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शिवराज के रसीले जैविक अमरूदों का स्वाद पहुंचा जर्मनी, अमरीका तक

गन्नौर, 16 फरवरी(वार्ता) हरियाणा के सोनीपत जिले में यहां भारतीय अंतरराष्ट्रीय बागवानी मार्किट में चल रहे चौथे एग्री लीडरशिप सम्मिट-2019 में स्टॉल लगाने वाले फल उत्पादक किसान शिवराज के रसीले जैविक अमरूदों का स्वाद जर्मनी तथा अमरीका तक पहुंच चुका है।
सम्मेलन के स्टॉल हाल में झज्जर जिले के खेड़ी खुमार गांव के शिवराज के अमरूदों की महक उठ रही है। वह कहते हैं कि जैविक खेती जीरो बजट की खेती है। देशी गाय के मूत्र और गोबर से तैयार खाद से ही वह अमरूदों की खेती करते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने वर्ष 2007 में की थी। उनका कहना है कि रासायनिक खाद से तैयार फल जल्दी खराब हो जाते हैं। साथ ही इनके स्वाद में भी बहुत अंतर होता है। जैविक अमरूदों का बीज नरम तथा स्वाद बेहद आनंददायक होता है। उनका कहना है कि जैविक अमरूदों की खेती उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में वरदान सिद्ध हुई है।

शिवराज के अनुसार रासायनिक खेती नुकसानदायक होती है जिसमें खेती की लागत अधिक आती है। जबकि मुनाफा कम मिलता है। वह तीन एकड़ भूमि में अमरूद की खेती करते हैं। अमरूद के साथ सब्जियां भी उगाते हैं। उन्होंने कहा कि अमरूद आजीविका के लिए हैं जबकि जैविक सब्जियां अपने घर में उपयोग की जाती हैं। इसी प्रकार एक एकड़ भूमि में गेहूं की खेती भी करते हैं जिसे वह बेचते नहीं है। उन्होंने कहा कि जैविक उत्पादों के लिये किसानों को बाजार ढूंढऩे की जरूरत होती है। यदि बाजार मिल जाये तो जैविक उत्पाद बेचने में कोई परेशानी नहीं होती। वह अपने इलाहाबादी अमरूद गुरुग्राम में बेचते हैं। इसके अलावा फोन पर ही उन्हें घर बैठे आर्डर और बाजार मिला जाता है।
शिवराज बताते हैं कि सीजन में उनके अमरूद आसानी से 60 रुपये प्रति किलोग्राम तथा ऑफ सीजन में 80 रुपये प्रति किलो ग्राम तक बिक जाते हैं। उन्होंने कहा कि झज्जर में एक कार्यक्रम के दौरान उनके अमरूद जर्मनी के राजदूत को तोहफे में दिये गये। साथ ही वह अपने साथ भी अमरूद जर्मनी लेकर गये। इसी प्रकार अमरीका में भी लोग उनके अमरूद लेकर जाते हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए परम्परागत खेती के साथ फल, सब्जियां, फूलों की खेती करनी चाहिए। इसमें जैविक खेती बेहतरीन साबित होगी।
सं.रमेश1948वार्ता
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