चेन्नई 12 फरवरी (वार्ता) मद्रास उच्च न्यायालय ने बुधवार को अन्नाद्रमुक नेतृत्व विवाद से उत्पन्न अंतर पार्टी विवादों की याचिकाओं पर से रोक हटा दी एवं मामले पर भारत चुनाव आयोग को (ईसीआई) को आगे बढ़ने की अनुमति दे दी।
यह आदेश अन्नाद्रमुक महासचिव और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) के लिए एक झटका माना जा रहा है।
न्यायमूर्ति आर सुब्रमण्यम और जी अरुल मुरुगन की पीठ ने निर्देश दिया कि चुनाव आयोग को पहले खुद को संतुष्ट करना चाहिए कि कोई विवाद मौजूद है जिसके बाद ही वह मामले पर आगे बढ़ सकता है।
पीठ ने कहा कि ईसीआई को आगे बढ़ने और निर्णय लेने से पहले चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैराग्राफ 15 के मापदंडों के अनुसार प्रतिनिधित्व पर सख्ती से विचार करना चाहिए। प्रारंभिक चरण में चुनाव आयोग को केवल यह पता लगाने और संतुष्ट होने तक ही सीमित रहना चाहिए कि कोई विवाद था या नहीं। इस प्रारंभिक जांच के बाद ही चुनाव आयोग यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि क्या उसके पास आगे की कार्यवाही करने का अधिकार है।
विभाजन के बाद गुटों के अस्तित्व का पता लगने पर चुनाव आयोग के पास यह तय करने का अधिकार है कि कौन पार्टी का प्रतिनिधित्व करता है और कौन चुनाव चिन्ह का हकदार है।
उच्च न्यायालय ने नौ जनवरी 2025 को निष्कासित अन्नाद्रमुक सदस्यों द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष लंबित सभी कार्यवाही के खिलाफ स्थगन दे दिया था जिसमें पूर्व लोकसभा सांसद पी रवींद्रनाथ, निष्कासित नेता और तमिलनाडु के पूर्व उपमुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेल्वम (ओपीएस) के बेटे जो अपने गुट का नेतृत्व कर रहे और उनके वफादार पूर्व सांसद केसी पलानीसामी, वी. पुगाझेंडी और तीन अन्य शामिल हैं।
ईपीएस द्वारा दायर एक याचिका पर स्थगन दिया गया था जिसमें याचिकाकर्ताओं के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी गई थी क्योंकि वे सभी पार्टी से निष्कासित थे और चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र को एक सुलझा हुआ अंतर-पार्टी विवाद तय करने के लिए दिया गया था।
न्यायालय के आज के आदेश के बाद अब यह मामला चुनाव आयोग के समक्ष है कि या तो याचिकाओं को खारिज कर दिया जाए या फिर अन्नाद्रमुक के प्रतिष्ठित 'दो पत्तियों' के चुनाव चिह्न को फ्रीज कर दिया जाए और 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले ईपीएस को इससे वंचित कर दिया जाए।
अपने और ईपीएस के नेतृत्व में दोहरे नेतृत्व को जारी रखने पर जोर देने के बाद ओपीएस ने ईपीएस के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक में एकात्मक नेतृत्व की बहाली का विरोध करते हुए विद्रोह का झंडा बुलंद किया,जो राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता भी हैं अधिकांश विधायकों और 2,900 से अधिक जनरल काउंसिल (जीसी) सदस्यों के समर्थन से जुलाई 2021 में जीसी की बैठक हुई जिसमें सर्वसम्मति से ईपीएस को पार्टी महासचिव चुना गया और ओपीएस और उनके समर्थकों को निष्कासित कर दिया गया।
एस सूर्य मूर्ति ने नेतृत्व विवाद से संबंधित लंबित दीवानी मुकदमों का हवाला देते हुए पिछले साल फरवरी में लोकसभा चुनाव से पहले अन्नाद्रमुक के चुनाव चिह्न को फ्रीज करने की याचिका के साथ सबसे पहले चुनाव आयोग से संपर्क किया था। उन्होंने उच्च न्यायालय में भी याचिका दायर कर चुनाव आयोग को उनके अभ्यावेदन पर कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की लेकिन पिछले दिसंबर में पीठ ने इसे खारिज कर दिया। चुनाव आयोग ने सूचित किया था कि वह चार सप्ताह के भीतर इस पर निर्णय लेगा।
चुनाव आयोग ने बाद में अन्नाद्रमुक और निष्कासित सदस्यों को नोटिस जारी किए जिन्होंने अभ्यावेदन किया था, जिसके बाद ईपीएस ने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिस पर न्यायालय ने पिछले महीने रोक लगा दी थी और आज इसे हटा दिया।
गौरतलब है कि जब न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने स्थगन देते हुए यह जानना चाहा कि चुनाव आयोग उच्च न्यायालय में लंबित अंतर-पार्टी दीवानी विवादों पर कैसे निर्णय ले सकता है तो चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि उसे अभी यह तय करना है कि अभ्यावेदन पर विचार करने का उसके पास अधिकार क्षेत्र है या नहीं।
जांगिड़ अशोक
वार्ता