नयी दिल्ली, 19 मई (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय में लंबित कथित भ्रष्टाचार के एक मामले में दलित इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (डीआईसीसीआई) को सोमवार को अंतरिम राहत दी।
मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय द्वारा पारित अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी और निर्देश दिया कि डीआईसीसीआई को कार्यवाही में एक पक्ष के रूप में शामिल किया जाए।
डीआईसीसीआई शुरू में उच्च न्यायालय की कार्यवाही में पक्ष नहीं था, जिसकी अगली सुनवाई 21 मई को होनी है।
यह मामला तमिलनाडु सरकार की वार्षिक अंबेडकर बिजनेस चैंपियंस योजना (एएबीसीएस) के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार का आरोपों से संबंधित है।
शीर्ष अदालत ने आदेश दिया, “मौजूदा याचिकाकर्ताओं (डीआईसीसीआई) को प्रतिवादी के रूप में शामिल किया जाए। उच्च न्यायालय आवेदन पर विचार करे और सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश पारित करे। ऐसा आदेश पारित होने तक, इस आदेश ( उच्च न्यायालय के) को स्थगित रखा जाए।”
शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि मामले में कोई भी आगे की कार्रवाई करने से पहले उच्च न्यायालय को डीआईसीसीआई को अवश्य सुनना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी सवाल किया कि उच्च न्यायालय ने अपनी गर्मी की छुट्टियों के दौरान इस मामले को इतनी जल्दी क्यों उठाया।
पीठ की ओर से मुख्य न्यायाधीश गवई ने पूछा, “आखिर इतनी जल्दी क्या थी कि न्यायालय ने छुट्टियों के दौरान इस मामले को उठाया?”
यह मामला यूट्यूबर सवुक्कू शंकर द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) के माध्यम से शुरू किया गया था, जिन्होंने आरोप लगाया था कि एएबीसीएस योजना को मनमाने ढंग से और अवैध रूप से डीआईसीसीआई को सौंपा गया था।
उन्होंने आगे दावा किया कि डीआईसीसीआई नेताओं के तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी (टीएनसीसी) के अध्यक्ष और विधायक के सेल्वापेरुन्थगई से संबंध थे। साथ ही, यह भी दावा किया गया था कि इस योजना का लाभ इच्छित दलित लाभार्थियों के बजाय राजनीतिक रूप से जुड़े लोगों को दिया गया।
शंकर ने मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग की है, जिसमें गड़बड़ी और राजनीतिक पक्षपात का आरोप लगाया गया है।
जनहित याचिका पर मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन और न्यायमूर्ति वी. लक्ष्मीनारायणन की अवकाश पीठ सुनवाई कर रही है।
उच्च न्यायालय ने 14 मई को राज्य को नोटिस जारी किया था और नगर प्रशासन एवं जल आपूर्ति विभाग, एम.एस.एम.ई. विभाग और चेन्नई महानगर जल आपूर्ति एवं सीवरेज बोर्ड (सी.एम.डब्ल्यू.एस.एस.बी.) सहित कई सरकारी विभागों को पक्षकार बनाया था। अदालत ने संबंधित दस्तावेज प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया था। इस मामले में 16 मई को नगर प्रशासन विभाग की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता जे. रविन्द्रन ने दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए और समय मांगा था।
ए.ए.जी. रविन्द्रन और महाधिवक्ता पी.एस. रमन दोनों ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार करते हुए कहा कि जनहित याचिका प्रचार के लिए दायर की गई थी और न्यायालय के निर्देश के बिना तमिलनाडु में सी.बी.आई. के पास अधिकार क्षेत्र नहीं है।
बीरेंद्र अशोक
वार्ता