देहरादून 28 जुलाई (वार्ता) केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में पहली बार उत्तराखंड में आयोजित हिमालयी राज्यों के सम्मेलन में कहा कि केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं में इन राज्यों के विकास कार्य हैं।
श्रीमती सीतारमण ने देहरादून जिले में पहाड़ों की रानी के रूप में विख्यात मसूरी के एक होटल में आयोजित हिमालयी कॉन्क्लेव को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कहा कि निश्चित रूप से यह आयोजन हिमालयी राज्यों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि लम्बे समय से इसकी आवश्यकता महसूस की जा रही थी। हिमालयन राज्य भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन सभी राज्यों का विकास भारत सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों से पलायन को रोकने के लिए विशेष प्रयास करने होंगे। इसमें पंचायतीराज संस्थाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा कर ही पलायन को रोका जा सकता है। सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोग देश की सुरक्षा में आंख और कान का काम करते हैं। इससे सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत होगी। हमे विकास के साथ ही पर्यावरणीय सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि पर्वतीय राज्यों में ऑर्गेनिक कृषि पर फोकस किया जाना चाहिए। इसमें स्थानीय युवाओं को जोड़े जाने की जरूरत है।
श्रीमती सीतारमण ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों के युवाओं के लिए स्टार्ट-अप महत्वपूर्ण हो सकते हैं। इससे पलायन तो रुकेगा ही साथ ही क्षेत्र भी आर्थिक रूप से विकसित होगा। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। विकास योजनाओं को फलीभूत करने के लिए स्थानीय समुदायों के सशक्तिकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सम्मेलन में शामिल राज्यों की ओर से चर्चा किये गये विषयों पर केन्द्र द्वारा गंभीरता से विचार किया जायेगा।
हिमालयन कॉन्क्लेव में गहन मंथन के पश्चात हिमालयी राज्यों ने ‘मसूरी संकल्प’ पारित किया गया। इसमें पर्वतीय राज्यों की ओर से हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने और देश की समृद्धि में योगदान का संकल्प लिया गया। साथ ही, प्रकृति प्रदत्त जैव विविधता, ग्लेशियर, नदियों, झीलों के संरक्षण का भी प्रण लिया गया। भावी पीढ़ी के लिए लोककला, हस्तकला, संस्कृति आदि का संरक्षण किया जाएगा। पर्वतीय संस्कृति की आध्यात्मिक परम्परा के संरक्षण और मानवता के लिए कार्य करने का संकल्प लिया गया। समानता व न्याय की भावना के साथ पर्वतीय क्षेत्रों के सतत विकास की रणनीति पर काम किया जाएगा। पर्वतीय सभ्यताओं के महान इतिहास व विरासत के संरक्षण का संकल्प लिया गया।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सममेलन में आए प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि हमें गर्व हैजो हिमालय राज्यों के सम्मेलन की मेजबानी का अवसर प्राप्त हुआ है यह राज्य के लिए सम्मान की बात है।
पंद्रहवें वित आयोग के अध्यक एन.के. सिंह ने कहा कि अपनी साझा समस्याओं को रखने व उनके हल के लिए नीति निर्धारण में यह एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म साबित होगा। केन्द्र भी हिमालयी राज्यों के साथ है। वित आयोग, हिमालयी राज्यों की समस्याओं से भलीभांति अवगत है। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में उठायी गयी बातों से वित्त आयोग भी सहमत है। इन समस्याओं को दूर करने के लिए संवैधानिक दायरे में हर सम्भव प्रयास किया जाएगा। हिमालयी राज्य वैश्विक पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं। यहां जीवन स्तर को सुधारने के लिए क्या सिस्टम बनाया जा सकता है, इस पर विचार किया जाना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में जीवन अत्यंत कठिन होता है। यहां की समस्याएं अन्य राज्यों से अलग हैंं। उन्होंने पर्वतीय क्षेत्रों में रेल अौर हवाई कनैक्टीविटी विकसित किये जाने की आवष्यकता बतायी। छोटे राज्यों के सीमित संसाधनों को देखते हुए केन्द्र द्वारा वित्तीय सहायता में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि कि हिमालयी राज्यों में विकास की बहुत संभावनाएं हैं। इसके लिए हमें टारगेट सेट करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि पर्यटन की संभावनाओं की दृष्टि से भी सभी हिमालयन राज्य बहुत ही समृद्ध हैं। अभी यहां घरेलू पर्यटकों की अधिकता है। पर्यटन को और अधिक तेजी से विकास करने के लिए अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित किया जाना बहुत ही जरूरी है। वैल्यू एडेड एग्रीकल्चर को प्रोत्साहित करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि लक्ष्यों को निर्धारित कर समयबद्ध तरीके से योजनाओं का क्रियान्वयन करना जरूरी है।
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड के संगमा ने कहा कि हिमालयी राज्यों में विकास योजनाओं की लागत अधिक होती है। इसलिए केन्द्र की ओर से विभिन्न विकास योजनाओं के मानकों में इस ओर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास व पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाये रखना, हिमालयी राज्यों की दोहरी जिम्मेदारी होती है। हमें सतत विकास के लिए रिस्पोंसिबल टूरिज्म पर फोकस करना होगा। उन्होंने पर्वतीय राज्यों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आवष्यकता पर बल दिया।
नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो ने सम्मेलन को बेहतर शुरूआत बताते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका संवर्द्धन व इको सिस्टम के महत्व पर जोर दिया।
अरूणाचल के उप मुख्यमंत्री चोवना मेन ने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं के विकास पर विषेष ध्यान देना होगा।
मिजोरम के मंत्री टी.जे.लालनुनल्लुंगा ने अपने सम्बोधन में प्राकृतिक आपदा, जैव विविधता संरक्षण में स्थानीय लोगो की भागीदारी और डिजीटल कनैक्टीविटी पर जोर दिया।
केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेष्वरमन अय्यर ने जल शक्ति अभियान पर प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने जल संरक्षण में स्प्रिंगषेड मैनेजमेंट को प्रभावी ढंग लागू करने की बात कही। इसमें पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक का समन्वय उपयोगी सिद्ध होगा। जमींनी स्तर पर पैरा हाइड्रोलॉजिस्ट तैयार किये जाने की संभावनाओं पर भी विचार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड में ट्रेंच/खांटी के माध्यम से जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों की प्रधानमंत्री ने सराहना की है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य कमल किशोर ने डिजास्टर रिस्क मैंनेजमेंट पर प्रस्तुतिकरण देते हुए पर्वतीय क्षेत्रों में वहां की परिस्थितियों के अनुरूप भवन निर्माण पर जोर दिय जाने की बात कही।
सिक्किम के मुख्यमंत्री के सलाहकार डॉ. महेन्द्र पी.लामा ने केन्द्रीय सहायता में ईको सिस्टम सर्विसेज को विषेष भार दिये जाने की बात कही।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के सलाहकार के.के.शर्मा, आई.आई.एफ.एम. की डॉ. मधु वर्मा तथा सुशील रमोला ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
उत्तराखण्ड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज, मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, सचिव वित्त अमित नेगी, अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश, डी.जी.पी. अनिल रतूड़ी, सचिव सौजन्या, अपर सचिव सोनिका, महानिदेशक सूचना डॉ. मेहरबान सिंह बिष्ट सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।
सं.संजय
वार्ता