राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Jan 26 2025 6:07PM मैथिली भाषा का मानकीकरण समय की मांग : कुलपतिदरभंगा 26 जनवरी (वार्ता) बिहार में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर लक्ष्मी निवास पांडेय ने कहा कि मैथिली भाषा का मानकीकरण वर्तमान समय की अत्यावश्यक मांग है। प्रो. पांडेय ने रविवार को यहां सीतायन सभागार में आयोजित "मैथिली भाषा शोध परिषद" के विद्वत परिषद के उद्घाटन सत्र के दौरान अपने संबोधन में भाषाओं के संरचनात्मक पहलुओं को रेखांकित करते हुए कहा, "किसी भी भाषा के तीन रूप होते हैं भाषा, उपभाषा और बोली। जब तक इन तीनों में एकरूपता रहती है तब तक भाषा की मर्यादा बनी रहती है।" उन्होंने संस्कृत का उदाहरण देते हुए कहा कि यह भाषा हजारों वर्षों से अपने मूल रूप में संरक्षित है। भाषा की दीर्घजीविता के लिए संवाद शैली और परिवर्तनकारी नियम आवश्यक हैं। उन्होंने कहा कि कोस-कोस पर पानी और वाणी बदलते हैं लेकिन भाषा में एकरूपता होना जरूरी है। मैथिली में विभिन्न बोलियों और उपभाषाओं की विविधता है, जो हिंदी में भी देखने को मिलती है। नयी शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में शिक्षा की जो पहल हुई है उससे मैथिली को निश्चित रूप से लाभ होगा। कार्यक्रम में विशेष रूप से आमंत्रित नेपाल के प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक डॉ. रामावतार यादव ने मैथिली में मानकीकरण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा, "दुनिया की सभी दीर्घजीवी भाषाएं बोलने में भले अलग-अलग शैली का अनुसरण करती हैं लेकिन लिखने और पढ़ने में एकरूपता बनाए रखती हैं। मैथिली में इस एकरूपता का अभाव है।" उन्होंने बताया कि मैथिली में मानकीकरण पर वर्षों से कार्य हो रहा है लेकिन इसे और गति देने की आवश्यकता है। उन्होंने आगाह किया कि जिन भाषाओं में एकरूपता नहीं होती उन्हें भविष्य में संकट का सामना करना पड़ सकता है। मैथिली के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार डॉ. भीमनाथ झा ने कहा, "हम सबसे पहले अपनी मातृभाषा सीखते हैं लेकिन स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई दूसरी भाषा में होने से बच्चे धीरे-धीरे अपनी मातृभाषा से दूर हो जाते हैं। हालांकि, परिवर्तन शाश्वत है लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि मैथिली अब संविधान में मान्यता प्राप्त भाषा है। इसे संरक्षित रखने के लिए मानक तय कर एकरूपता बनाना अनिवार्य है।" उन्होंने यह भी कहा कि कार्यक्रम में देशभर और नेपाल से आए मैथिली विद्वान इस दिशा में महत्वपूर्ण सुझाव देंगे, जिससे भाषा के विकास के लिए ठोस कदम उठाए जा सकें। पटना से आए डॉ. रमानंद झा रमण ने मैथिली भाषा के मानकीकरण के महत्व पर बल देते हुए कहा कि यह सच है कि मैथिली के सामने मानकीकरण की समस्या है लेकिन विद्वानों और सरकार के संयुक्त प्रयासों से यह समस्या अवश्य दूर होगी। चर्चित चिकित्सक डॉ. एम. के. शुक्ला ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि आज भी घरों में मैथिली बोली जाती है लेकिन जब बच्चों से मैथिली में बात की जाती है तो वे अन्य भाषाओं में उत्तर देते हैं। इसका कारण यह है कि घर के बाहर उनकी भाषा का माहौल मातृभाषा से भिन्न होता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों में मैथिली को पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों को मातृभाषा का ज्ञान देना चाहिए। कार्यक्रम में निजी विद्यालय जीसस एंड मेरी एकेडमी की निदेशक डॉ. मधुरिमा सिन्हा ने मैथिली भाषा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा, "मेरा जन्म मिथिला में हुआ है और मैथिली मेरी मातृभाषा है। मैं गर्व महसूस करती हूं कि यह हमारी पहचान है। यह समय की मांग है कि हर बच्चे को कम से कम एक विषय उसकी मातृभाषा में पढ़ाया जाए।" उन्होंने निजी विद्यालय संचालकों से आग्रह किया कि वे बच्चों को कम से कम 10 से 20 अंकों का पाठ्यक्रम मैथिली भाषा में प्रदान करें। यदि पूर्ण पाठ्यक्रम संभव न हो तो जनरल नॉलेज के माध्यम से मैथिली भाषा और मिथिलाक्षर का ज्ञान दिया जाए। उन्होंने कहा कि वह व्यक्तिगत स्तर पर इस दिशा में पहल करेंगी। सं. प्रेम सूरजवार्ता