जयपुर 13 मार्च (वार्ता) राजस्थान में कंटेनर निर्माताओं के लिए केंद्र बनने के लिए आवश्यक विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा है और राज्य में कम से कम पांच और कंटेनर विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित करने की जरुरत हैं ताकि 1.25 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार और 1.50 लाख से अधिक लोगों को अप्रत्यक्ष रोजगार मिल सके।
एमएसएमई निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसी) द्वारा जारी राजस्थान में निवेश, वृद्धि और विकास: 2020-21 से 2023-24 पर अध्ययन के दूसरे संस्करण पर राजस्थान (भिवाड़ी) बेस यूनिट डायमंड ब्लू शिपिंग सॉल्यूशंस के निदेशक पंकज कुमार ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही। उन्होंने कहा कि पहले ही रीको के सहयोग से उत्पादन को बढ़ाकर आठ हजर से 10 हजार कंटेनर प्रति वर्ष कर दिया है। कंपनी अगले दो वर्षों में इसे बढ़ाकर 12 हजार कंटेनर करने की इच्छुक है।
उन्होंने कहा कि हालांकि प्रमुख शिपिंग कंपनियां अपने पायलट ऑर्डर दे रही हैं लेकिन उत्पादन-लिंक्ड-इंसेंटिव (पीएलआई) का कार्यान्वयन न होने से सारी मेहनत बेकार हो रही है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में कंटेनर निर्माताओं के लिए केंद्र बनने के लिए आवश्यक विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचा है और राज्य में कम से कम पांच और कंटेनर विनिर्माण इकाइयों को आकर्षित करना चाहिए।
श्री कुमार ने कहा कि कंटेनर उत्पादन बढ़ाकर, विनिर्माण लागत कम करके तथा लॉजिस्टिक्स में सुधार करके भारत वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है, विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम कर सकता है तथा रणनीतिक रूप से स्थित अपने बंदरगाहों के माध्यम से माल का सुचारू परिवहन सुनिश्चित कर सकता है।
भारत में कंटेनर विनिर्माण की स्थापित क्षमता लगभग एक लाख पांच हजार टीईयू (बीस फुट समतुल्य इकाई) है, हालांकि उत्पादन सुविधाओं में सीमाओं के कारण सक्रिय क्षमता काफी कम है। वर्तमान में भारत में लगभग 10 आईएसओ कंटेनर विनिर्माण कंपनियां हैं जो 60 हजार से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करती हैं और सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों के साथ स्टार्ट-अप को बढ़ावा देने में सहायक हैं।
भारत के कंटेनर बाजार का आकार वर्ष 2030 तक 10.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है जो वर्ष 2025 से 2030 तक 2.7 प्रतिशत की सीएजीआर दर्ज करेगा। कंटेनरों की कमी और बढ़ती उपभोक्ता मांग के कारण कंटेनर जहाजों की मांग पहले से ही अभूतपूर्व है। परिणामस्वरूप भारत को ज्यादातर चीन से कंटेनर पट्टे पर लेने पड़ते हैं, जिससे लागत और बढ़ जाती है और भारत की अपने बंदरगाहों का पूर्ण उपयोग करने तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी पहलों का लाभ उठाने की क्षमता सीमित हो जाती है, जो कंटेनर क्षमता में वृद्धि की धारणा के आसपास निर्मित हैं।
एमएसएमई ईपीसी के चेयरमैन डा डी एस रावत ने कहा कि सरकार को नीतिगत ढांचे पर फिर से विचार करने और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने, रोजगार सृजन करने, निर्यात बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 40 फीट, 42 फीट, 20 फीट और विशेष कंटेनरों में अगले पांच सालों में 10 से 15 प्रतिशत की (सीएजीआर) वृद्धि दर्ज होने की उम्मीद है।
वर्तमान में भारत के कंटेनर हैंडलिंग बाजार के अगले तीन वर्षों में मौजूदा 12 मिलियन टीईयू से बढ़कर 26 मिलियन टीईयू तक पहुंचने की उम्मीद है। कंटेनर की पर्याप्त उपलब्धता के बिना भारत के बंदरगाहों को बढ़ती मांग को संभालने में संघर्ष करना पड़ सकता है और वैश्विक शिपिंग दिग्गज भारतीय बंदरगाहों की तुलना में अन्य केंद्रों को प्राथमिकता देते रहेंगे।
भारत में प्रतिवर्ष केवल 10 हजार से 30 हजार कंटेनरों का निर्माण होता है जबकि आवश्यकता साढ़े तीन लाख कंटेनरों की है। इसके विपरीत वैश्विक कंटेनर विनिर्माण बाजार पर अपना दबदबा रखते हुए चीन प्रतिवर्ष 2.5 से तीन मिलियन कंटेनरों का उत्पादन करता है।
जोरा
वार्ता