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बिहार में कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र आज से शुरू

बिहार में कलश स्थापना के साथ चैत्र नवरात्र आज से शुरू

पटना, 09 अप्रैल (वार्ता) बिहार में शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की उपासना का त्योहार चैत्र नवरात्र आज से शुरू हो गया।

शुभ मुहुर्त में विधि विधान से नवरात्र आराधना को लेकर कलश की स्थापना कर पूजा शुरू की गई। इसके साथ ही मां दुर्गा के नौ रूपों की उपासना का नौ दिवसीय अनुष्ठान आज से शुरू हो गया। घरों और मंदिरों में पूजा-पाठ एवं दुर्गा सप्तशती का पाठ शुरु हो गया। चैत्र नवरात्र को लेकर सुबह होते ही लोग पूजा की तैयारी में लग गये। श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान भी किया। इस व्रत को करने वाले लोगों ने घर की साफ-सफाई पूरी करने के बादकलश स्थापना की। नवरात्र के

पहले दिन भगवती के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जा रही है।

नवरात्र के पहले दिन ही मां शैलपुत्री की आराधना में पटना आसपास के इलाके के लोग सुबह से ही भक्ति में लीन रहे। मंदिरों तथा घरों में कलश स्थापना के साथ देवी दुर्गा की आराधना शुरू हो गई श्रद्धालु आज से अपने सामर्थ्य के अनुसार देवी की भक्ति में सराबोर हो जाएंगे। मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना, कलश स्थापना, वेद पाठ, आरती मंगल होंगेI घरों में भी घट स्थापना, दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ, वैदिक मंत्रो का जाप,घंटी, शंख, आरती, स्तुति की जाएगी।

आचार्य राकेश झा ने बताया कि भगवती दुर्गा की उपासना का महापर्व वासंतिक नवरात्र, पिंगल नामक नवसंवत्सर एवं विक्रम संवत 2081 आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू हुआ है। आज नवरात्र के पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ देवी माता की आराधना शुरू हो गयी।आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से विजया दशमी तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा होगी।आज से शुरू हुये वासंतिक नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना का विशेष महत्व होता है।कलश पूजन से सुख- समृद्धि, धन, वैभव, ऐश्वर्य, शांति, पारिवारिक उन्नति तथा रोग-शोक का नाश होता है।जगत जननी की कृपा एवं सर्वसिद्धि की कामना से उपासक फलाहार या सात्विक अन्न ग्रहण करते हुए दुर्गा सप्तशती के 13 अध्याय के कुल 700 श्लोको का सविधि पाठ करेंगे। चैत्र शुक्ल नवमी बुधवार 17 अप्रैल को महानवमी तथा 18 को विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा।

ज्योतिषी झा ने कहा कि चैत्र नवरात्र में भगवती की पूजन में माता के उपासक नियम, संयम, शुद्ध आहार, विचार रखते है। नवरात्र को सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक, आत्मशुद्धि एवं मुक्ति का आधार माना गया है। ऋतु परिवर्तन के कारण वर्षभर में कुल चार नवरात्र होते है, माघ, चैत्र, आषाढ़ एवं आश्विन मास का नवरात्र। ऋतुओ के परिवर्तन से मनुष्य का स्वास्थ्य व मनःस्थिति प्रभावित होता है। जातक पर कई तरह के नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव पड़ता है I इस प्रभाव के बचने के लिये व्रत या फलाहार करना, वेद मंत्रों के उच्चारण, ध्यान-न्यास आदि सेहत के लिए लाभकारी होता है I इससे मौसमी परिवर्तन का कुप्रभाव नहीं पड़ता है।उन्होंने बताया कि चैत्र शुक्ल नवमी 17 अप्रैल बुधवार को पुष्य नक्षत्र के सुयोग में महानवमी का पर्व मनाया जाएगा।इसी दिन श्रद्धालु देवी दुर्गा के नवम स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा कर विशिष्ट भोग अर्पण, दुर्गा पाठ का समापन, हवन, कन्या पूजन एवं पुष्पांजलि करेंगे। रामनवमी का व्रत, ध्वज पूजन एवं शोभायात्रा भी इसी दिन निकलेगी। पुष्य नक्षत्र का संबंध माता लक्ष्मी से होने से इस दिन भूमि-भवन की ख़रीदारी, पूंजी निवेश, व्यवसाय या नौकरी की शुरुआत, वाहन, रत्न व आभूषण की खरीदी करना उत्तम रहेगा। वहीं 18 अप्रैल गुरुवार को चैत्र शुक्ल विजयादशमी में देवी की विधिवत विदाई, जयंती धारण कर नवरात्र एवं रामनवमी व्रतधारी पारण करेंगे I

पंडित राकेश झा के पंचांगीय गणना के आधार पर बताया कि चैत्र नवरात्र का पहला दिन मंगलवार होने से देवी दुर्गा का आगमन अश्व यानि घोड़ा पर हुआ है। घोड़े पर भगवती के आगमन से समाज में अस्थिरता, तनाव, राजनीति उथल-पुथल, चक्रवात, भूकंप की स्थिति उत्पन्न होती है। वही चैत्र शुक्ल विजयादशमी को गुरुवार दिन होने से माता की विदाई नर वाहन पर होगी। देवी के इस गमन से भक्तों के लिए उत्तम, सुख एवं समृद्धि प्राप्त होगी।

चैत्र नवरात्र नौ दिनों तक माता के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।अपने पहले स्वरूप में मां ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनकी पूजा से चंद्रमा से संबंधित दोष समाप्त होते हैं। नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। उन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव कम होते हैं। मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्र में तीसरे दिन इनकी पूजा होती है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है, जिससे इनका यह नाम पड़ा। इस देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के बुरे प्रभाव दूर होते हैं।

नवरात्र पूजन के चौथे दिन देवी के कूष्मांडा के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। मान्यता है कि उन्होंने अपनी हल्की हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। उनकी आठ भुजाएं हैं। मां कूष्मांडा की पूजा से सूर्य के कुप्रभावों से बचा जा सकता है। नवरात्र का पांचवां दिन स्कंदमाता की पूजा का होता है। माना जाता है कि उनकी कृपा से मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। ये बुध ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करती हैं।

मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। इनकी उपासना से भक्तों को आसानी से धन, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति की इच्छा से मां भगवती की कठिन तपस्या की तब देवी ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिससे उनका यह नाम पड़ा। दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना की जाती है। कालरात्रि की पूजा करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं और सभी असुरी शक्तियों का नाश होता है। देवी के नाम से ही पता चलता है कि इनका रूप भयानक है।

मां दुर्गा की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। उनकी आयु आठ साल की मानी गई है। उनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद होने की वजह से उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। इस देवी की पूजा से राहु के बुरे प्रभाव कम होते हैं। नवरात्र पूजन के नौवें दिन देवी सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वालों को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री की कृपा से ये सभी सिद्धियां प्राप्त की थीं। मां सिद्धिदात्री केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं।

प्रेम

वार्ता

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