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सादगी की मिसाल राय दा ने आजीवन पेंशन नहीं ली

धनबाद 21 जुलाई (वार्ता) देश की कोयला राजधानी धनबाद में शोषित मजदूरों की पीड़ा से आहत होकर केमिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़ वामपंथी राजनीति की डोर थामने वाले अरुण कुमार राय (ए. के. राय) सेवा के लिए न तो शादी की, न सांसद का पेंशन लिया वहीं, आजीवन पार्टी कार्यालय में रहकर राजनीतिक क्षेत्र में ईमानदारी और सादगी की नयी मिशाल पेश की है।
सिंदरी उर्वरक कारखाने में केमिकल इंजीनियर बनकर आये राय दा (ए. के. राय) कोयला मजदूरों की पीड़ा और शोषण से व्यथित होकर आंदोलनकारी बन गए। देखते-देखते केमिकल इंजीनियर श्री राय वामपंथ की राह पर चल पड़े। इंजीनियर का पेशा छोड़ सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में सक्रिय हो गए। राय दा के उर्वरक कारखाने में हड़ताल (1966-67) का समर्थन करने के कारण प्रबंधन ने उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद वह मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) में शामिल होकर राजनीति में पदार्पण किया। वह 1966-71 तक माकपा में सक्रिय रहे। इसके बाद अपनी अलग पार्टी मार्क्सवादी समन्वय समिति (एमसीसी) का गठन किया।
सिंदरी विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक और धनबाद के तीन बार सांसद रहे राय दा ने धनबाद के पुराना बाजार स्थित एमसीसी कार्यालय को ही अपना घर बना लिया। विधायक और सांसद रहने के बावजूद वह अपना भोजन खुद पकाते और कार्यालय की साफ-सफाई भी खुद ही करते थे। जब तक शरीर स्वस्थ रहा (1971-2012) तब तक यह दिनचर्या जारी रही। राय दादा के पास संपत्ति के नाम पर न तो जमीन-जायदाद और न ही बैंक बैलेंस था।
राय दा जब अस्वस्थ रहने लगे तो उन्हें झरिया के नजदीक नुनूडीह निवासी और पार्टी कार्यकर्ता सुबल गोराई का आसरा मिला। सुबल अपने घर में रख राय दा की देखभाल किया करते थे। पिछले पांच साल में कई बार तबियत खराब होने के बाद श्री राय को भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) के सरायढेला स्थित सेंट्रल अस्पताल में भर्ती कराया गया। वह हर बार स्वस्थ होकर घर लाैटते रहे लेकिन आज (21 जुलाई 2019) को उनकी सांसों ने साथ छोड़ दिया।
सूरज
जारी (वार्ता)
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