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‘सतत कृषि के लिए बायोडिग्रेडेबल पॉलीमेरिक माइक्रोजेल विकसित’

शिमला, 18 अप्रैल (वार्ता) भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी की एक शोध टीम ने प्राकृतिक पॉलिमर-आधारित बहुक्रियाशील स्मार्ट माइक्रोजेल के विकास के साथ टिकाऊ कृषि में एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। इन माइक्रोजेल को विस्तारित अवधि में नाइट्रोजन (एन) और फास्फोरस (पी) उर्वरकों की धीमी रिहाई के लिए इंजीनियर किया गया है, जो पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए फसल पोषण को बढ़ाने के लिए एक आशाजनक समाधान पेश करता है।
जैसे-जैसे वैश्विक आबादी 2050 तक अनुमानित 10 बिलियन की ओर बढ़ेगी, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा। कृषि इस मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उर्वरक फसल उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालाँकि, पारंपरिक नाइट्रोजन (एन) और फॉस्फोरस (पी) उर्वरकों की अक्षमता, जिनकी अवशोषण दर क्रमशः 30 फीसदी से 50 फीसदी और 10 फीसदी से 25 फीसदी है, पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए कृषि उत्पादन को अनुकूलित करने में चुनौतियाँ पैदा करती है।
आधुनिक कृषि बढ़ती आबादी की बढ़ती खाद्य मांग को पूरा करने के लिए उर्वरक अनुप्रयोगों पर बहुत अधिक निर्भर करती है। जबकि उर्वरक पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने और फसल की पैदावार में सुधार करने के लिए आवश्यक हैं, उनकी प्रभावशीलता अक्सर गैसीय अस्थिरता और लीचिंग जैसे कारकों से समझौता की जाती है। नतीजतन, अत्यधिक उर्वरक उपयोग से न केवल उच्च लागत आती है बल्कि पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसमें भूजल और मिट्टी प्रदूषण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य खतरे भी शामिल हैं। इसलिए, टिकाऊ कृषि पद्धतियों की ओर बदलाव को सुविधाजनक बनाने के लिए उर्वरक रिहाई को लम्बा करने वाले तकनीकी विकल्प विकसित करना अनिवार्य है।
इस व्यापक शोध के निष्कर्ष अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के प्रतिष्ठित जर्नल एसीएस एप्लाइड मैटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में प्रकाशित हुए हैं। शोध कार्य का नेतृत्व डॉ. गरिमा अग्रवाल ने अपनी टीम के साथ किया, जिसमें स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज, आईआईटी मंडी से सुश्री अंकिता धीमान, श्री पीयूष थापर और सुश्री डिम्पी भारद्वाज शामिल थीं। अनुसंधान को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड, भारत सरकार और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया था।
अध्ययन के मकसद के बारे में बताते हुए, आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ केमिकल साइंसेज की सहायक प्रोफेसर डॉ. गरिमा अग्रवाल ने कहा, ‘‘हमने लंबी अवधि में यूरिया की धीमी रिलीज के लिए प्राकृतिक पॉलिमर-आधारित मल्टीफंक्शनल स्मार्ट माइक्रोजेल विकसित किया है। ये माइक्रोजेल पौधों के लिए फॉस्फोरस के संभावित स्रोत के रूप में भी काम करते हैं और लागत प्रभावी, बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण के अनुकूल हैं।’’
डॉ. अग्रवाल ने कहा, “माइक्रोजेल फॉर्मूलेशन पर्यावरण के अनुकूल और बायोडिग्रेडेबल है, क्योंकि यह प्राकृतिक पॉलिमर से बना है। इसे मिट्टी में मिलाकर या पौधों की पत्तियों पर छिड़क कर लगाया जा सकता है। मक्के के पौधों के साथ हाल के अध्ययनों से पता चला है कि हमारा फॉर्मूलेशन शुद्ध यूरिया उर्वरक की तुलना में मक्के के बीज के अंकुरण और समग्र पौधों के विकास में काफी सुधार करता है। नाइट्रोजन और फास्फोरस उर्वरकों की यह निरंतर रिहाई उर्वरक के उपयोग में कटौती करते हुए फसलों को बढ़ने में मदद करती है।”
ये निष्कर्ष टिकाऊ कृषि का मार्ग प्रशस्त करते हैं, पोषक तत्वों की आपूर्ति को अनुकूलित करने, फसल की पैदावार बढ़ाने और पारंपरिक उर्वरकों से जुड़ी पर्यावरणीय चुनौतियों को कम करने के लिए एक आशाजनक समाधान पेश करते हैं।
सं.संजय
वार्ता
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