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महाबोधि मंदिर प्रबंधन:बौद्ध समुदाय में असंतोष, सरकार से हस्तक्षेप की अपील

दार्जिलिंग 17 अप्रैल (वार्ता) भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति का पवित्र स्थल माना जाने वाला व विश्व धरोहर स्थल बिहार के गया ज़िले में स्थित बोधगया मंदिर आज सिर्फ एक धार्मिक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि यह मंदिर प्रबंधन को लेकर एक बार फिर गहरी संवेदनशीलता और संघर्ष का केंद्र भी बन गया है।
महाबोधि मंदिर के पूर्ण प्रशासन और नियंत्रण को बौद्ध धर्मावलंबियों को सौंपने की माँग को लेकर पिछले दो महीनों से शांति‍पूर्ण प्रदर्शन चल रहा है। इसी सन्दर्भ में गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के पूर्व प्रमुख एवं गोरखा समुदाय की प्रतिष्ठित नेता विनय तामाङ ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए भारत सरकार और बिहार सरकार से इस मामले में शीघ्र हस्तक्षेप की अपील की है।
श्री तामाङ का कहना है कि 1949 के ‘बोधगया टेम्पल एक्ट’ को अब समाप्त कर देना चाहिए, क्योंकि यह कानून उपनिवेशवादी सोच पर आधारित है, जिसमें बौद्ध समुदाय को उनके ही धर्मस्थल पर पूर्ण अधिकार नहीं दिया गया है। वर्तमान में मंदिर प्रबंधन समिति (बीटीएमसी) में चार बौद्ध, चार हिन्दू सदस्य और गया के ज़िलाधिकारी अध्यक्ष होते हैं — जिसे बौद्ध भिक्षु अस्वीकार्य मानते हैं।
उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों का स्पष्ट मत है कि महाबोधि मंदिर का आध्यात्मिक और ऐतिहासिक महत्व केवल तभी सुरक्षित रह सकता है जब उसका संचालन पूर्णतः बौद्ध धर्मावलंबियों द्वारा किया जाए। अन्य धार्मिक समुदायों की भागीदारी, चाहे प्रशासनिक ही क्यों न हो, मंदिर की मूल आत्मा और उद्देश्य को कमज़ोर करती है।
श्री तामाङ ने अपने वक्तव्य में बताया कि यह आंदोलन अब केवल धार्मिक नियंत्रण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समानता और अधिकारों के प्रश्नों से भी जुड़ गया है। भीम सेना, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर से जुड़ी संस्थाएँ और दलित समुदाय भी इस संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रहे हैं।
गौरतलब है कि महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को लेकर संघर्ष कोई नया विषय नहीं है। 12वीं शताब्दी के इस्लामी आक्रमणों के पश्चात मंदिर हिन्दू संन्यासियों के नियंत्रण में चला गया था। 19वीं शताब्दी में अनागारिक धर्मपाल द्वारा शुरू किया गया पुनरुद्धार आंदोलन इस स्वायत्तता की लड़ाई की ऐतिहासिक नींव माना जाता है।
वर्ष 1949 में बिहार सरकार ने बोधगया टेम्पल एक्ट लाकर एक साझा प्रबंधन ढाँचा प्रस्तुत किया, लेकिन यह आज तक बौद्ध समुदाय को संतुष्ट नहीं कर सका है। वर्ष 1990 में एक विधेयक का मसौदा तैयार हुआ था जिसमें मंदिर का पूर्ण प्रबंधन बौद्धों को देने की बात थी, पर वह आज तक पारित नहीं हो पाया।
महाबोधि मंदिर एक विश्व धरोहर स्थल है और दुनिया भर से बौद्ध श्रद्धालु आर्थिक सहयोग भेजते हैं। लेकिन इन विदेशी चंदों और दान राशि की पारदर्शिता और लेखापरीक्षण को लेकर भी गम्भीर सवाल उठ रहे हैं। बौद्ध समुदाय का आरोप है कि इस निधि का दुरुपयोग हो रहा है।
श्री तामाङ ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक मंदिर के प्रशासन का प्रश्न नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान, स्वाभिमान और आत्मनिर्णय का विषय है। उन्होंने भारत सरकार और बिहार सरकार से आग्रह किया कि वे समय रहते हस्तक्षेप करें और महाबोधि मंदिर के प्रबंधन को पूर्ण रूप से बौद्ध धर्मावलंबियों को सौंपने का ऐतिहासिक निर्णय लें।
सं.संजय
वार्ता
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