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श्रीराम ने भी उड़ाई थी पतंग

श्रीराम ने भी उड़ाई थी पतंग

इलाहाबाद,15 जनवरी (वार्ता) देश में पतंग उड़ाने की प्रथा की शुरुआत का कोई एेतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता,लेकिन मान्यताओं की शुरुआत भगवान श्री राम ने भी माघ मास में मकर संक्रांति के दिन यहां पतंग उड़ाई थी।

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में इसका जिक्र करते हुए लिखा है “राम इक दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुंची जाई।” यह चौपाई लिखकर तुलसीदास जी ने बता दिया था कि पतंग उड़ाने की शुरूआत औरों से पहले श्रीराम ने की थी।

मकर संक्रांति वर्ष का पहला त्यौहार होता है। इस दिन लोग नदी में स्नान कर दान पुण्य करते हैं और देश के कुछ हिस्सों में पतंग भी उड़ाने की भी परंपरा है। इस परंपरा की शुरुआत भगवान राम ने की थी। तुलसी दास जी ने राम चरित मानस में भगवान श्री राम के बाल्यकाल का वर्णन करते हुए लिखा है कि भगवान श्री राम ने भी पतंग उड़ायी थी।

रामायण के अनुसार मकर संक्रांति का वह पावन दिन रहा होगा जब भगवान श्री राम और अंजनी पुत्र हनुमान की मित्रता हुई। तन्दनान रामायण में भी इस घटना का जिक्र किया गया है। इस रामायण के अनुसार मकर संक्रांति ही वह पावन दिन था जब भगवान श्री राम और हनुमान जी की मित्रता हुई।

मान्यताओं के अनुसार तभी से पतंग उड़ाने का रिवाज मकर संक्रांति के साथ जुड़ा हुआ है। मकर संक्रांति के दिन लोग घरों की छतों से पतंग उड़ाकर इस त्योहार काे मनाते हैं। कई जगह पर तो पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं।

भारत, चीन, इंडोनेशिया, थाइलैंड, अफगानिस्तान, मलेशिया जापान और अन्य एशियाई देशों तथा कनाडा, अमेरिका, फ्रांस, स्विटजरलैंड, हालैंड, इंगलैंड आदि देशों में भी पतंग उड़ाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।

प्राय: यह माना जाता है कि पतंग का आविष्कार ईसा पूर्व चीन में हुआ था। जापान में पतंगे उड़ाना और पतंगोत्सव एक सांस्कृतिक परंपरा है। यहां पतंग तांग शासन के दौरान बौद्ध भिक्षुओं के माध्यम से पहुंची।

भारत में पतंग परंपरा की शुरुआत शाह आलम के समय 18 वीं सदी में की गयी लेकिन भारतीय साहित्य में पतंगों की चर्चा 13 वीं सदी से ही की गयी है। मराठी संत नामदेव ने अपनी रचनाओं में पतंग का जिक्र किया है। लेकिन ऐसे प्रसंगों से संकेत भी मिलते हैं की दुनिया में पतंग का आविष्कार भारत में ही हुआ हो, क्योंकि रामचरित मानस में महा-कवि तुलसीदास जी ने बालकाण्ड में उन प्रसंगों का उल्लेख किया है जब भगवान श्री राम ने अपने भाइयों के साथ पतंग उड़ाई थी।

पतंग ने दुनिया के कई हिस्सों का सफ़र तय किया। भारत में यहाँ की गंगा- जमुना संस्कृति में मिलकर इसने अपने अलग ही रंग बिखेरे। भारत में पतंगबाजी इतनी लोकप्रिय हुई कि कई कवियों ने इस साधारण सी हवा में उड़ती वस्तु पर भी कवितायें लिख डाली। हिन्दी फिल्मों के कई गीतों में पतंग और हमारे जीवन में समानता दिखाते हुए कई गीत मिल जायंगे। ‘खालिद हुसैनी’ की चर्चित किताब ‘काईट रनर’ में भारत में पतंगबाजी तथा इसके शगल से जुडी रवायतों और उसूलों का बड़ी शिद्दत से ज़िक्र किया गया है।

मान्यता है कि पतंग खुशी, उल्लास, आजादी और शुभ संदेश की वाहक है, संक्रांति के दिन से घर में सारे शुभ काम शुरू हो जाते हैं और वो शुभ काम पतंग की तरह ही सुंदर, निर्मल और उच्च कोटि के हो इसलिए पतंग उड़ाई जाती है।

एक छोटी सी पतंग एकता का पाठ भी सिखाती है क्योंकि पतंग अकेले नहीं उड़ाई जाती। कोई मांझा पकड़ता है तो डोर किसी और के हाथ में होती है। यही नहीं पतंग के जरिए लोग हार-जीत का अंतर भी समझते हैं।

पतंग’ शब्द बहुत प्राचीन है। सूर्य के लिए भी पतंग शब्द का प्रयोग किया जाता है, कीट-पतंगे आज भी प्रचलित शब्द है। हर इंसान अपने जीवन में ऊँचाइयों को पाने की ख्वाहिशें रखता है, और ऐसी ही एक ख्वाहिश इंसान ने पाली हो, आसमान में रंग भरने की । पतंग भारत समेत दुनिया के अनेक देशों में एक शौक का माध्यम बनने के साथ-साथ आशाओं, आकाँक्षाओं और मान्यताओं को पंख भी दिया।

हवा में डोलती अनियंत्रित डोर थामने वालों को आसमान की ऊँचाइयों तक ले जाने वाली पतंग अपने में हजारों वर्षों से अधिक के इतिहास में अनेक मान्यताओं, अंधविश्वासों और अनूठे प्रयोगों का आधार भी रही है। अपने पंखों पर विजय और वर्चस्व की आशाओं का बोझ लेकर उड़ती पतंग ने अपने अलग-अलग रूपों में दुनिया को न केवल एक रोमांचक खेल का माध्यम ही दिया, बल्कि एक शौक के रूप में यह विश्व की विभिन्न सभ्यताओं और संस्कृतियों में रच-बस गई।

काफी लोग मानते हैं कि पतंग का अविष्कार चीन में हुआ था। पतंग आमतौर पर हवा से भारी होती है लेकिन हवा से हल्की पतंग भी होती हैं। जिसे हैलिकाईट कहते हैं। ये पतंगें हवा में या हवा के बिना भी उड़ सकती हैं। हैलिकाईट पतंगें अन्य पतंगों की तुलना में एक अन्य स्थिरता सिद्धांत पर काम करती हैं, क्योंकि हैलिकाईट हीलियम-स्थिर और हवा-स्थिर होती हैं।

प्राचीन दंत कथाओं पर विश्वास किया जाये तो चीन और जापान में पतंगों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था। चीन में किंग राजवंश के शासन के दौरान उड़ती पतंग को यों ही छोड़ देना दुर्भाग्य और बीमारी को न्योता देना के समान माना जाता था। कोरिया में पतंग पर बच्चे का नाम और उसका जन्म दिवस लिखकर उड़ाया जाता था ताकि उस साल उस बच्चे से जुड़े सारे दुर्भाग्य पतंग के साथ ही उड़ जाए, मान्यताओं के मुताबिक थाईलैंड में बारिश के मौसम में लोग भगवान तक अपनी प्रार्थना पहुँचाने के लिए पतंग उड़ाते थे। जबकि कटी पतंग को उठाना अपशकुन माना जाता था।

वार्ता

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