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न्यायमूर्ति गवई पर जूता फेंकना भारत के संविधान, सामाजिक न्याय और दलित अस्मिता पर सीधा प्रहार है: तनुज पूनिया

पटना, 08 अक्टूबर (वार्ता) कांग्रेस के सांसद तनुज पुनिया ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश बी आर गवई पर जूता फेंकने की घटना को भारत के संविधान, सामाजिक न्याय और दलित अस्मिता पर सीधा प्रहार बताये हुये बुधवार को कहा कि उन्हें आश्चर्य है कि इस मामले में नीतीश कुमार, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी चुप क्यों हैं।
श्री पुनिया ने आज यहां बिहार प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय सदाकत आश्रम में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने दलितों को कलम की ताकत दी और आज जब एक दलित उस ताक़त का इस्तेमाल कर देश की सर्वोच्च न्यायिक कुर्सी पर बैठा है, तो लोग उसे जूते फ़ेंक कर डरा रहे है । उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विचारधारा से प्रेरित लोग लगातार मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ ज़हर उगल रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ऐसे आचरण की कठोर निंदा करती है और ऐसा लगता है कि “यह जूता भारत की संवैधानिक अस्मिता और बाबा साहेब के आदर्शों पर फेंका गया है।
कांग्रेस नेता ने कहा कि देश के दलितों के आत्मसम्मान पर जूता मारा गया और यह कितना शर्मनाक है कि नीतीश कुमार, जीतन राम मांझी तथा चिराग पासवान जैसे नेता, जो दलितों के वोट से राजनीति में आगे बढ़े हैं,इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जब एक दलित और वंचित समाज के सर्वोच्च प्रतिनिधि का अपमान हो रहा है, उस समय ऐसे बड़े नेताओं की चुप्पी राजनीतिक के साथ नैतिक दिवालियेपन की भी निशानी है।
श्री पुनिया ने बिहार में ग़रीबी की चर्चा करते हुए कहा कि जनता दल यूनाइटेड (जदयू) सरकार द्वारा सात नवम्बर 2023 को जारी जाति के हिसाब से सोशल-इकोनॉमिक रिपोर्ट ने बिहार की सच्चाई को उजागर कर दिया है। इस रिपोर्ट में बताया गया कि बिहार के 94.42 लाख परिवार,यानी हर तीसरा परिवार 200 रुपये प्रतिदिन या उससे भी कम पर गुजर-बसर कर रहा है और कुल 2.76 करोड़ परिवारों में से 64 प्रतिशत आबादी गरीबी और अभाव की गहरी खाई में गिरी हुई है। उन्होंने कहा कि बिहार में मुख्यरूप से अनुसूचित जातियों में मुसहर (54.5 प्रतिशत), भुइयां (53. प्रतिशत) और अनुसूचित जनजातियों में बिरहोर (78 प्रतिशत), चेरो (59.6 प्रतिशत), सौरिया पहाड़िया (56.5 प्रतिशत), और बंजारा (55.6 प्रतिशत) गरीबी रेखा से नीचे हैं। उन्होंने कहा कि इसका सीधा अर्थ यह है कि बिहार के संसाधनों को दलितों और गरीबों तक पहुँचाने में प्रदेश की सरकार नाकाम रही है।
शैलेश/प्रेम
जारी वार्ता
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