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खास है सुगंधित अप्पेमिडी आम का अचार

खास है सुगंधित अप्पेमिडी आम का अचार

नयी दिल्ली 21 जुलाई (वार्ता) अलग अलग तरह की खुशबू से भरपूर अप्पेमिडी आम का बना अचार न केवल दुनिया भर में प्रसिद्ध है बल्कि इसका करोड़ो रुपये का कारोबार होता है।

अप्पेमिडी के अचार की खासबात यह है कि इसमें आम की सुगंध हावी होती है क्योंकि यह आम अत्यधिक सुगंधित होता है। जीरा , कपूर और नारंगी के तेज सुगंध वाले अप्पेमिडी आचार की विशेषता है कि इसे पांच साल से अधिक समय तक बिना किसी रसायन के सुरक्षित रखा जा सकता है।

अप्पेमिडी आम के विशिष्ट किस्मों का भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद -केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) लखनऊ में मूल्यांकन किया गया है । इसके पौधे को उत्तरी कर्नाटक के पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाये जाने वाले अप्पेमिडी पेड़ों से कलम लाकर तैयार किये गए हैं ।

संस्थान की वैज्ञानिक डॉ. वीना गौड़ा ने अपनी डॉक्टरेट की उपाधि के लिये अप्पेमिडी आम पर 2013 सं 2018 तक शोध कार्य किया था। कर्नाटक राज्य के चिकमगलूर जिले में विविधता क्षेत्र में एप्पेमिडी आमों का एक सर्वेक्षण किया गया था जिसमें लगभग 40 किस्म के अप्पेमिडी एकत्र किये गये। इनकी सुगंध विशेषता थी। चालीस तरह के इन आमों में से ‘कुदिगे‘ और ‘अर्नुरू‘ किस्म को स्वाद में सबसे अच्छा पाया गया। इन आमों पर किये गये शोध से पता चला है कि इनमें अनेक प्रकार के अनूठे स्वाद और सुगंधित वाष्पशील यौगिक मौजूद है जो इनकी किस्म को दुर्लभ एवं अद्वितीय बनाते हैं।

अप्पेमिडी आम सामान्य आम से कुछ अलग होता है। यह गोल, तिरछे या लंबे होते हैं लेकिन अधिकांश किस्में तेज सुगंध के साथ छोटे आकार की होती हैं। किस्मों के कई समूह सुगंध के आधार पर बनाये जाते हैं। एक समूह में सुगंध जीर (जीरा), कुछ में कपूर जैसी गंध और कई में कच्ची नारंगी की महक होती है। इन किस्मों में सामान्य आम का स्वाद नहीं होता है। फलों से लगी डंठल मोटी, बीज छोटे और आम तौर पर लंबे फलों के आकार के साथ स्वाद में ये किस्में अत्यधिक खट्टी होती है। खट्टापन इन किस्मों को ताजे फल के रूप में इस्तेमाल करने के लिए अनुपयुक्त बना देता है।

संस्थान के निदेशक शैलेन्द्र राजन के अनुसार अप्पेमिडी शब्द की उत्पत्ति कन्नड़ से हुई है जिसमें ‘मिडी’ का अर्थ होता है ‘कोमल आम’। इसके आम में गुठली बनने से पहले ही आचार बना दिया जाता है। देश में सामान्यतः आम में गुठली बन जाने के बाद ही आचार बनाया जाता है। अचार के लिए उत्तर भारत में अत्यधिक इस्तेमाल होने वाले राम केला और बंगाल में अश्विन जैसी किस्मों की तुलना में अप्पेमिडी के आम बहुत ही छोटे होते हैं। इसकी अनुपम सुगंध के कारण उपभोक्ता इसे बेहद पसंद करते हैं। इस तरह के सुगंधित आम के अचार के लिये लोग अच्छी धन राशि का भुगतान करने के लिए तैयार रहते हैं।

भारत एक से एक अनूठे आम की विविधता वाले देश के रूप में जाना जाता है। आम का भारतीय अचार भी विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ हजारों टन आम का अचार घरेलू और व्यावसायिक स्तर पर तैयार किया जाता है। हिंदुस्तान में हजारों आम की किस्में हैं तो अचार बनाने की विधियाँ भी अनेक हैं। सामान्य तौर पर आम के अचार में इस्तेमाल किये जाने वाले मसालों और आम के मिश्रण के उत्पन्न सुगंध से मन मोहित होता है। अचार में आम की सुगंध मसालों के साथ मिलकर दब जाती है।

अप्पेमिडी आमों को ज्यादातर वन क्षेत्र या नदी के किनारे उगने वाले विशालकाय आम के पेड़ों से प्राप्त किया जाता है। अधिक दोहन के कारण इसकी अनेक किस्में विलुप्त होने के कगार पर हैं। फल के लालच में लोग टहनीयों को ही काट देते हैं। इन अनोखे अचार के आम के महत्व को महसूस करते हुए कई नर्सरियाँ कलमी पौधे बनाने के लिए सामने आयी हैं। इन किस्मों को ग्राफ्टिंग के माध्यम से बढ़ाया जा रहा है।

आई.सी.ए.आर.-बागवानी संस्थान बैंग्लुरू में 150 से अधिक किस्मों का संरक्षण किया गया है जबकि सिरसी के वानिकी कॉलेज ने भी इन सुगंधित अचार वाले आमों के संरक्षण में महत्वपूर्ण प्रयास किये हैं।

अप्पेमिडी आम में विविधता विशेष रूप से कर्नाटक के पश्चिमी घाट क्षेत्र में देखी जा सकती है। यह क्षेत्र इस आम के अचार के प्रकारों के लिये प्रसिद्ध है। यहाँ के अप्पेमिडी अचार को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग प्राप्त है। अप्पेमिडी एक सामान्य किस्म नहीं है इसकी सुगंध इतनी तीव्र होती है कि साधारण अचार में सिर्फ कुछ कोमल फल मिलाने से अचार के स्वाद के साथ-साथ सुगंध भी बदल सकती है।

अरुण.संजय

वार्ता

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