Thursday, Apr 18 2024 | Time 17:29 Hrs(IST)
image
राज्य


संसद अखाड़े जैसा, लोकतांत्रिक संस्थाएं कर रही है विश्वसनीयता की कमी का सामना: मुखर्जी

संसद अखाड़े जैसा, लोकतांत्रिक संस्थाएं कर रही है विश्वसनीयता की कमी का सामना: मुखर्जी

अहमदाबाद, 17 नवंबर (वार्ता) पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि देश में लोकतांत्रिक संस्थाएं विश्वसनीयता की कमी का सामना कर रही हैं और संसद तथा विधानमंडल अखाड़ों में तब्दील हो गये दिखते हैं।

श्री मुखर्जी ने आज यहां भारतीय प्रबंधन संस्थान यानी आईआईएम अहमदाबाद में अपने संबोधन में कहा कि लोकतांत्रिक संस्थाओं में लोगों की विश्वास की पुनर्बहाली नेताओं की कथनी और करनी में अंतर को कम कर किया जा सकता है। लोगों की विश्वास बहाली के लिए ऐसी संस्थाओं, जो विकास का मूल आधार हैं, में नये सिरे से बदलाव की भी जरूरत है।

उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में इन संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये गये हैं। बेहतरीन से बेहतरीन विरासत को भी निरंतर सार-संभाल की जरूरत होती है। अपनी लोकतांत्रिक संस्थाएं दबाव में हैं। संसद भी चर्चा-विचारणा की जगह के बजाय लड़ाई का अखाड़ा जैसा बन गया है।

श्री मुखर्जी ने कहा कि अब जब ऐसी संस्थाएं दबाव में है, यह गंभीर चिंतन का समय है और सुधार अंदर से ही होना चाहिए। ऐसी संस्थाएं राष्ट्रीय चरित्र का आइना होती है। आज लोगों में ऐसी संस्थाओं के प्रति बड़े पैमाने पर मोहभंग और आलोचनापूर्ण नजरिया दिखता है। हमारी विधायिकाएं अखाड़े जैसी अधिक दिखती हैं। भ्रष्टाचार भी एक बड़ी चुनौती है। देश का बहुमूल्य संसाधन बर्बाद हो रहा है जो समाज की गतिमानता को खोखला कर रहा है। हमे फिर से पिछड़ा बनाने वाली इस बात को सुधारने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि संविधान में प्रस्तावित विभिन्न संस्थाओं के बीच सत्ता संतुलन को बनाये रखने की जरूरत है। हमे ऐसे संसद की जरूरत है जो चर्चा और निर्णय करे। ऐसी न्यायपालिका चाहिए जो बिना विलंब के निर्णय दे। हमे ऐसे नेताओं की जरूरत है जो देश और ऐसे मूल्यों जिन्होंने हमे एक महान सभ्यता बनाया, के प्रति समर्पित हो। हमे ऐसे मीडिया और जनता की भी जरूरत है जो अपने अधिकारों की बात करते समय अपने कर्तव्याें के प्रति भी उतना ही संकल्पित हो।

श्री मुखर्जी ने कहा कि जब संस्थाएं विफल होती है तो लोग मूढ़ता और खोये होने के जैसा महूसस करते हैं। उन्हें यह पता हीं नहीं चल पाता है कि अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कहां जायें। इससे जनता में गुस्सा पैदा होता है जो हिंसा में तब्दील हो जाता है। यह गुस्सा समाज में असंतुलन और कानून विहिनता की स्थिति को दर्शाता है। अगर हमे अपने लोकतंत्र को बचाना है तो बिना और देरी किये अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं में बदलाव करना होगा। नेताओं और संस्थाओं को लोगों से लगातार संवाद बनाये रखना होगा और उनकी समस्याओं को सुनना, महसूस करना और उसके हिसाब से प्रतिक्रिया देनी होगी।

पूर्व राष्ट्रपति ने अपने लंबे व्याख्यान में देश की आर्थिक स्थित, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण समेत कई मुद्दों पर भी विस्तार से चर्चा की।

रजनीश

वार्ता

image