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किशनगंज : चुनावी चौका लगाने की तैयारी में कांग्रेस, जदयू और एआईएमआईएम प्रत्याशी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगे

किशनगंज : चुनावी चौका लगाने की तैयारी में कांग्रेस, जदयू और एआईएमआईएम प्रत्याशी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगे

पटना, 21 अप्रैल (वार्ता) बिहार लोकसभा चुनाव 2024 में किशनगंज संसदीय सीट पर इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव अलायंस (इंडिया गठबंधन) के घटक कांग्रेस जहां चुनावी चौका लगाने के प्रयास में है वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक जनता दल यूनाईटेड (जदयू) और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रत्याशी मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं।

किशनगंज संसदीय सीट के अस्तित्व में आने के बाद से यह कांग्रेस का गढ़ रहा है। कांग्रेस प्रत्याशी यहां से नौ बार जीत का सेहरा अपने सिर पर बांध चुके हैं। हालांकि बीच के कुछ चुनाव में किशनगंज सीट कांग्रेस के ‘हाथ’ से फिसल गयी। लेकिन, वर्ष 2009 से 2019 तक यहां लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा है। इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस किशनगंज सीट पर चुनावी चौका लगाने की फिराक में है वहीं जदयू और एआईएमआईएम उसके विजयी पथ पर रोड़ा अटकाने में लगे हैं और सियासी जंग को त्रिकोणीय बना रहे हैं।

किशनगंज लोकसभा क्षेत्र ने देश की कई बड़ी हस्तियों को सांसद बनाकर दिल्ली भेजा। चाहे सैयद शहाबुद्दीन हो या वरिष्ठ पत्रकार एम. जे. अकबर या सैयद शाहनवाज हुसैन अलग-अलग पार्टियों से मैदान में उतरे इन तीनों नेताओं को किशनगंज ने पहचान दी थी। पहली बार किशनगंज से चुनावी मैदान में उतरे इन तीनों नेताओ में सैयद शहाबुद्दीन और एम. जे. अकबर पहली बार में ही संसद पहुंचे वही सैयद शाहनवाज हुसैन को दूसरी बार मौका मिला लेकिन तीनों दूसरी बार संसद नहीं पहुंच पाए।

बाहरी लोगों का भी किशनगंज की आवाम ने दिल खोलकर स्वागत किया। चाहे लखन लाल कपूर हों या सैयद शहाबुद्दीन अथवा वरिष्ठ पत्रकार एम. जे. अकबर या फिर सैयद शाहनवाज हुसैन। किशनगंज की आवाम ने इन दिग्गजों को न सिर्फ हाथों हाथ लिया बल्कि दिल में भी बसाया। जीतने वाले इन सांसदों ने भी अपना वादा निभाया और किशनगंज की माटी का कर्ज अदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

किशगनंज 14 जनवरी 1990 में जिला बना। जिला बनने से पहले किशनगंज, पूर्णिया जिले का अनुमंडल था। जिला बनाने का श्रेय तत्कालीन सांसद एम. जे. अकबर को जाता है। महज डेढ़ साल में अपने कार्यकाल में उन्होंने किशनगंज को दो बड़ी सौगात दी, पहला किशगनंज को जिला बनाकर एवं दूसरा किशनगंज के रास्ते कटिहार-सिलीगुड़ी के रास्ते इंटरसिटी एक्सप्रेस के रूप में।आजादी से अबतक यहां से सिर्फ एक बार 1967 में गैर मुस्लिम लखन लाल कपूर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से सांसद चुने गए थे। इसके पहले और बाद में भी कोई हिंदू यहां से नहीं जीत पाया।

किशनगंज लोकसभा सीट वर्ष 1957 में अस्तित्व में आया। वर्ष 1957 में किशनगंज लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद ताहिर ने जीत हासिल की। वर्ष 1962 के चुनाव में मोहम्मद ताहिर फिर जीते। वर्ष 1967 के चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार लखन लाल कपूर ने कांग्रेस प्रत्याशी मोहम्मद ताहिर को मात दे दी। वर्ष 1971 में कांग्रेस ने फिर वापसी की। कांग्रेस प्रत्याशी जमीलुर रहमान ने जीत हासिल की। वर्ष 1977 में यहां भारतीय लोकदल (बीएलडी) उम्मीदवार हलिमुद्दीन अहमद ने कांग्रेस के जमीलुर रहमान को पराजित किया। वर्ष 1980 में इंदिरा कांग्रेस के जमीलुर रहमान ने जनता पार्टी प्रत्याशी हलिमुद्दीन अहमद को शिकस्त दी।

वर्ष 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी जमीलुर रहमान ने जीत हासिल की। लोकदल के मोहम्मद मुश्ताक दूसरे, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ताराचंद तीसरे और जनता पार्टी के तस्लीमुद्दान चौथे नंबर पर रहे। सड़क दुर्घटना में तत्कालीन सांसद जमीलुर रहमान के निधन के बाद किशनगंज में वर्ष 1985 में उपचुनाव कराये गये। इस चुनाव में कांग्रेस ने मोहम्मद असरारुल हक क़ासमी को मैदान में उतारा। श्री कासमी पहली बार चुनावी मैदान में उतरे थे। वही उनके सामने पूर्व भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) अधिकारी सैयद शहाबुद्दीन जनता पार्टी के टिकट पर मैदान में थे। इस चुनाव में सैयद शहाबुद्दीन ने मोहम्मद असरारुल हक को पराजित कर दिया और अपनी संसदीय पारी का शानदार आगाज किया। सैय्यद शहाबुद्दीन को ‘शाहबानो’ केस से संबद्ध होने के मामले और ‘बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी’ के बड़े नेता के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से सैयद शहाबुद्दीन का नामांकन पत्र रद्द हो गया था।

नब्बे के दशक के अंतिम वर्ष में वरिष्ठ पत्रकार मोब्बशिर जावेद अकबर (एम.जे.अकबर) राजीव गांधी के बेहद क़रीबी माने जाने लगे थे। एम.जे.अकबर उस ज़माने में राजीव की नज़रों में इसलिए भी उभरे थे, क्योंकि वे अपनी पत्रिकाओं और अख़बार में तो कांग्रेस की आलोचना करते रहते थे, लेकिन राजीव गांधी की हमेशा तारीफ़ किया करते थे। एम.जे.अकबर की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी रहीं। सत्ता के ताक़तवर लोगों के बीच उनका उठना बैठना हमेशा रहा है और एक दिन वे राजनीति में चले गए।कांग्रेस से बढ़ती नज़दीकी का ऐसा असर हुआ कि एम.जे.अकबर कांग्रेस के टिकट पर बिहार के किशनगंज से 1989 का चुनाव लड़े और मुस्लिम बहुल्य इलाक़े में वह चुनाव जीतने में कामयाब रहे।

कांग्रेस के एम.जे.अकबर ने निर्दलीय असरारूल हक कासमी को मात दी।एम.जे.अकबर 'ऑनलुकर्स',आनंद बाजार पत्रिका (एबीपी) की पत्रिका 'सन्डे', 'द टेलीग्राफ' ,'द एशियन एज' 'द डेक्कन क्रॉनिकल' ,'द सन्डे गार्डियन' के एडिटर और इंडिया टुडे के एडिटोरियल डायरेक्टर रहे हैं। श्री अकबर राजीव गांधी के प्रधानमंत्री काल में उनके प्रवक्ता थे। बहुचर्चित ‘मी टू’ प्रकरण के विवादों में घिरे एम.जे.अकबर मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी रहे थे।

वर्ष 1991 के आम चुनाव में जनता दल प्रत्याशी सैय्यद शाहबुद्दीन ने दूसरी बार किशनगंज में जीत हासिल की। इस चुनाव में तस्लीमुद्दान का टिकट काट कर सैय्यद शहाबुद्दीन को दिया गया था। वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट से सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले मोहम्मद तस्लीमउद्दीन जनता दल के टिकट से चुनाव जीते थे। वर्ष1991 के लोकसभा चुनाव में पूर्णिया सीट माकपा के खाते में जाने के कारण तस्लीमउद्दीन को किशनगंज भेजा गया। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में तस्लीम साहेब पार्टी के सिंबल आने के इंतजार में रहे उधर नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन और अंतिम क्षण सैयद शहाबुद्दीन जनता दल का सिंबल लेकर किशनगंज पहुंच गये। आखिरकार तस्लीमउद्दीन को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरना पड़ा। चुनावी मैदान में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बड़े नेता सैयद शहाबुद्दीन के अचानक मैदान में आने के बाद उस चुनाव में समूचे देश की निगाहें किशनगंज पर थी। जनता दल के सैयद शहाबुद्दीन विजयी बने ,वही भाजपा के विश्वनाथ केजरीवाल दूसरे और तत्कालीन सांसद और कांग्रेस उम्मीदवार एम.जे.अकबर तीसरे नंबर पर जबकि तस्मीलुद्दीन चौथे नंबर पर रहे।

वर्ष 1996 में जनता दल के मोहम्मद तसलीमुद्दीन सांसद चुने गए थे। वर्ष 1998 में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रत्याशी मोहम्मद तसलीमुद्दीन किशनगंज के सांसद बने। इस चुनाव में समता पार्टी के असरारूल हक कासमी दूसरे जबकि भाजपा के सैय्यद शाहनवाज हुसैन तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 1999 में किशनगंज सीट पर भाजपा का जीत के साथ आगाज हुआ। भाजपा के सैय्यद शाहनवाज हुसैन जीते। राजद के मोहम्मद तसलीमुद्दीन दूसरे और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के असरारूल हक कासमी तीसरे नंबर पर रहे। भाजपा के लिए यह किशनगंज में यह पहली और आखिरी जीत थी। वर्ष 2004 में यहां फिर से राजद ने वापसी की ।राजद के मोहम्मद तसलीमुद्दीन ने भाजपा के सैय्यद शाहनवाज हुसैन को पराजित किया।

वर्ष 2009 में कांग्रेस की टिकट पर मैदान में उतरे असरारुल हक़ कासमी ने सीधे मुकाबले में जनता दल यूनाईटेड -(जदयू) के सैय्यद महमूद अशरफ और राजद के मोहम्मद तसलीमुद्दीन मात दी और पहली बार दिल्ली का सफ़र तय किया। इसके बाद श्री कासमी के जीत का सिलसिला रुका नहीं और 2014 के चुनाव में जहां पूरा देश मोदी लहर में बह रहा था, उस लहर में श्री कासमी ने किशनगंज से रिकॉर्ड मतों से भाजपा उम्मीदवार डा.दिलीप कुमार जायसवाल को हराकर दिल्ली का सफ़र तय किया। इस चुनाव में जदयू के अख्तरूल अमीन तीसरे नंबर पर रहे।

वर्ष 2019 के चुनाव में किशनगंज से कांग्रेस के टिकट पर पूर्व मंत्री मोहम्मद हुसैन आजाद के पुत्र और किशनगंज के तत्कालीन विधायक डॉ. मोहम्मद जावेद चुनाव ने चुनाव लड़ा। उनकी टक्कर (जदयू) के सैय्यद महमूद अशरफ से हुयी। डॉ जावेद ने महमूद अशरफ को पराजित किया।ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिममीन (एआईएमआईएम) प्रत्याशी अख्तरुल ईमान तीसरे नंबर पर रहे थे।

इस बार के चुनाव में कांग्रेस के वर्तमान सांसद डॉ. मोहम्मद जावेद चुनाव फिर से सियासी संग्राम में ताल ठोक रहे हैं, वहीं जदयू ने कोचाधामन के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम को उनके विपक्ष में उतारा है। (एआईएमआईएम) के प्रदेश अध्यक्ष और अमौर के विधायक अख्तरुल ईमान ने सियासी जंग को त्रिकोणीय बना दिया है। किशनगंज लोकसभा चुनाव में हैट्रिक लगा चुकी कांग्रेस इस बार चौथी जीत की आस में मैदान में है। जदयू और एआईएमआईएम के उम्मीदवार भी बेहतर फील्डिंग के जरिए परिणाम अपने पक्ष में मोड़ने को बेताब है। इस सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की तस्वीर है। मतदाताओं का मौजूदा मिजाज प्रत्येक प्रत्याशी की बेताबी को और हवा देने जैसा ही है। इस लोकसभा क्षेत्र में सबसे अलग हवा चुनाव से एक दिन पूर्व बहती है।

किशनगंज में कांग्रेस के किले में सेंध लगाना किसी भी दल के लिए आसान नहीं है। पिछले तीन लोकसभा चुनाव वर्ष 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस के उम्मीदवार ने यहां जीत कर हैट्रिक लगाई है। लोकसभा चुनाव 2019 में बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने कुल 40 में से 39 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। उस दौरान बिहार में इकलौती किशनगंज सीट ही राजग नहीं जीत पायी। इसलिए मुस्लिम बहुल किशनगंज लोकसभा सीट को बिहार में कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। यहां कांग्रेस के मजबूत दुर्ग में सेंध लगाना किसी दूसरे दल के लिए मुश्किल टास्क है।

किशनगंज संसदीय सीट से जदयू, कांग्रेस, (एआईएमआईएम) समेत 12 प्रत्याशी चुनावी मैदान में है। किशनगंज संसदीय क्षेत्र में छह विधानसभा क्षेत्र हैं।इनमें किशनगंज जिले में चार विधानसभा क्षेत्र बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज और कोचाधामन जबकि पूर्णिया में दो विधानसाभा क्षेत्र अमौर और बायसी है। बहादुरगंज, ठाकुरगंज, कोचाधामन और बायसी पर राजद जबकि किशनगंज में कांग्रेस और अमौर में (एआईएमआईएम) का कब्जा है।किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 18 लाख, 29 हजार 994 है। इनमे पुरुष मतदाता की संख्या 945113 है। जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 884815 है। लोकसभा में 66 थर्ड जेंडर के मतदाता भी हैं, जो दूसरे चरण में 26 अप्रैल को होने वाले मतदान में इन 12 प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे।

प्रेम सूरज

वार्ता

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