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अहमदाबाद में 35 मुमुक्षुओं ने सांसारिक जीवन त्याग कर ली दीक्षा

अहमदाबाद में 35 मुमुक्षुओं ने सांसारिक जीवन त्याग कर ली दीक्षा

अहमदाबाद, 22 अप्रैल (वार्ता) गुजरात के अहमदाबाद में 35 मुमुक्षुओं ने सांसारिक जीवन त्याग कर सोमवार को दीक्षा ली।

दीक्षा समिति के संयोजक संजयभाई वोरा ने बताया कि अहमदाबाद शहर के इतिहास में पहली बार एक ही मंडप के नीचे 35 जैन दीक्षाओं का उत्सव महानायक परम पूज्य आचार्य श्री विजय योगतिलकसूरीश्वरजी महाराज के पवित्र हाथों से आयोजित किया गया। साबरमती नदी के तट पर लगभग तीन लाख वर्ग फीट क्षेत्र में बनी भव्य अध्यात्म नगरी में सुबह साढ़े पांच बजे जब दीक्षा समारोह शुरू हुआ तो 30,000 की क्षमता वाला मुख्य मंडप भर गया। 15 आचार्य भगवंतों के साथ ही करीब 400 जैन साधु-साध्वीजीयों की छत्रछाया में 35 मुमुक्षुओं को साधुजीवन के प्रतीक स्वरूप ओघो अर्पण करने की विधि सुबह 0735 बजे शुरू हुई। 25 मिनट में पूज्य आचार्य भगवंत ने 35 मुमुक्षुओं को ओघो अर्पित किया जिनमें 15 भाई और 20 बहनें थीं। मुमुक्षु उस व्यक्ति के लिए एक संस्कृत शब्द है जो मुक्ति प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करता है और ज्ञान और सत्य का साधक है। पुनर्जन्म चक्र से मुक्त होने के लिए, एक मुमुक्षु का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना होता है।

दीक्षार्थीयों के हाथों में ओघो प्राप्त करने के बाद उन्होंने परमात्मा को नमस्कार किया और तीन प्रदक्षिणा देते समय अपनी खुशी व्यक्त की। ओघो अर्पित करने के बाद मुमुक्षु अपने जीवन के अंतिम स्नान के लिए गए और साधु और साध्वीजीओ की वेशभूषा धारण की। जैसे ही वह संसारी भेष उतारकर और साधुजीवन के सफेद वस्त्र पहनकर मंच पर आए शुभ मुहूर्त में लोच की विधि की गयी। 35 मुमुक्षुओं के सांसारिक नाम रद्द कर दिए गए और साधुजीवन के नए नाम दिए गए। जैनियों की राजधानी अहमदाबाद में 35वां दीक्षा मोहोत्सवकी शुरुआत 18 अप्रैल को गुरु भगवंत के भव्य सामैया से शुरू हुई। रविवार 21 अप्रैल को मुमुक्षु की वर्षीदान यात्रा निकाली गई। वर्षीदान यात्रा के बाद मुमुक्षुओं को साधु जीवन के लिए उपयोगी विभिन्न उपकरणों से सुसज्जित करने के लिए करोड़ों रुपये की बोली लगायी गयी। ऐतिहासिक जैन दीक्षा महोत्सव में 35 मुमुक्षु रविवार को अहमदाबाद में एक भव्य वर्षीदान यात्रा पर निकले जिसमें वे हाथियों, घोड़ों, ऊंटों, बैलगाड़ियों के अलावा सजी-धजी विंटेज कारों में सवार हुए और दीक्षा से पहले मुद्रा नोट, कपड़े, बर्तन, मोती आदि दान किए। सुबह 0630 बजे मुमुक्षु भावेशभाई भंडारी और उनकी पत्नी जीनलबहन के निवास स्थान रिजुवालिका, शांतिनगर से शोभायात्रा शुरू हुइ और उस्मानपुरा चार रास्ता, आश्रम रोड, पालडी चार रास्ता होते हुए सात किलोमीटर की यात्रा के बाद रिवर फ्रंट पर तैयार की गयी भव्य अध्यात्म नगरी पहुंची। लगभग 400 साधु और साध्वीजी के अलावा, लगभग 10,000 भक्त वर्षीदान की शोभायात्रा में शामिल हुए, जबकि राजनगर अहमदाबाद के लगभग पांच लाख लोगों ने विभिन्न स्थानों से शोभायात्रा के दर्शन किये। वर्षीदान की यात्रा अध्यात्म नगरी पहुंचने के बाद सोमवार सुबह छह बजे होने वाले दीक्षा मोहोत्सव में मुमुक्षुओं द्वारा साधु बनने के बाद उपयोग में आने वाले 18 वस्त्र, बर्तन आदि की बोली शुरु हुई। इन 18 उपकरणों में, तपस्वी जीवन के प्रतीक, ओघा और मुहपत्ति की बोली नहीं बोली जाती है लेकिन वह लाभ मुमुक्षु के परिवार को मिलता है।

ओघा और मुहपत्ति के अलावा कामली, कापड़ो, साडो या चोलपट्टो, पात्रा, तर्पणी, चेतनो, पुस्तक पोथी, नवकारवाली, दांडो, दंडासन, सुपड़ी, पूंजनी, चरवली, आसन, संथारो और उत्तपट्टो सहित कुल 16 उपकरणो की बोली लगायी गयी थी। इन उपकरणो को पाँच समूहों में बाँटकर इसकी बोली लगायी गयी थी। इस प्रकार कुल 35 मुमुक्षुओं के लिए 175 बोली लगायी गयी। रुचिकुमार महेंद्रभाई अंगारा को उपकरणों वहोराने के लिए सबसे अधिक राशि 69,91,222 रुपये की बोली बोली गयी थी। 35 मुमुक्षुओं में से शीर्ष दस बोली इस प्रकार थी। रुचिकुमारी महेंद्रभाई अंगारा: 69,91,222 रुपये, मान्य विजयभाई शाह: 65,09,337 रुपये, विदितकुमार सुमेरमलजी मेहता : 55,75,222 रुपये, भावेशभाई गिरीशभाई भंडारी: 42,42,555 रुपये, देवेश नंदीषेणभाई रातडिया 34,87,096 रुपये, हिनल संजयभाई जैन: 29,79,000 रुपये, भव्या महेंद्रकुमार सिसोदिया : 24,96,000 रुपये, जैनी गौतमकुमार कोठारी : 21,94,000 रुपये, जिनलबहन भावेशभाई भंडारी: 20,95,000 रुपये और हितज्ञकुमार श्रेयांसभाई संघवी: 15,19,906 रुपये थी।

आज सुबह 0432 बजे 35 मुमुक्षुओं को अपने माथे पर विदाई तिलक के साथ अपने निवास से प्रस्थान करते समयइस भावना से सब भावित हुए थे कि मोहराजा के खिलाफ लड़ाई जीतने के बाद वे मोक्षगामी बनेंगे।

दीक्षा मंडप में 35 मुमुक्षुओं के हाथ में श्रीफल लेकर आने के बाद उन्होंने मंच पर बने समोवसरण में भगवान को तीन प्रदक्षिणा देकर प्रणाम किया और गुरु भगवंत को विधिवत प्रणाम किया। फिर उन्होंने हाथ जोड़कर गुरु भगवंत से तीन अनुरोध किए: मम मुंडावेह : मेरे दोषों को दूर करने के लिए प्रतीकात्मक रूप से मेरा मुंडन करें। मम पव्वावेह : प्रव्रज्या प्रदान करके मुझे संसार से दूर ले जाओ। मम वेषं सम्मपेह : मोह से लड़ने के लिए आभूषण के रूप में मुझे साधुवेश प्रदान करें।

मुमुक्षुओं के इस प्रकार अनुरोध करने पर गुरु भगवंत ने उन्हें ओघो की पेशकश की। ओघो मिलने के बाद मुमुक्षु स्नान कर साधु वेश धारण कर लौटे। इसके बाद गुरु भगवंत द्वारा मुमुक्षुओं को प्रतीकात्मक रूप से लोच प्रदान किया गया। फिर उन्हें सर्वविरति धर्म का निम्नलिखित व्रत लेने के लिए कहा गया, जो एक साधु के जीवन का पहला कदम है और सभी पापों से जीवन भर का त्याग है।

‘करेमि भंते सामाईयं, सव्वं सवज्जं जोगं पच्चक्खामि, जाव जीवाए पज्जुवासामि, तिविहं, तिविहेणं, मणेणं, वायाए, कायेणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतं अपि अन्नं न समुज्जाणामि, तस्स भंते, पडिक्कमामि, निन्दामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि।’ दीक्षा समारोह के अंतिम चरण में 35 मुमुक्षुओं के सांसारिक नाम स्थायी रूप से रद्द कर दिए गए और उनके लिए नए साधुजीवन के नामों की घोषणा की गई। पाँच दिवसीय दीक्षा मोहोत्सव से अहमदाबाद के पाँच लाख से अधिक जैन लाभान्वित हुए।

अनिल, जांगिड़

वार्ता

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