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जंगम जोगी, शिव का गुणगान करते बने है आकर्षण का केन्द्र

जंगम जोगी, शिव का गुणगान करते बने है आकर्षण का केन्द्र

कुम्भ नगर, 25  जनवरी (वार्ता) दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुम्भ मेले में कुछ साधु-संत अपने स्वरूप एवं विशेषता के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं वहीं जंगम जोगी भी सिर पर मोर मुकुट बांध भगवान शिव का गुणगान कर लाखों की भीड़ में अपनी अलग अलख जगा रहे हैं।

     सिखों से मिलती-जुलती वेशभूषा, सिर पर दशनामी पगड़ी के साथ काली पट्टी पर तांबे-पीतल से बने गुलदान में मोर के पंखों का गुच्छा, सामने की ओर ‘सर्प निशान’ के अतिरिक्त कॉलर वाले कुर्ते पहने और हाथ में खझड़ी, मजीरा, घंटियां लिए साधुओं का दल अखाड़ों की छावनी में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यह परंपरा जंगम की संस्कृति कला है।

    गुलाब जंगम डेरू ने बताया कि कि जंगम ‘कलियुग’ के देवता होते हैं। जंगम जोगियों की टोली सुबह से ही दशनामी अखाड़ों के संतों के शिविरों में समूह बनाकर जाते हैं और भगवान शिव के गीत गाते है। जंगम की सूर्य स्वरूप अखाड़े के साधु -महात्मा दर्शन करते हैं। उन पर कोई ऐक रूपया,कोई लाख तो कोई पान-फूल चढाता है जिसे वह घंटी में ग्रहण करते हैं।

    उन्होने बताया कि जंगम संप्रदाय के देशभर में करीब पांच हजार गृहस्थ संत हैं। वे देशभर के अखाड़ों में घूमते हैं और वहां शिव गुणगान करते हैं। इनकी सबसे ज्यादा संख्या गुजरात ,पंजाब और हरियाणा में हैं। चढायी गयी दक्षिणा को  वे अच्छे कार्यो में लगाते हैं। वे इन पैसो से गरीब लडकियों की शादी, मंदिरों का पुनरूद्धार समेत कई अन्य अच्छे कार्यों में खर्च करते है।

    जोगी डेरू ने  बताया कि मान्यता है कि  भगवान शिव ने कहा था कि कभी माया को हाथ में नहीं लेना, इसलिए दान भी हाथ में नहीं लेते। हाथ में घंटी जिसे उलट कर उसमें दक्षिणा लेते हैं। घंटी में दक्षिणा लेने की अपनी एक लम्बी कहानी है।

     उन्होंने बताया ऐसी मान्यता है कि जंगम जोगियों की उत्पत्ति शिव-पार्वती के विवाह में हुई थी। जब भगवान शिव ने भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा को विवाह कराने की दक्षिणा देनी चाही तो उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। तब भगवान शिव ने अपनी जांघ पीटकर जंगम साधुओं को उत्पन्न किया। उन्होंने ही महादेव से दान लेकर विवाह में गीत गाए और शेष रस्में पूरी कराई।

     जंगम जोगियों का स्वरूप बहुत ही अलग होता है, इसलिए ये लोगों के आकर्षण का केंद्र भी होते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव के विवाह में जंगमों ने ही गीत गाने के साथ अन्य रस्में भी निभाई थी, जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें मुकुट और नाग प्रदान कर दिया। माता पार्वती ने कर्णफूल दिए, नंदी ने घंटी दी, विष्णु ने मोर मुकुट दिया और ब्रहम जी ने जनेऊ दिया। इससे इनका स्वरूप बना। इसलिए इन्हें कलियुग देवता कहा जाता है। तभी से ये शैव सम्प्रदाय के अखाड़ों में जाकर संन्यासियों के बीच शिवजी का गुणगान करते आ रहे हैं। ये सफेद और केसरिया कपड़े पहनते हैं।

      मूलत: शैव संप्रदाय से जुड़े जंगम साधुओं का डेरा-फेरा शैव अखाड़ों के शिविरों के ही इर्द-गिर्द है। संगम की रेती पर नागा संन्यासियों संग संतों-महंतों, महांडलेश्वरों की निराली दुनिया के बीच भजन करके जंगम साधु शिवनाम की अलख जगाने में जुटे हैं।

       जंगम साधु अपनी अलग, अनूठी अभिनय संवाद शैली में अखाड़ों की गौरव गाथा के साथ ही शिव की कथा भी अत्यंत रोचक तरीके से सुनाते हैं। इनका काम दशनाम संन्यास की परंपराओं का गुणगान करना है। ये पूर्वजों से लेकर अब तक की कहानी इस तरह गाते हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध होकर बस सुनता ही रहे।

        जंगम जोगियों के परिवार में बचपन से ही बच्चों को शिवपुराण, शिव स्त्रोत आदि याद कराए जाते हैं। जंगम जोगियों के परिवार के सदस्य ही इस परंपरा  को आगे बढ़ा सकते हैं। किसी बाहरी व्यक्ति इस परंपरा में शामिल नहीं हो सकता।

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