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सत्यदेव की पुस्तकें, विनयशील पर अंक का विमोचन

सत्यदेव की पुस्तकें, विनयशील पर अंक का विमोचन

नयी दिल्ली, 04 नवंबर (वार्ता) ‘सत्यदेव की पुस्तकें, विनयशील पर अंक, एक हाइकु सूर्य तो एक समग्र मयंक।’ कवि सर्वेश चंदोसवी ने साहित्यकार एवं कवि एस. डी. तिवारी और साहित्यकार एवं कवि विनयशील चतुर्वेदी के सम्मान में छंद के रूप में यह बात बात कही।

रविवार को राजधानी के हिन्दी भवन में साहित्य प्रेमी मंडल के तत्वाधान में आयोजित विमोचन समारोह एवं काव्य पाठ श्री तिवारी की एक साथ 20 पुस्तकों के ऐतिहासिक विमोचन का साक्षी बना। इस मौके पर श्री चतुर्वेदी पर केंद्रित ट्रू मीडिया के अक्टूबर 2018 के विशेषांक का भी विमोचन किया गया।

गजल हस्ती और साहित्यकार मंगल नसीम ने दोनों कवियों की हौंसला अफजाई करते हुए कहा,

“परिन्दे हौंसला उड़ान में कायम रखना, निगाहें तुझी पर हैं याद रखना,

बुलंदी हिम्मत को तेरी आजमायेगी, परों में जान, निगाहें आसमान पर रखना।”

उन्होंने दोनों कवियों और सभा में मौजूद श्रोताओं को संबोधित करते हुए कहा, “हर इम्तिहान में मंजिल करीब आती है, हमेशा खुद को किसी इम्तिहान में रखना।”

साहित्यकार डॉ. कुंअर बेचैन ने श्री चतुर्वेदी के बारे में कहा कि जिसकी सोच में संवेदना हो वह विनयशील क्यों नहीं होगा। उन्होंने कहा, “लोक अदालत ने किया सदा-सदा गुड फील, जिस कागज पर लगी हो विनयशील की सील।” डॉ. बेचैन ने हाइकु शास्त्र पर पुस्तक लिखने वाले श्री तिवारी की भी सराहना की।

कार्यक्रम में श्री चतुर्वेदी और श्री तिवारी ने कविता पाठ किया। श्री चतुर्वेदी ने अपनी कविता की कुछ पक्तियां श्रोताओं के सामने रखी,

“पत्थर कठोर होता है, वह देवता होता है इसलिए युगों तक जीता है.

देवता होने की पहली शर्त है कठोर होना।”

श्री तिवारी ने अपनी भावनाओं को कविता की शक्ल में श्रोताओं के सामने रखा, “कविता की चिंगारी को मशाल बनाकर मानूंगा, शब्दों को गूंथ माला बनाकर मानूंगा।” उन्होंने अपने हाइकु से भी पाठकों का खुब गुदगुदाया।

हास्य कवि प्रवीण शुक्ल ने कहा कि श्री तिवारी ने हाइकु को एक नया स्वरूप प्रदान किया है। उनके हाइकु एक, दो, तीन पर खत्म नहीं होते बल्कि उनके हाइकु गजल की शैली में लिखे गये हैं जो साहित्य के क्षेत्र में अपने आप में एक नया अद्भुत प्रयोग है।

श्री शुक्ल ने श्री तिवारी के हाइकु काे कुछ यूं उद्धृत किया ,

“चैन के पल ले गया छीन, तुम्हारे बिन,

भूत को डेरा लगता घर मेरा, तुम्हारे बिन,

लगता ना जी विरानियों में इन, तुम्हारे बिन,

काटी थी रातें हमने तारे गिन, तुम्हारे बिन।”

दिनेश टंडन

जारी वार्ता

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