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संगीतकार नहीं , अभिनेता बनने के इच्छुक थे खय्याम

संगीतकार नहीं , अभिनेता बनने के इच्छुक थे खय्याम

..जन्मदिन 18 फरवरी के अवसर पर ..

मुंबई 17 फरवरी (वार्ता) करीब पांच दशकों से अपनी मधुर धुनों के जरिए श्रोताओं को दीवाना बनाए रखने वाले बॉलीवुड के जाने-माने संगीतकार खय्याम संगीतकार नहीं बल्कि अभिनेता बनना चाहते थे।

खय्याम मूल नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी का जन्म अविभाजित पंजाब में नवांशहर जिले के राहोन गांव में 18 फरवरी 1927 को हुआ था । बचपन के दिनों से हीं खय्याम का रूझान गीत-संगीत की ओर था और वह फिल्मों में काम कर शोहरत की बुलदियो तक पहुंचना चाहते थे । खय्याम अक्सर अपने घर से भागकर फिल्म देखने शहर चले जाया करते थे । उनकी इस आदत से उनके घर वाले काफी परेशान रहा करते थे । खय्याम की उम्र जब महज 10 वर्ष की थी तब वह बतौर अभिनेता बनने का सपना संजाेये अपने घर से भागकर अपने चाचा के घर दिल्ली आ गये । खय्याम के चाचा ने उनका दाखिला स्कूल में करा दिया लेकिन गीत-संगीत और फिल्मों के प्रति उनके आर्कषण को देखते हुये उन्होंने खय्याम को संगीत सीखने की अनुमति दे दी ।

खय्याम ने संगीत की अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंडित अमरनाथ और पंडित हुस्नलाल-भगतराम से हासिल की। इस बीच उनकी मुलातात पाकिस्तान के मशहूर संगीतकार जी.एस.चिश्ती से हुयी। जी.एस चिश्ती ने खय्याम को अपनी

रचित एक धुन सुनाई और खय्याम से उस धुन के मुखड़े को गाने को कहा । खय्याम की लयबद्ध आवाज को सुन जी.एस.चिश्ती ने खय्याम को अपने सहायक के तौर पर अनुबंधित कर लिया ।

लगभग छह महीने तक जी.एस.चिश्ती के साथ काम करने के बाद खय्याम वर्ष 1943 में लुधियाना वापस आ गए और उन्होंने काम की तलाश शुरू कर दी। द्वितीय विश्व युद्ध का समय था और सेना में जोर.शोर से भर्तियां की जा रही थीं। खय्याम सेना मे भर्ती हो गये। सेना में वह दो साल रहे। खय्याम एक बार फिर चिश्ती बाबा के साथ जुड़ गये। बाबा चिश्ती से संगीत की बारीकियां सीखने के बाद खय्याम अभिनेता बनने के इरादे से मुम्बई आ गए । वर्ष 1948 में उन्हें बतौर अभिनेता एस. डी.नारंग की फिल्म ‘ ये है जिंदगी ’ में काम करने का मौका मिला लेकिन इसके बाद बतौर अभिनेता उन्हें किसी फिल्म में काम करने का मौका नही मिला। इस बीच खय्याम बुल्लो सी.रानी अजित खान के सहायक संगीतकार के तौर पर काम करने लगे ।

   वर्ष 1950 में खय्याम को फिल्म ‘ बीबी ’ को संगीतबद्ध किया । मोहम्मद रफी की आवाज में संगीतबद्ध उनका यह गीत ..अकेले में वो घबराये तो होंगे ..खय्याम के सिने करियर का पहला हिट गीत साबित हुआ । वर्ष 1953 में खय्याम को जिया सरहदी की दिलीप कुमार -मीना कुमारी अभिनीत फिल्म ..फुटपाथ .. में संगीत देने का मौका मिला । यूं तो इस फिल्म के सभी गीत सुपरहिट हुये लेकिन फिल्म का यह गीत ..शामें गम की कसम.. श्रोताओं के बीच आज भी शिद्दत के साथ सुने जाते है ।

अच्छे गीत-संगीत के बाद भी फिल्म फुटपाथ बॉक्स ऑफिस पर असफल साबित हुयी । इस बीच खय्याम फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे ।वर्ष 1958 मे प्रदर्शित फिल्म ..फिर सुबह होगी ..खय्याम के सिने करियर की पहली हिट साबित हुयी लेकिन खय्याम को इस फिल्म में संगीत देने के लिये काफी अड़चनों का सामना करना पड़ा ।

फिल्म फुटपाथ के निर्माण के पहले फिल्म अभिनेता राजकपूर यह चाहते थे कि फिल्म का संगीत उनके पंसदीदा संगीतकार शंकर जयकिशन का हो लेकिन गीतकार साहिर लुधियानवी इस बात से खुश नही थे। उनका मानना था कि

फिल्म के गीत के साथ केवल खय्याम हीं इंसाफ कर सकते है तब बाद में फिल्म निर्माता रमेश सहगल और साहिर ने राजकपूर के सामने यह प्रस्ताव रखा कि केवल एक बार वह खय्याम की बनायी धुन को सुन ले और बाद में अपना विचार रखें ।खय्याम ने फिल्म के टाइटिल गाने ..वो सुबह कभी तो आयेगी ..के लिये लगभग छह धुनें तैयार की और उसे राजकपूर को सुनाया ।राजकपूर को खय्याम की बनायी सारी धुने बेहद पंसद आयी और अब उन्हें खय्याम के

संगीतकार होने से कोई एतराज नही था ।

यह साहिर लुधिनायनवी के ख्य्याम के प्रति विश्वास का हीं नतीजा था कि ..वो सुबह कभी तो आयेगी ..को आज भी क्लासिक गाने के रूप में याद किया जाता है ।वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म ..शोला और शबनम .. में मोहम्मद रफी की आवाज में गीतकार कैफी आजमी रचित ..जीत हीं लेगें बाजी हम तुम ..और जाने क्या ढ़ूंढती रहती है ये आंखे मुझमें ..को संगीतबद्ध कर खय्याम ने अपनी संगीत प्रतिभा का लोहा मनवा लया और अपना नाम फिल्म इंडस्ट्री के महानतम संगीतकारो में दर्ज करा दिया ।


      सत्तर के दशक में की ख्य्याम की फिल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रही । इसके बाद निर्माता .निर्देशकों ने ख्य्याम की ओर से अपना मुख मोड़ लिया लेकिन वर्ष 1976 मे प्रदर्शित फिल्म ..कभी कभी के संगीतबद्ध गीत की कामयाबी के बाद खय्याम एक बार फिर से अपनी खोयी हुई लोकप्रियता पाने में सफल हो गये ।

फिल्म कभी कभी के जरिये खय्याम और साहिर की सुपरहिट जोड़ी ने “ कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है ” , “ मैं पल दो पल का शायर हूँ ” जैसे गीत-संगीत के जरिये श्रोताओं को नायाब तोहफा दिया। इन सबके साथ हीं फिल्म कभी- कभी के लिये साहिर लुधियानवी सर्वश्रेष्ठ गीतकार और खय्याम सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये ।

इसके बाद खय्याम ने त्रिशूल .नूरी .थोड़ी सी बेवफाई जैसी फिल्मों में अपने संगीतबद्ध सुपरहिट गीतो के जरिये श्रोताओं का मन मोहे रखा । वर्ष 1981 में प्रदर्शित फिल्म ..उमराव जान ..न सिर्फ खय्याम के सिने करियर साथ हीं पार्श्वगायिका आशा भोंसले के सिने करियर के लिये अहम मोड़ साबित हुयी । पाश्चात्य धुनों पर गाने मे महारत हासिल करने वाली आशा भोंसले को जब संगीतकार खय्याम ने फिल्म की धुने सुनाई तो आशा भोंसले को महसूस हुआ कि शायद वह इस फिल्म के गीत नहीं गा पायेगी ।

फिल्म उमराव जान से आशा भोंसले एक कैबरे सिंगर और पॉप सिंगर की छवि से बाहर निकली और इस फिल्म के लिये “ दिल चीज क्या है ” और “ इन आंखो की मस्ती के ” जैसी गजलें गाकर आशा को खुद भी आश्चर्य हुआ कि वह इस तरह के गीत भी गा सकती है । इस फिल्म के लिये आशा भोंसले को न सिर्फ अपने करियर का पहला नेशनल अवार्ड प्राप्त हुआ साथ हीं खय्याम भी सर्वश्रेष्ठ संगीतकार राष्ट्रीय और फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये ।

नब्बे के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में गीत-संगीत के गिरते स्तर को देखते हुये खय्याम ने फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया । वर्ष 2006 में खय्याम ने फिल्म ..यात्रा ... में अरसे बाद फिर से संगीत दिया , लेकिन अच्छे संगीत के बावजूद फिल्म फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नकार दी गयी । अपने जीवन के 90 बसंत देख चुके खय्याम इन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय नहीं है ।

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