राज्य » राजस्थानPosted at: Mar 22 2025 9:01PM जल बचत के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत-सिंहजयपुर 22 मार्च (वार्ता) राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित श्री कर्ण नरेंद्र कृषि महाविद्यालय जोबनेर के कुलपति डा बलराज सिंह ने जल संकट की गंभीरता पर चिंता जताते हुए कहा है कि जल बचत एवं जल संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों की जरुरत है। डा सिंह विश्वविद्यालय में विश्व जल दिवस के अवसर पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में बोल रहे थे। इस वर्ष विश्व जल दिवस की थीम “ग्लेशियर संरक्षण” रही। डा सिंह ने जल संरक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वर्तमान जल संकट को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जल का सतत और समुचित उपयोग अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि भविष्य में यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन बन जाएगा। उन्होंने बताया कि बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे जल संकट गहराता जा रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत की जनसंख्या विश्व की 18 प्रतिशत है जो प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डाल रही है। जल संकट के अलावा खाद्य और पोषण सुरक्षा भी एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने सतत विकास के लिए जनसंख्या नियंत्रण और संसाधनों के संतुलित उपयोग पर बल दिया। उन्होंने राष्ट्र की स्थिरता के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग, खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता, खाद्य एवं पोषण सुरक्षा एवं व्यापक स्तर पर रोजगार सृजन को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने बताया कि कृषि क्षेत्र लगभग 50-52 प्रतिशत रोजगार उत्पन्न करता है, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। डा सिंह ने रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) तकनीक से पानी की बर्बादी को एक गंभीर समस्या बताया। उन्होंने कहा कि आरओ तकनीक पानी को शुद्ध करती है लेकिन इसके कारण अत्यधिक जल नष्ट होता है। इस समस्या के समाधान के लिए नई और उन्नत तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है, जिससे पानी की बर्बादी को कम किया जा सके। उन्होंने जल संरक्षण के लिए कई उपाय भी सुझाए जिनमें सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली (ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई), ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर प्रणाली से जल की सीधी और नियंत्रित आपूर्ति होती है, जिससे पानी की बर्बादी कम होती है।किसानों को काले रंग के ड्रिप पाइप की जगह सफेद रंग के ड्रिप पाइप का उपयोग करना चाहिए, ताकि ज्यादा गर्मी के दौरान पानी अधिक गर्म न हो और फसलों को नुकसान न पहुंचे। रेज्ड बेड तकनीक के साथ ड्रिप सिंचाई अपनाने से खेत में नमी बनी रहती है, जिससे प्याज में पर्पल ब्लॉच और अल्टरनेरिया ब्लाइट जैसी बीमारियों का संक्रमण कम होगा। छोटे किसानों के लिए कम दबाव वाली ड्रिप फर्टिगेशन तकनीक विकसित की गई है, जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, शामिल हैं। इसके अलावा ऐसी फसलें उगानी चाहिए जो कम पानी की आवश्यकता वाली हों। साथ ही, एक ही खेत में विभिन्न प्रकार की फसलें लगाकर जल उपयोग को संतुलित किया जा सकता है। पौधों के चारों ओर भूसे या पत्तों की परत बिछाने से मिट्टी में नमी बनी रहती है और पानी की आवश्यकता कम होती है। खेतों में जल संरक्षण संरचनाएं जैसे पक्के तालाब, चेक डैम, कंटूर बंडिंग आदि बनाकर वर्षा जल को संरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हमारे विश्वविद्यालय में भी वर्षा जल संचयन की बड़ी संरचना मौजूद है। हाइड्रोजेल पौधों की जड़ क्षेत्र (रूट ज़ोन) के चारों ओर जल भंडारण के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इसमें जैविक और पौधों पर आधारित हाइड्रोजेल का उपयोग किया जाता है। एरोपोनिक्स तकनीक से रोग-मुक्त आलू मिनी ट्यूबर का उत्पादन किया जा सकता है, जिसमें कम पानी की आवश्यकता होती है और जल की बर्बादी नहीं होती। यह विधि किसानों को अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता वाला उत्पादन प्रदान करने में सहायक होगी। कार्यक्रम के दौरान विभिन्न विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए पोस्टर प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।जोरावार्ता