राज्य » अन्य राज्यPosted at: Mar 21 2025 7:04PM सीटीआर कब्जेधारियों के मामले में उप्र व उत्तराखंड में विवादनैनीताल, 21 फरवरी (वार्ता) उत्तराखंड के कालागढ़ में कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) के कोर जोन में काबिज 242 अतिक्रमणकारियों के पुनर्वास के मामले में उत्तर प्रदेश (उप्र.) और उत्तराखंड के बीच शुक्रवार को विवाद की स्थिति पैदा हो गयी। उत्तराखंड सरकार ने अवैध कब्जाधारियों को उप्र की जवाबदेही बताया जबकि उप्र की ओर से कहा गया कि यह उत्तराखंड की जिम्मेदारी है। अंत में अदालत ने एक महीने के अंदर केन्द्र सरकार की अगुवाई में दोनों राज्यों की संयुक्त बैठक कर समस्या का समाधान निकालने के निर्देश दिये हैं। दरअसल कालागढ़ में सीटीआर के कोर जोन में 242 अवैध कब्जेधारी कई दशकों से निवास कर रहे हैं। पौड़ी जिला प्रशासन की ओर से कब्जेधारियों को नोटिस जारी कर बेदखली की कार्रवाई की जा रही है। जिला प्रशासन के इस कदम को कालागढ़ जन कल्याण उत्थान समिति की ओर से एक जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से इन लोगों के पुनर्वास की मांग की गयी है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेन्दर और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ में आज इस मामले में सुनवाई हुई। मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी की अगुवाई में वित्त, राजस्व और सिंचाई विभाग के सचिव वर्चुअली पेश हुए। दूसरी ओर उप्र की ओर से कालागढ़ बांध में तैनात सिंचाई विभाग के सहायक अभियंता राहुल ढाका ने खंडपीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पक्ष रखा। श्रीमती रतूड़ी ने जोर देकर कहा कि कालागढ़ बांध पर पूरा नियंत्रण और अधिकार उप्र सरकार का है। इससे उत्तराखंड का कोई लेना देना नहीं है। बांध का पानी उप्र के सिंचाई का काम आता है। अवैध कब्जेधारी भी उप्र के श्रमिक और कर्मचारी हैं। तब इन्हें उप्र सरकार की ओर से बांध निर्माण के लिये यहां लाया गया था। उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन भूमि है। इस छोटे राज्य में न तो भूमि उपलब्ध है और न ही प्रदेश की बड़े स्केल पर वित्तीय भार वहन की क्षमता है। मुख्य सचिव ने यह भी कहा कि वर्ष 2016 में दिल्ली में हुई बैठक में उप्र के मुख्य सचिव ने इन श्रमिकों के पुनर्वास की बात पर अपनी सहमति दी थी। दूसरी ओर उप्र की ओर से इसका विरोध करते हुए कहा गया कि बांध पर उप्र सिंचाई विभाग का नियंत्रण है लेकिन इस मामले में हमारी कोई भूमिका नहीं है। यहां बने भवन और भूमि पर उप्र के अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं।याचिकाकर्ता की ओर से भी कहा गया कि कालागढ़ बांध के विद्युत उत्पादन पर उत्तराखंड का नियंत्रण है। साथ ही बांध बनने के बाद अवशेष भूमि का कुछ हिस्सा उप्र सिंचाई विभाग की ओर से वन विभाग को वापस लौटा दिया गया है। अदालत ने अंत में सभी पक्षों को सुनने के बाद केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण सचिव की अगुवाई में एक महीने के अंदर दोनों प्रदेशों के मुख्य सचिवों की संयुक्त बैठक कर मामले का समाधान निकालने के निर्देश दिये हैं। इस मामले में अगली सुनवाई आगामी 28 अप्रैल को होगी।रवीन्द्र.संजय वार्ता