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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


कैंसर के प्राचीन उपचार के मानकीकरण का शुरू होगा काम

कैंसर के प्राचीन उपचार के मानकीकरण का शुरू होगा काम

नयी दिल्ली 04 फरवरी (वार्ता ) कैंसर की रोकथाम एवं इलाज की प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के आधार पर आधुनिक तरीकों से शोध के जरिए दुनिया में इसका लोहा मनवाने और इन्हें वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करने का काम शुरू होने जा रहा है । आयुर्वेद ,यूनानी , सिद्ध और योग जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों से कैंसर के इलाज एवं रोकथाम को क्लिनिकल परीक्षण के जरिये आैर प्रमाणों के साथ साबित करने के लिए आयुष मंत्रालय ने राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम एवं शोध संस्थान के साथ मिलकर एक केंद्र की स्थापना की है । आयुष मंत्रालय के सचिव अजीत एम शरण ने विश्व कैंसर दिवस की पूर्व संध्या पर कल नोएडा स्थित इस समेकित कैंसर केंद्र का उद्घाटन किया गया । श्री शरण ने इस मौके पर कहा कि आयुर्वेद को आधुनिक भाषा में समझाने की सख्त जरूरत है । आईआरसीएच के प्रमुख डॉ जी के रथ ने कहा कि देश में कैंसर से हर वर्ष तकरीबन सात लाख अस्सी हजार लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं । इसका मुख्य कारण है बीमारी की देर से शिनाख्त होना । जागरुकता और जांच की सुविधा की कमी के कारण इस बीमारी का समय रहते पता नहीं लग पाता है जबकि 80 प्रतिशत मामलों में इसका इलाज संभव है। तंबाकू आदि का सेवन छोड़ने जैसे उपायों से 70 प्रतिशत कैंसर से बचा जा सकता है क्योंकि 65 प्रतिशत कैंसर का कारण तंबाकू की लत है । अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के निदेशक प्रोफेसर अभिमन्यु कुमार का कहना था कि नये शोधों में कैंसर की रोकथाम को प्राथमिकता दी जाएगी क्योंकि तंबाकू -गुटका जैसी बुरी लतों को छुड़वाने में आयुष की दवाइयां ज्यादा कारगर होने के साथ सस्ती भी हैं और इनका दुष्प्रभाव भी नहीं है ।


प्रोफेसर अभिमन्यु ने बताया कि देश में आयुष के साढ़े सात लाख चिकित्सक हैं । इन्हें कैंसर की जांच के लिए प्रशिक्षित करने का काम इस माह शुरू हो गया है । कुल 32 राज्यों के 100 जिलों में उप स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर इनकी तैनाती की जायेगी । इसके अलावा हर एम्स में आयुष शाखा भी होगी । डॉ रथ ने कहा कि कैंसर की दवा टैक्सोल नाम की वनस्पति से बनती है जो हिमालय पर्वत के जंगलों में भी पायी जाती है । हल्दी की तरह इसे भी दुनिया में प्रमाणित करने की जरूरत है । उन्होंने कई बार मल-मूत्र आने , गांठ बनने, असामान्य रूप से खून निकलने और मस्से के आकार में बदलाव जैसे लक्षण दिखने पर कैंसर की जांच कराने की सलाह दी । स्वास्थ्य शोध विभाग की सचिव डॉ सौम्या स्वामीनाथन का कहना था कि पारंपरिक पद्धतियां एलोपैथ के मुकाबले ज्यादा कारगर हो सकती हैं क्योंकि इनमें दवा के साथ-साथ खान-पान ,जीवन - शैली और आचार -विचार समेत सभी पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है । नीलिमा.श्रवण वार्ता

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