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भारतवंशियों ने ताजा की यादें, संगम में लगायी डुबकी

भारतवंशियों ने ताजा की यादें, संगम में लगायी डुबकी

कुम्भ नगर, 24 जनवरी (वार्ता) चाहत किसी बंधन की मोहताज नहीं। जब भी मौका मिलता है समन्दर का सीना चीरकर भी अपनों को गले लगाती है।

कुम्भ मेले के दौरान संगम का किनारा गुरूवार को इसका साक्षी बना जब विदेशी मेहमानों ने अपने वंशजों के साथ कुछ यादगार पल बिताये। अपनों के साथ संगम में स्नान वर्षों की दूरी को एक पल में धो दिया और अविरल मन को एकाकार किया।

काशी में तीन दिवसीय 15वें भारतीय प्रवासी सम्मेलन में शिरकत करने के बाद तीर्थराज प्रयाग लौटे मेहानों ने ये बाते अलग-अलग ढंग से मीडिया के लोगों से शेयर की। उन्होंने बताया कि हमें अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए चाहें हम दूर कितना भी रहें। मौका मिले तो वतन पहुंचना चाहिए। भारतीय प्रवासी सम्मेलन हम लोगों के लिए एक अनूठा लम्हा बना।

मेहमानों ने वाराणसी का भारतीय प्रवासी सम्मेलन और तीर्थराज प्रयाग में पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम के दर्शन कर अपने को धन्य माना। उनका कहना था,“ यदि हम नहीं आते तो हमें हमारी मातृभूमि पर इतना आदर सत्कार और प्रेम से वंचित रहना पड़ता।” गंगा के दर्शन मात्र से हम धन्य हो गये। कुम्भ का अविष्मरणीय सजावट और संगम का भ्रमण, एक यादगार पल ले जायेंगे। मेहमानों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इतने बड़े और सफल कार्यक्रम के लिए आभार जताया। उनका कहना है मारीशस अलग नहीं है उसे “ मिनी भारत” कहा जाता है। कुछ मेहमान तो संगम तट पर “मारीशस- मिनी भारत जिन्दाबाद” के नारे भी लगाये। यहां की दिव्य व्यवस्था और अपनापन देख मेहमान मंत्रमुग्ध हो गये।

तीन हजार प्रवासी भारतीयों का समूह 70 बसों में सुबह 12 बजे अरैल स्थित इंद्रप्रस्थ, वैदिक सिटी में पहुंचा। उन्हें क्रूज और मोटरवोट से संगम का लुत्फ प्रदान कराया गया। उसके बाद अलग अलग समूहों में मेहमान किलाघाट, वीआईपी घाट पर उतर कर बांध स्थित बड़े हनुमान मंदिर, अक्षय वट और सरस्वती कूप का दर्शन किया।

कैलीफोर्निया निवासी आचार्य कृष्ण कुमार पाण्डे पत्नी गीता पाण्डे के साथ कई लोगों के समूह के साथ पहुंचे। वह मूलत: प्रतापगढ के रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल के कहने पर उन्होंने 18 साल भारतीय सेना की सेवा करने के बाद 2003 में रिजाइन कर दिया। भारतीय प्रवासियों को धर्म, संस्कृति और अपने देश के प्रति एक धागे में पिरोने का काम कर रह हूं।

श्री पाण्डे ने कहा कि आज वह अमेरिका, कैलीफार्निया समेत अनेक स्थानों पर घूम-घूम कर प्रवासी भारतीयों को अपने और धार्मिक कुम्भ के साथ जोड़कर संस्कृति का परिपालन करने का प्रयास कर रहा हूं। प्रयाग आना बड़े ही सौभाग्य की बात है। स्वच्छता, पवित्रिता और आत्मीयता के रूप में श्री मोदी और श्री योगी ने जो प्रस्तुत किया अतुलनीय है । इस भव्य व्यवस्था के लिए कोई शब्द नहीं है। त्रिवेणी के पावन संगम पर सजा कुंभ मेला पूरी दुनिया को अनेकता में एकता बनाये रखने का विशाल संदेश देता है और भारतीय संस्कृति की यही विशेषता उनके देश को यहां की जड़ जमीन से जोड़े रखे हुए है।

मारीसश के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ के शिव बूधन और मारीशस के एमएसए श्री गोयल वाराणसी और प्रयाग की व्यवस्था देखकर भाव विभोर हो गये। उन्होंने कहा कि ‘अप्रितम”। “ मैं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रगुजार हूं जिनके सहयोग से मुझे विशाल कुंभ और पावन संगम के दर्शन सुलभ हुये।

उन्होने कहा कि कुंभ की दिव्यता और औलोकिकता से मैं और मेरे साथ आये प्रतिनिधिमंडल के सदस्य अभिभूत है। यह मेला भारत में अनेकता में एकता का पयार्य है जो मानव सभ्यता की रक्षा के लिये सारी दुनिया को मिलकर चलने का संदेश देता है।

मूलत: गाजीपुर के रहने वाले देवन शिद्धू वर्तमान में मारिशस में रहते हैं। उन्होंने कहा,“ यह सौभाग्य की बात है कि प्रवासी भारतीय सम्मेलन के कुम्भ में संगम में सनान करने का भी सुअवसर मिला। उन्होंने कहा कि दुनिया के सभी प्रवासी भारतीय को समय समय पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शिरकत करनी चाहिए। हमें अपनी संस्कृति को जिंदा रखने के लिए अपने बच्चों को भी अपने मूल निवास के बारे में और वहां होने वाले सांस्कृति से रू-ब-रू कराते रहना चाहिए जिससे उनमें भी अपनो के प्रति प्यार और अपनापन बना रहे।

उन्होंने बताया उनके परिवार के बुजुर्ग 1870 में मारीशस शिप से गये थे। वहां गांव के कई लोग रहते थे। उन्हें 70 वर्ष हो गया मारिशस में रहते हुए। “कई बार आया हूं लेकिन जो चीज इस बार देखने को मिली इससे पहले कभी नहीं।” मूलत: जयपुर के निवासी अशोक शर्मा मैनचेस्टर में रहते हैं। “ यमुना और सरस्वती का संगम गंगा के साथ हो रहा है, इससे बेहतर और कुछ नहीं हो सकता। गंगा को देखने मात्र से मन पवित्र हो जाता है। वह चार पीढियों से वहां रहते हैं1 अन्नू परश्रय लंदन से 15वें प्रवासी भारतीय सम्मेलन में वाराणसी के बाद प्रयाग आयी हैं। उन्होंने कहा सारी व्यवस्थायें और लोगों का अपनापन अविष्मरणीय है। लेकिन जिसने मुझे सबसे अधिक ‘लजीज व्यंजन’ का स्वाद आकर्षित किया है।

सैकडों मेहमानों ने अपने परिवार के साथ गंगा में आस्था की डुबकी लगायी और ‘‘हर-हर महादेव और गंगे मइया की जय” के घोष से संगम का तट गूंजायमान हो गया।

कुम्भ मेलाअधिकारी विजय किरण आनंद ने कहा कि प्रवासी भारतीयों को यहां पर भारतीय संस्कृति की धरोहर अरैल स्थित सांस्कृतिक कलाग्राम और शिल्पग्राम में दिखाया गया। सांस्कृतिक ग्राम में प्रगैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक की मानव सभ्यता संजोयित की गयी थी।

उन्होंने कहा कि संगम की विस्तीर्ण रेती पर आस्था, धर्म और संस्कृति की बसी अस्थायी नगरी अलौकिक और सुखद अनुभूति कराने वाला रहा। प्रवासी भारतीयों ने केवल संगम का ही दर्शन नहीं किया बल्कि अपने दादा, परदादा की समृद्ध कला, संस्कृति और सभ्यता की झलक भी देखी।

श्री आनंद ने कहा कि पूरे उत्सव का माहौल रहा। मेहमानों के चेहरे बता रहे थे कि वह यहां और वाराणसी की भव्यता और दिव्य व्यवस्था से अति प्रसन्न थे1 उन्होंने बताया कि व्यवस्था मेहमानों को अपनो की फीलिंग्स को याद दिलाने के लिए की गयी थी। उन्होंने कहा कि मेहमानों को सुरक्षित यादगार वातावरण में वापस भेजें। उन्होंने बताया कि करीब 3000 मेहमान यहां पहुंचे थे।

 

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