बलरामपुर 21 मई (वार्ता) कभी पूर्व प्रधानमंत्री एवं भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की कर्मभूमि बलरामपुर संसदीय सीट का अस्तित्व 2008 में परिसीमन में भले ही समाप्त हो गया हो मगर इस प्रक्रिया में सृजित श्रावस्ती लोकसभा सीट पर मौजूदा आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच कांटे की टक्कर नजर आ रही है।
भाजपा ने इस चुनाव में आईपीएस अधिकारी रहे साकेत मिश्र पर अपना दांव लगाया है जबकि सपा ने मौजूदा सांसद रामशिरोमणि वर्मा को चुनावी रण में भाग्य आजमाने का मौका दिया है। साकेत पूर्व में IPS बने, फिर कई वर्षों तक सिंगापुर में बैंकिंग सेक्टर का अनुभव भी लिया। तत्पश्चात पिता के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफी करीबी होने के कारण उनकी रुचि राजनीति में बढ़ने लगी और उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की जिसके बाद उन्हे विधान परिषद सदस्य का पद मिला।
दरअसल, साकेत मिश्रा के पिता नृपेंद्र मिश्र वर्ष 2014 से 2019 तक श्री मोदी के प्रधान सचिव रहे थे। बाद में नृपेंद्र मिश्र ने अगस्त 2019 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। फिर उन्हें नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय के कार्यकारी परिषद के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था लेकिन जब अयोध्या में राममंदिर निर्माण की तारीख तय हुई तो नृपेंद्र मिश्र को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी गयी।
पिता के पीएम मोदी के बेहद करीबी होने के कारण भाजपा ने साकेत को श्रावस्ती से मौका दे दिया, साकेत पिछले करीब तीन वर्षों क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाये हुये हैं। इधर, सांसद रामशिरोमणि वर्मा की बात करें तो श्रीवर्मा ने अंबेडकर नगर से पहुंचकर कर 2019 का लोकसभा चुनाव श्रावस्ती से हाथी पर सवार होकर कमल के निशान से लड़ रहे दद्दन मिश्र को मात्र करीब साढ़े छह हजार मतों से शिकस्त देकर दिल्ली का रास्ता तय किया l लेकिन इस बार चुनाव के ऐंन वक्त पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में वर्मा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। सांसद वर्मा ने भी मौके की नजाकत को भांपते हुए साइकिल पर सवार होकर अखिलेश यादव से सपा का टिकट हासिल कर लिया और पुनः संसद पहुंचने के स्वप्न संग श्रावस्ती के चुनावी कुरुक्षेत्र में कूद पड़े।
कुल मिलाकर अपना अस्तित्व श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र में परिसीमन के कारण विलीन होते देखने वाले बलरामपुर को बाहरी व्यक्तियों को ही क्षेत्र का नेतृत्व सौंपने पर एक बार फिर मजबूर होना पड़ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने 1957 में भारतीय जनसंघ से संसद में बलरामपुर संसदीय सीट से पहली बार क्षेत्र का नेतृत्व किया जिसके बाद 1962 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सुभद्रा जोशी सांसद चुनी गयी ,1967 में अटल जी ने भारतीय जनसंघ से पुनः जीत हासिल की । फिर जब 1971 में चुनाव हुये तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने बाजी मार ली और चन्द्र भान मणि तिवारी को दिल्ली पहुंचा दिया।
1977 में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर नानाजी देशमुख संसद पहुंचे। इसी प्रकार 1980 के चुनाव में बलरामपुर की भोली भाली जनता ने पुनः चन्द्रभान मणि तिवारी को दिल्ली भेज दिया । बाहरी उम्मीदवार के बलरामपुर से भाग्य आजमाने का सिलसिला यूंही चलता रहा और फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निशान पर लड़कर महंत दीपनारायण बन 1989 में निर्दलीय प्रत्याशी फसी उर रहमान उर्फ मुन्नन खान,1991 और 1996 में सत्यदेव सिंह भारतीय जनता पार्टी से,1998 व 1999 में समाजवादी पार्टी से रिजवान जहीर ने बलरामपुर सीट पर कब्जा जमाया और दिल्ली गए l लेकिन 2004 में कैसरगंज से मौजूदा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने भाजपा से जीत हासिल कर ली।
बाहरी प्रतिनिधियों को संसद भेजते भेजते 2008 में बलरामपुर का ऐसा दुर्भाग्य जागा कि पिछड़ेपन का दंश झेलते झेलते बलरामपुर संसदीय सीट ने अपना अस्तित्व भी खो दिया और परिसीमन के चक्रव्यूह में फंसकर नवसृजित श्रावस्ती लोकसभा में विलीन हो गयी। इसके बाद 2009 में सपा नेता विनय कुमार पांडेय उर्फ बिन्नू पांडेय विजयी हुये, फिर 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुये चुनाव में श्रावस्ती के ही रहने वाले दद्दन मिश्रा कमल लेकर दिल्ली भेजे गए लेकिन 2019 में अतिआत्मविश्वास के चक्कर में दद्दन अपने ही इलाके से हार गए और बीजेपी के जलजले के दौरान हुये चुनाव में जनता ने हाथी निशान से राम शिरोमणि वर्मा को जातीय समीकरण के कारण संसद भेज दिया।
इस बार भी मैदान में रामशिरोमणि तो है लेकिन उन्हें भाजपा से जोरदार टक्कर देने वाले साकेत मिश्र है l चर्चा ये भी जोरदार है कि सपा नेतृत्व द्वारा कुछ दिन पूर्व श्रीवर्मा का टिकट बदलकर पूर्व विधायक धीरेंद्र प्रताप सिंह उर्फ धीरू सिंह को थमा दिया गया था लेकिन अगले ही दिन पुनः रामशिरोमणि वर्मा को फिर से सपा का सिंबल दे दिया। सपा नेतृत्व के इस तुगलकी फैसले से क्षेत्र में धीरू समर्थक नाराज हो गए है लेकिन देखना है कि आगामी 25 मई को होने वाले चुनाव में इसका प्रभाव पड़ेगा या नतीजा और होगा।
सं प्रदीप
(वार्ता)