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अरमान लोकल ट्रेन तो सरफराज सुपरफास्ट ट्रेन

अरमान लोकल ट्रेन तो सरफराज सुपरफास्ट ट्रेन

मुंबई,19 जून (वार्ता) मुंबई के स्कूली क्रिकेट और 'मैदान' में खेलने वाले खिलाड़ियों में प्रतिस्पर्धा अक्सर देखने को मिल जाती है। खिलाड़ियों के 200, 300, 500 रन बनाने की ख़बरें अक्सर क्रिकेट के गलियारों में गूंजती रहती हैं। इतने रन बनाने वाले ही खिलाड़ी मुंबई के भविष्य के खिलाड़ी बनकर उभरते हैं, लेकिन इन खिलाड़ियों में स्कूल क्रिकेट के समय में ग़जब की प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है। ऐसी प्रतिस्पर्धा एक समय साथ में क्रिकेट शुरू करने वाले मुंबई रणजी टीम के सदस्य सरफ़राज़ ख़ान और अरमान जाफ़र में भी देखने को मिलती थी। हालांकि इतने सालों बाद अब वह प्रतिस्पर्धा जय-वीरू की जोड़ी में बदल गई है। अरमान को लोकल ट्रेन तो सरफराज को सुपर फ़ास्ट ट्रेन के नाम से भी बुलाया जाता है ।

दोनों ने अपने क्रिकेट करियर की शुरुआत 2008 में की थी। प्रतिस्पर्धा इतनी थी कि अगर एक खिलाड़ी 200 बनाता था तो दूसरे पर उससे ज़्यादा रन बनाने का दबाव होता था। एक 300 बनाता था तो दूसरे पर 400 रन बनाने का दबाव रहता था। यह दबाव उन पर ही नहीं, पीछे परिवार का भी होता था। दोनों के ही पिता उनके कोच रहे हैं। ऐसे में यह दबाव लाज़मी हो जाता है। तभी तो 2010 में अंडर 14 जाइल्स शील्ड ट्रॉफ़ी में 498 रन बनाकर अरमान का नाम पहली बार सुर्खियों में आया था। ऐसा ही कुछ इससे पहले 2009 में सरफ़राज़ ने किया था। जब उन्होंने हैरिस शील्ड कप में 421 गेंद में 439 रन बनाकर सचिन तेंदुलकर का 45 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया था।

सरफ़राज़ ने कहा, "2008 में पहली बार मेरी अरमान के साथ मुलाकात हुई थी। ये पहले से ही रिज़वी स्कूल में था और मैं एक साल बाद आया था। वहां से हम दोनों एक साथ खेलने लगे। यह कीपिंग पैड पहनकर बल्लेबाज़ी करता था क्योंकि बैटिंग पैड बहुत बड़े होते थे। दिन भर साइड में नॉकिंग करता रहता था। कलीम सर इसके पापा हैं। मैच चालू रहता तब भी यह नॉकिंग करता रहता था। तो मेरी मुलाकात इससे ऐसे ही हुई।"

भले ही दोनों किसी प्रतिस्पर्धा की बात को नकारते हों, लेकिन एक समय था जब पिता के दबाव की वजह से ये खिलाड़ी पूरे दिन पिच पर खड़े रहते थे, क्योंकि एक दूसरे से से कम रन बनाने पर उनकी शामत आनी तय होती थी।

सरफ़राज़ ने बताया की प्रतिस्पर्धा तो नहीं रहती थी बस होता यह था कि कौन ज़्यादा रन बनाएगा। अरमान के पापा तो मारते नहीं थे लेकिन पृथ्वी और मेरे पापा तो बहुत मारते थे। तो हम लोग यही सोचते थे कि रन बनाने ही हैं।" इनके बीच अब बॉन्डिंग इतनी है कि आज यह जय-वीरू की जोड़ी एक दूसरे को स्लो लोकल ट्रेन और फ़ास्ट ट्रेन के नाम से बुलाते हैं। दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि जब भी होटल में पहुंचते हैं तो कोशिश करते हैं कि अगल-बगल में ही कमरा हो, जिससे ये दोनों एक दूसरे के कमरे में जा सकें। जय की तरह अरमान भी कम ही बोलते हैं और वीरू की तरह सरफ़राज़ रूकने का नाम नहीं लेते हैं।

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