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लोकरुचि


इंसान इंसान को ढोता है जहां,ये कोलकाता है मेरी जां

इंसान इंसान को ढोता है जहां,ये कोलकाता है मेरी जां

कोलकाता. 16 जुलाई (वार्ता) ‘सिटी ऑफ जॉय’ के नाम से मशहूर कोलकाता की शान में दाग बन चुके हाथ रिक्शों का अमानवीय दस्तूर मौजूदा दौर में अब धीरे धीरे खत्म हो रहा है। कलकत्ता (अब कोलकाता ) में हाथ रिक्शा की विरासत ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रभाव से मिली है। मानसून के दौरान शहर में पानी से भरी सड़कों पर जब बस, ट्राम, टैक्सी और मोटरसाइकिल चल नहीं सकती , तब यह रिक्शा ही लोगों को एक से दूसरी जगह पहुंचाने में उपयोगी साबित होता है। विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों वाले इस शहर के वासियों ने देर-सबेर ही महसूस किया कि पेट की भूख मिटाने के लिए हाथ रिक्शा खींचते एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को ढोने की यह मजबूरी किसी अमानवीयता से कम नहीं है। समाजसेवी और मानवाधिकार समर्थक पहले से ही इसे इंसानियत के खिलाफ बताकर इस व्यवस्था को समाप्त करने की वकालत करते रहे हैं। अब ये रिक्शे कहीं-कहीं ही दिखाई पड़ते हैं। हाथ रिक्शा समयांतर में फिल्मों और साहित्य का भी हिस्सा रहा है। वर्ष 1953 में बंगाली फिल्म निर्माता -निर्देशक विमल राय ने ‘दो बीघा जमीन’ फिल्म बनायी थी। फिल्म में गरीबी और कर्ज की विभीषिका झेल रहे किसान की भूमिका का अदाकार बलराज साहनी कलकत्ता पहुंचता है और जीविकोपार्जन के लिए एक इंसान होते हुए दूसरे इंसान को हाथ रिक्शा के जरिए ढोेने का काम करता है। कसावट से परिपूर्ण निर्देशन और बलराज साहनी के भावपूर्ण अभिनय ने मानवीय विवशता की पराकाष्ठा को बहुत संजीदगी से पेश किया था। प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखक डोमीनिक लेपियरे ने ‘ सिटी ऑफ जॉय ’ शीर्षक से लिखे अपने उपन्यास में भी हाथ रिक्शा और इसे खींचने वाले लोगों का जिक्र किया है। वर्ष 1992 में प्रदर्शित और संजीदा अभिनय के लिए मशहूर ओम पुरी अभिनीत फिल्म ‘ सिटी ऑफ जॉय ’ हाथ रिक्शा चलाने वालों के जीवन दर्शन को दोहराती है। चमक दमक से भरे इस महानगर की जीवनशैली में व्यापक बदलाव लाने वाले ट्राम,मेट्रो, ई-रिक्शा जैसे सावर्जनिक परिवहन साधनों की उपलब्धता के बावजूद हाथ रिक्शा अभी भी विवशता की गलियों में चलते दृष्टिगोचर होते हैं। एक समय उत्तरी कोलकाता में आवागमन का प्रमुख साधन रहा हाथ रिक्शा मानवाधिकार के हिमायतियों की आलोचना के दायरे में रहा है। वर्तमान में सायकिल रिक्शा, आटोरिक्शा और ई-रिक्शा ने हाथ रिक्शा का स्थान ले लिया है। हालांकि कोलकाता के पारंपरिक इलाके माने जाने वाले कालेज स्ट्रीट, कालीघाट, भवानीपुर, होग मार्केट,बाउबाजार, श्यामबाजार, बालीगंज और अमहेर्स्ट स्ट्रीट की गलियों में अभी हाथ रिक्शा चलते हैं।


वर्ष 2006 में राज्य की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने इस आधार पर हाथ रिक्शा के चलन पर प्रतिबंध लगा दिया था कि जहां यह मानवीयता के विपरीत पहलू को प्रदर्शित करता है वहीं कोलकाता का जनमानस भी अब यहां इंसान को ही इंसान को ढोते देखने का पक्षधर नहीं है। वर्तमान में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस सरकार ने भी इन हाथ रिक्शा को सड़कों और गलियों से हटाना शुरु कर दिया है, हालांकि इस ने तत्कालीन वामा मोर्चा सरकार के फैसले का उस समय विरोध किया था। कोलकाता नगर निगम ने करीब छह हजार रिक्शा चालकों को परिचयपत्र देने की योजना बनायी है। मेयर शोभन चट्टोपाध्याय ने कहा, “ हम शहर के रिक्शा चालाकों को परिचयपत्र जारी करने की योजना बना रहे हैं, ताकि उन्हें किसी प्रकार की प्रताड़ना का सामना न करना पड़े। ” आल बंगाल रिक्शा एसोसिएशन के एक पदाधिकारी ने रिक्शा चालकों को परिचयपत्र दिए जाने की पहल का स्वागत किया और कहा, “ यह एक स्वागत योग्य कदम है। हाथ रिक्शा पर प्रतिबंध लगाये जाने से हम अपनी आजीविता को लेकर अनिश्चितता के माहौल में जी रहे हैं। अदालत ने हालांकि प्रतिबंध पर स्थगन दिया है, लेकिन हमारे लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया है। ” उन्होंने कहा, “ हमने दीदी ( ममता बनर्जी ) को एक ज्ञापन दिया है और उम्मीद है कि कोई सकारात्मक परिणाम सामने आएगा। ” हाथ रिक्शा खींचने वालों के पुनर्वास के लिए काम कर रहे एक गैर सरकारी संगठन ने भी इन्हें परिचयपत्र दिए जाने की योजना का स्वागत किया है। एनजीअो कार्यकर्ता कनक गांगुली ने कहा, “ हाथ रिक्शा चालकों के लिए परिचयपत्र ही नहीं बल्कि उनके लाइसेंस भी नवीनीकृत होंगे और वे पुलिस द्वारा प्रताड़ित नहीं होंगे।” टंडन.जय.संजय वार्ता

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