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खांसी की दवाईयां निष्क्रिय पदार्थ से बेहतर काम नहीं करतीं: डॉ. पुरोहित

शिमला, 09 अक्टूबर (वार्ता) महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सर्दी-खांसी से पीड़ित बच्चों की कफ सिरप से हुयी हालिया मौतों के बाद हजारों माता-पिता अपने बच्चों को दी जाने वाली कफ सिरप के हानिकारक प्रभावों को लेकर चिंतित हैं।
अस्पताल प्रशासकों के संघ के कार्यकारी सदस्य डॉ. नरेश पुरोहित ने गुरुवार को कहा कि बच्चों में अधिकांश खांसी ऊपरी श्वसन संक्रमण (यूआरआई) के कारण होती है जो आमतौर पर सात से 10 दिनों में अपने आप ठीक हो जाती है इसलिए कफ सिरप प्लेसीबो (निष्क्रिय पदार्थ) से बेहतर काम नहीं करते।
उन्होंने कहा, "विश्व स्वास्थ्य संगठन, अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स जैसी वैश्विक संस्थाएं बच्चों, विशेषकर छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों में ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) यानी बिना डॉक्टर के पर्चे के कफ सिरप का नियमित उपयोग नहीं करने की सलाह देती हैं।"
डॉ. पुरोहित ने आज यहां जारी एक बयान में कहा कि चूंकि कफ सिरप आसानी से बिना डॉक्टर के पर्चे के उपलब्ध होते हैं और माता-पिता को उनकी खुराक के बारे में सही जानकारी नहीं होती इसलिए डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी कफ सिरप का उपयोग नहीं करना चाहिए।
उन्होंने "समुदाय में बच्चों एवं वयस्कों में तीव्र खांसी के लिए ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाओं" पर हुये कई अध्ययनों का हवाला देते कहा कि इन अध्ययनों में बच्चों में डेक्सट्रोमेथोर्फन, गुआइफेनेसिन या एंटीहिस्टामाइन युक्त कफ सिरप से बहुत कम या कोई लाभ नहीं देखा गया।
प्रख्यात चिकित्सक ने कहा कि डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड सूखी खांसी को नियंत्रित करने के लिए बनाए गये अनेक कफ सिरपों में एक सामान्य घटक है। डॉक्टर की सलाह पर वयस्कों में यह आम तौर पर सुरक्षित एवं प्रभावी होता है। हालांकि अगर इसे सही तरीके से नहीं लिया जाए तो यह खासकर बच्चों में जोखिम उत्पन्न कर सकता है
बच्चे को दवाइयों की छोटी-सी ओवरडोज़ या दूषित पदार्थों से ज्यादा खतरा होता है क्योंकि वे अभी विकसित हो रहे होते हैं और उनके अंग अभी तक परिपक्व नहीं हुए होते हैं।
उन्होंने चेतावनी दी कि डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड का ज़्यादा सेवन करने से गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे सुस्ती, तेज़ धड़कन, दौरा, लिवर को नुकसान या सांस लेने में तकलीफ़ आदि जबकि गंभीर मामलों में इससे कोमा या मौत भी हो सकती है।
स्वास्थ्य मंत्री को भेजे गए एक ईमेल में इस मुद्दे पर अपनी चिंता एवं पीड़ा व्यक्त करते हुए, डॉ पुरोहित ने कहा कि यह लालच एवं लचर शासन की एक घिनौनी कहानी है जिसने भारतीय कफ सिरप को खुलेआम बिकने दिया जबकि लगभग तीन साल पहले गाम्बिया, उज्बेकिस्तान और इराक जैसे देशों में छोटे बच्चों की कई मौतों के बाद उनके कुछ फॉर्मूलेशन जांच के दायरे में आए थे।
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश में कम से कम 14 बच्चों की हाल ही में हुई मौतों ने भी दवा निर्माता, आपूर्ति श्रृंखला में शामिल लोगों या डॉक्टरों की अंतरात्मा को नहीं झकझोरा, जिन्होंने चेन्नई के एक विशेष निर्माता की कफ सिरप कोल्ड्रिफ को लिखना जारी रखा, जबकि औषधि नियंत्रण प्राधिकरण ने चेतावनी दी थी कि दवा में कथित रूप से जहरीला पदार्थ डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) मौजूद है।
डॉ. पुरोहित ने अभिभावकों को सलाह दी कि वे किसी भी बच्चे को खासकर छह साल से कम उम्र के बच्चों को बिना किसी पेशेवर डॉक्टर की सलाह के कफ सिरप न दें। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे फार्मासिस्ट की सलाह पर भरोसा न करें।
उन्होंने इस बात पर बल दिया कि माता-पिता और अभिभावक को हमेशा कफ सिरप के लेबल की जांच करनी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि यह बच्चे की उम्र के लिए सुरक्षित है और बच्चों को सर्दी के लिए खुद से दवाएं कभी नहीं देनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि सर्दी-ज़ुकाम की कई दवाओं में डेक्सट्रोमेथॉर्फन हाइड्रोब्रोमाइड भी होता है और इससे ओवरडोज़ हो सकता है। माता-पिता को सभी कफ सिरप का उपयोग करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और किसी भी दवा के प्रति अपने बच्चे की प्रतिक्रिया पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए।
डॉ पुरोहित ने कहा कि प्राधिकरणों को कड़ी गुणवत्ता नियंत्रण उपायों को लागू करना चाहिए और भविष्य में इस तरह की त्रासदियों से बचने के लिए फॉर्मूलेशन को मानकीकृत करना चाहिए।
अभय जितेन्द्र
वार्ता
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घायलों को सेठ रामनाथ सिविल अस्पताल जैतो लाया गया लेकिन बाद में उन्हें सिविल अस्पताल कोटकपूरा भेज दिया गया।
ठाकुर जितेन्द्र
वार्ता.

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