नयी दिल्ली, 26 अगस्त (वार्ता) पर्यटन मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने सोमवार को कहा कि आने वाली पीढ़ी तर्क की दुनिया में जीवन यापन करना चाहती है और तथ्यपरक साहित्य के माध्यम से उसे तथ्यों से अवगत कराना जरूरी है।
श्री पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लेखक सूर्यकांत बाली की पुस्तकों ‘भारत की राजनीति का उत्तरायण’ और ‘भारत का दलित विमर्श’ के लोकार्पण के मौके पर यह बात कही। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यदि आने वाली पीढ़ी को तथ्यों को जानना है और क्रम को तोड़ना है तो तथ्यपरक साहित्य की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि तथ्यपरक बातें हमारे सामने आनी चाहिये। आने वाली पीढ़ी तर्क की दुनिया में जीवनयापन करना चाहती है। उनके हाथों में कुछ ऐसा देना चाहिये कि वे अपनी संस्कृति को पहचान सकें। श्री पटेल ने कहा कि जब हम धर्म को धारण करेंगे तो हमारे अस्तित्व को कोई नहीं मिटा सकता।
श्री बाली ने कहा कि उत्तरायण शुद्ध काल का प्रतीक है, जब सब अच्छा ही अच्छा हो रहा हो। उन्होंने कहा कि भारत का दक्षिणायण तब 712 ईस्वी में शुरू हुआ जब मोहम्मद बिन कासिम ने भारत में इस्लाम को थोपने की योजना तैयार की थी और दुबारा उत्तरायण तब आया जब 1925 में आरएसएस की स्थापना हुई।
आरएसएस के सह-सरकार्यवाहक कृष्ण गोपाल ने पुस्तकों का लोकार्पण करने के बाद कहा कि देश पर ग्रीक, हूण, शक, कुषाण लंबे समय से आक्रमण करते रहे। कई बार हम हारे भी, लेकिन भारत की प्रज्ञा, भारत का अंतरमन, भारत का आध्यात्म नहीं हारा। इस्लामी आक्रमणकारी इस मायने में अलग थे कि वे सिर्फ राजनीतिक जीत से ही संतुष्ट नहीं होते थे। वे हारने वाली सेना को इस्लाम कुबूल कराते थे, नहीं तो मार देते थे। इसके बावजूद देश ने अपनी सभ्यता को मिटने नहीं दिया। उन्होंने कहा कि हिंदू के रहने से भारत रहता है और हिंदू के न रहने से भारत समाप्त हो जाता है।
दलितों के बारे में उन्होंने कहा कि पहले भारती समाज में कोई दलित या अस्पृश्य नहीं था। बाद में कुछ कारणों से अनुसूचित जाति के लोगों के साथ अन्याय हुआ। लेकिन अब उसके लिए किसी को दोष देने से अच्छा है कि भूल को सुधारने पर ध्यान दिया जाये।
श्री बाली ने कहा कि भारत भले ही मुस्लिम या क्रिसचन गुलामी से मुक्त हो गया हो, लेकिन पश्चिम परस्ती गुलामी में हम अब भी जी रहे हैं। उन्होंने युवाओं से इस गुलामी को तोड़कर भारत से जुड़ने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि देश में धर्मांतरण, पर्दा प्रथा और अस्पृश्यता जैसी कुप्रथाओं की शुरुआत इस्लाम के आने के बाद हुई तथा इनके लिए भारतीय हिंदू समाज को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।