर देवी-देवताओं की तस्वीरें और तरह-तरह की नक्काशी की गई है। पुरबिया टोला में जो ग्यारह बडे़ मंदिर हैं, उनमें सबसे पुराना जियालाल का मंदिर है। यह मंदिर नालापार क्षेत्र में अवस्थित है। जियालाल मंदिर के कारण ही पुरबिया टोला नालापार की पहचान होती है।

सं भंडारी

वार्ता

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