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कांग्रेस, द्रमुक हैं, कच्छतिवू मुद्दे के जिम्मेदार : भाजपा

कांग्रेस, द्रमुक हैं, कच्छतिवू मुद्दे के जिम्मेदार : भाजपा

नयी दिल्ली 01 अप्रैल (वार्ता) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पाक की खाड़ी में तमिलनाडु से लगे कच्छतिवू द्वीप को श्रीलंका को देने एवं भारतीय मछुआरों की श्रीलंकाई सेना द्वारा पकड़े जाने के मुद्दे पर निष्क्रिय बने रहने के द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के आरोपों पर पलटवार करते हुए आज कहा कि द्रमुक नेता एम करुणानिधि एवं कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने आपसी मिलीभगत से कच्छतिवू द्वीप वहां आसपास मछली पकड़ने के अधिकार को श्रीलंका के हवाले किया था।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय में सोमवार सुबह एक संवाददाता सम्मेलन में कच्छतिवू द्वीप मुद्दे पर देश के सामने सारी जानकारी विस्तार से रखी। विदेश मंत्री ने कहा, “आज, इस मुद्दे के बारे में जनता के लिए जानना और लोगों के लिए निर्णय करना बहुत जरूरी है। यह मुद्दा बहुत लंबे समय से जनता की नजरों से छिपा हुआ है।”

उन्होंने कहा कि वर्ष 1974 में, भारत और श्रीलंका ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जहां उन्होंने भारत एवं श्रीलंका के बीच एक समुद्री सीमा का निर्धारण किया और इस कच्छतिवू को श्रीलंका के हवाले कर दिया गया। दो साल बाद 1976 में एक और समझौता किया गया जिसमें भारतीय तमिल मछुआरों के कच्छतिवू के जलक्षेत्र में मछली पकड़ने के अधिकार भी श्रीलंका के हवाले कर दिये गये।

उन्होंने कहा कि यह पूरे घटनाक्रम के बारे में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की सरकार से गहन परामर्श किया गया था और श्री करुणानिधि ने तत्कालीन केन्द्र सरकार से अनुरोध किया था कि राजनीतिक कारणों से उनके समर्थन की बात उजागर नहीं की जाये और बदले में वह केन्द्र सरकार के लिए तमिलनाडु में कोई असहज स्थिति नहीं बनने देंगे।

उन्होंने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू नेे कच्छतिवू को एक मामूली छोटा एवं महत्वहीन टापू और श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक छोटा चट्टानी द्वीप कह कर उसे भारत के लिए गैरउपयोगी करार दिया था। उन्होंने बताया कि 1958 एवं 1960-61 में ही इस टापू को श्रीलंका के लिए छोड़ने का मन बना लिया गया था। डॉ. जयशंकर ने दावा किया कि संसद की परामर्श समितियों की रिपोर्टों में कच्छतिवू से संबंधित सारा विवरण सूचना के अधिकार कानू के तहत निकाले गये हैं, उनमें ये जानकारियां उजागर हुईं हैं।

विदेश मंत्री ने कहा, “हम 1958 और 1960 की बात कर रहे हैं। इस मामले के मुख्य लोग यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि कम से कम हमें मछली पकड़ने का अधिकार मिलना चाहिए। कच्छतिवू द्वीप 1974 में श्रीलंका को दे दिया गया और मछली पकड़ने का अधिकार 1976 में दे दिया गया। एक, सबसे बुनियादी पहलू तत्कालीन केंद्र सरकार और प्रधानमंत्रियों द्वारा भारत के क्षेत्र के बारे में दिखाई गई उदासीनता है... तथ्य यह है कि उन्हें बस इसकी परवाह नहीं थी... तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल ने मई 1961 में दी गई एक टिप्पणी में लिखा, ‘मैं इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देता और इस पर अपना दावा छोड़ने में मुझे कोई झिझक नहीं होगी। मुझे इस तरह के मामले अनिश्चित काल तक लंबित रहना और संसद में बार-बार उठाया जाना पसंद नहीं है।’ तो, पंडित नेहरू के लिए, यह एक छोटा सा द्वीप था, इसका कोई महत्व नहीं था, उन्होंने इसे एक उपद्रव के रूप में देखा... उनके लिए, जितनी जल्दी आप इसे छोड़ देंगे, उतना बेहतर होगा... यही दृष्टिकोण श्रीमती इंदिरा गांधी के लिए भी जारी रहा।”

उन्होंने कहा, “तमिलनाडु से जी विश्वनाथन नाम के एक संसद सदस्य थे और उन्होंने कहा- ‘हमें भारतीय क्षेत्र से हजारों मील दूर डिएगो गार्सिया की चिंता है, लेकिन हमें इस छोटे से द्वीप की चिंता नहीं है।’ कहा जाता है कि प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (एआईसीसी) की एक बैठक में टिप्पणी की थी कि यह एक छोटी सी बात है।”

विदेश मंत्री ने कहा, “ यह देख कर मुझे वे दिन याद आ गये जब पंडित नेहरू हमारी उत्तरी सीमा को ऐसी जगह बताते थे जहां घास का एक तिनका भी नहीं उगता। मैं याद दिलाना चाहूंगा कि प्रधानमंत्री पंडित नेहरू अपने इस ऐतिहासिक बयान के बाद वह कभी भी देश का विश्वास दोबारा हासिल नहीं कर पाए। प्रधानमंत्री (इंदिरा गांधी) के साथ भी ऐसा ही होने वाला है जब वह कहती हैं कि यह केवल एक छोटी सी बात है और हमारे देश के क्षेत्रों के बारे में चिंता करने की कोई बात नहीं है।... तो, यह सिर्फ एक प्रधानमंत्री नहीं है। .. यह उपेक्षापूर्ण रवैया...कच्छतिवू के प्रति कांग्रेस का ऐतिहासिक रवैया था।”

डॉ. जयशंकर ने कहा, “पिछले 20 वर्षों में, 6184 भारतीय मछुआरों को श्रीलंका द्वारा हिरासत में लिया गया है और 1175 भारतीय मछली पकड़ने वाली नौकाओं को श्रीलंका द्वारा जब्त, हिरासत में लिया गया है या गिरफ्तार किया गया है। यह उस मुद्दे की पृष्ठभूमि है जिस पर हम चर्चा कर रहे हैं। अंत में पांच वर्षों में, कच्छतिवू मुद्दा और मछुआरों का मुद्दा संसद में विभिन्न दलों द्वारा बार-बार उठाया गया है। यह संसद के प्रश्नों, बहसों और सलाहकार समिति में सामने आया है। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मुझे कई बार लिखा है। और मेरे रिकॉर्ड से पता चलता है कि वर्तमान मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को मैंने इस मुद्दे पर 21 बार जवाब दिया है। यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो अचानक सामने आ गया हो। यह एक जीवंत मुद्दा है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर संसद और तमिलनाडु से संबंधित चर्चाओं में बहुत बहस हुई है। यह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच पत्राचार का विषय रहा है... अब, तमिलनाडु में हर राजनीतिक दल ने इस पर एक रुख अपनाया है। दो दल- कांग्रेस और द्रमुक ने इसे अंजाम दिया। मामला ऐसा है मानो उनकी इसके लिए कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं है। मानो स्थिति का समाधान आज की केंद्र सरकार को करना है, इसका कोई इतिहास ही नहीं है, यह बस ऐसे ही हुआ है। वे लोग इस मुद्दे को इसी तरह पेश करना चाहते हैं।”

डॉ. जयशंकर ने कहा, “मछुआरों को आज भी हिरासत में लिया जा रहा है, नौकाओं को अभी भी पकड़ा जा रहा है और यह मुद्दा अभी भी संसद में उठाया जा रहा है। इसे दो दलों द्वारा संसद में उठाया जा रहा है जिन्होंने ऐसी स्थिति को बनाया है। जब भी कोई गिरफ्तारी हुई, लेकिन उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन ये काम हमारी सरकार के प्रयासों से हो रहा है। चेन्नई से बयान देना बहुत अच्छा है, लेकिन जो लोग काम करते हैं वे हम हैं।”

यह पूछे जाने पर कि क्या सरकार श्रीलंका सरकार के साथ 1974 के समझौते काे रद्द करके कच्छतिवू द्वीप को वापस लेने की सोच रही है, विदेश मंत्री ने कहा कि इस बारे में उच्चतम न्यायालय में दो याचिकांए लंबित हैं। इसलिए इस न्यायालय के अधीन मामले पर वह कोई टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।

सचिन

वार्ता

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