नयी दिल्ली, 11 जुलाई(वार्ता) आबादी के मामले में चीन को पछाड़ कर विश्व में नंबर एक बनने की ओर बढ़ रहे हमारे देश में जहां युवाओं को रोजगार के पूरे अवसर नहीं मिल पा रहे हैं वहीं बुजुर्ग अपने जीवन की गाड़ी चलाने और जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिये फिर से काम करना चाहते हैं। देश के 25 राज्यों के 300 जिलों में बुजुर्गों के बीच में हाल में कराये गये एक सर्वेक्षण से सामने आया है कि हर पांच में से तीन बुजुर्ग अपनी आमदनी बढ़ाने के लिये रोजगार चाहते हैं। ऐसा इसलिये कि बहुतों के पास रोजाना का खर्च चलाने के लिये पर्याप्त धन नहीं है तो कइयों को जिम्मेदारियां पूरी नहीं हुयी है । कुछ ऐसे भी हैं जो अपना समय काटने के लिये काम करना चाहते हैं। यह पाया गया कि सेवानिवृत के समय(55 से 60 वर्ष) बहुत अच्छे ढंग से कामकाज कर रहे व्यक्ति अचानक एक दिन वह ‘बेकार’ हो जाते है। बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिन्होंने सेवानिवृत के बाद की जिंदगी के लिये पहले से पूरी योजना बना रखी होती है। सेवानिवृत होने वाले व्यक्तियों की जो परेशानियां सामने आयी हैं। उनमें से किसी के बच्चे कामकाज में नहीं लगे होते हैं तो किसी की बेटी की शादी होनी बाकी है। किसी के परिवार के सदस्य का इलाज चल रहा है तो कोई मुकदमेबाजी में फंसा है। किसी के पास पर्याप्त बचत नहीं है तो किसी के पास रहने को घर नहीं है। ऐसे में वह काम करके अपनी आमदनी बढ़ाना चाहते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इनमें से ज्यादातर मानसिक और शारीरिक रुप से स्वस्थ होते हैं और उन्हें पूरे दिन खाली बैठना रास नहीं आता। ऐसे में उन्हें लगता है कि काम मिलने से उनका समय बेहतर ढंग से कट जायेगा।
बुजुर्गों के बीच काम कर रही संस्था एजवेल फाउंडेशन द्वारा कराये गये सर्वे में 59 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि वे अपने खर्चे पूरे करने के लिये फिर से काम करना चाहते हैं। काम चाहने वाले बुजुर्गों की संख्या शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र में अधिक है। तीन चौथाई बुजुर्गों का कहना था कि खर्च पूरा करने के लिये उन्हें और अधिक धन की जरुरत है। इस सर्वे में 15000 पुरुष और महिला बुजुर्गों से बातचीत की गयी । उनमें से हर दूसरे का कहना था कि उनका जीवन पूरी तरह बच्चों या परिवार के अन्य सदस्यों पर आश्रित है। सर्वे में पाया गया कि ग्रामीण क्षेत्र में 51 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्र में 49 प्रतिशत बुजुर्ग अपने परिवार पर आश्रित हैं। शहरी क्षेत्र के सिर्फ एक चौथाई (26 प्रतिशत) ने कहा कि वे अपने परिवार के बिल्कुल नहीं या थोड़ा बहुत सहारे हैं। आमदनी के बारे में पूछे जाने पर सिर्फ एक तिहाई ने कहा कि उनके पास बुढ़ापे के लिये पर्याप्त धन है जबकि दो तिहाई का कहना था कि उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं है। एक चौकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि सर्वे में शामिल 40 प्रतिशत बुजुर्गों को सरकार तथा अन्य संस्थाओं द्वारा उनके लिये चलायी जा रही वित्तीय योजनाओं की उन्हें जानकारी नहीं है। केवल 22 प्रतिशत का कहना था कि उन्हें इसकी अच्छी जानकारी है जबकि 37 प्रतिशत का कहना था कि उन्हें थोड़ी बहुत जानकारी है। आधे से अधिक बुजुर्गों का कहना था कि वे वरिष्ठ नागरिकों की निवेश और बचत योजनाओं से संतुष्ट नहीं है। पाँच में से एक बुजुर्ग ही इनसे संतुष्ट नजर आया।