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हर्बल उत्पादों के विकास और गुणवत्ता नियंत्रण पर मंथन करने नवाब नगरी में जुटेंगे विशेषज्ञ

लखनऊ 21 फरवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में शुक्रवार से शुरू होने वाले ‘23वें नेशनल कन्वेंशन ऑफ सोसायटी ऑफ फार्माकोग्नोसी’ के दो दिवसीय सम्मेलन में देश विदेश के विशेषज्ञ औषधीय पौधों की गुणवत्ता का नियंत्रण, हर्बल दवा अनुसंधान में आधुनिक उपकरण और तकनीक, ग्रामीण उद्यमिता और स्टार्ट-अप के अवसरों पर विचार साझा करेंगे।
राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के निदेशक डा संतोष कुमार बारिक ने गुरूवार को बताया कि सम्मेलन में पौधों की विविधता, जैव रसायन, जैवपूर्वेक्षण और फार्माकोग्नॉसी, हर्बल उत्पाद विकास, और गुणवत्ता नियंत्रण के लिये औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय पौधों के कीमोप्रोफाइलिंग जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को विचार विमर्श किया जायेगा जिनका आज हर्बल दवा उद्योग और शोधकर्ता सामना कर रहे हैं।
सीएसआईआर-एनबीआरआई, सोसायटी ऑफ फार्माकोग्नॉसी (भारत) और भारतीय फार्माकोपिया आयोग (आईपीसी) गाजियाबाद, के सहयोग से आयोजित इस सम्मेलन में देश विदेश के 350 से अधिक स्नातक / स्नातकोत्तर छात्रों और शोधकर्ताओं समेत 500 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। यह सम्मेलन उन्हें फार्माकोग्नॉसी विशेषज्ञों के साथ चिह्नित मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और अपने अनुभव का आदान-प्रदान करने के लिए एक मंच प्रदान करेगा।
उन्होने कहा कि सम्मेलन में सीडीआरआई के पूर्व निदेशक पद्मश्री डा. नित्यानंद, सीडीआरआई के ही पूर्व निदेशक डा. वीपी कम्बोज, बायोटेक पार्क के पूर्व सीईओ डा. पीके सेठ के अलावा डा एन आर सेठ, जीएन सिंह और बाला कृष्णन समेत देश के कई जानेमाने चेहरे भाग लेंगे।
प्रो बारिक ने उम्मीद जतायी कि इस सम्मेलन में अनुसंधान के निष्कर्षों और नए तकनीकी विकास को साझा किया जाएगा और क्षेत्र के विकास को एक फास्ट ट्रैक मोड में रखने के लिए हस्तक्षेप के क्षेत्रों की पहचान की जाएगी। उन्होने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल में औषधीय पौधों का उपयोग एक लंबा इतिहास रहा है। पादप रसायनों पर आधारित दवा की खोज कई दशकों तक आधुनिक दवा अनुसंधान का मुख्य आधार रही है। आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी सहित दवाओं की सभी पारंपरिक प्रणालियां काफी हद तक औषधीय पौधों पर निर्भर हैं।
उन्होने कहा कि हर्बल उपचार के दुष्प्रभावों की कम संभावना को देखते हुए, औषधीय पौधों और संबंधित उत्पादों की मांग दुनिया भर में लगातार बढ़ रही है। भारत के पास अपने 6500 प्रलेखित औषधीय पौधों और कई पारंपरिक
ज्ञान प्रणालियों के साथ वैश्विक बाजार में अपने लिए एक विशेष जगह बनाने का यह एक अनूठा अवसर है। दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन वित्त-पोषक एजेंसियों जैसे साइंस फॉर इक्विटी एम्पावरमेंट एंड डेवलपमेंट (सीड) विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (एनएमपीबी), राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (एनबीए) और नाबार्ड के सहयोग के माध्यम से किया जा रहा है।
प्रदीप
वार्ता
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