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करवा चौथ पर सुहागिनों में खरीददारी को लेकर उत्साह

करवा चौथ पर सुहागिनों में खरीददारी को लेकर उत्साह

जयपुर 18 अक्टूबर (वार्ता) समूचे राजस्थान में सुहागिनों का त्यौहार करवाचौथ को लेकर उत्साहित सुहागिनें पिछले एक महीने से अपनी पसंदीदा ज्वैलरी, परिधान, मिट्टी के करवां एवं अन्य सामग्री खरीदने मे व्यस्त हो गयी है। समूचे राजस्थान में कल होने वाले इस त्यौहार को लेकर घर की बुजुर्ग महिलाएं नई नवेली दुल्हनों को करवाचौथ की विशेषता और परंपराओं के बारे में जानकारी दे रही है। विशेषकर करवा चौथ के दिन सवेरे सवेरे होने वाली सरगी को लेकर महिलाये विशेषरूप से उत्साहित है। नयी नवेली दुल्हनों की पहली सरगी होने के कारण अपनी सास की ओर से मिलने वाले नेक को लेकर भी नई नवेली दुल्हनेों में सरगी के प्रति आर्कषण देखा जा रहा है। करवा चौथ के त्यौहार पर महिलायें विशेष रूप से नये परिधान खरीदती है और सोने चांदी के,जेवारात के साथ साथ अन्य सजने सवरने के सामान खरीदने में मशगुल है। त्यौहारों पर विशेष रूप से लाख की चूडियाें की बडी मांग रहती है। जयपुर के मणिहारों के रास्ते में लाख की चूडियों का बडा व्यवसाय होता है जहां इन दिनों सुहागिनें अपनी पसदीदा लाख की चूडियां खरीदने में व्यस्त है। यहां के ख्याति प्राप्त लाख की चूडियों का व्यवसायी बब्बू खां बताते है कि पहले कनाकत के बाद ही घर की बडी बुजुर्ग महिलायें अपनी घर की नयी नवेली दुल्हनों के लिए लाख की चूडियां एवं अन्य सामग्री खरीदती है। वह कहते है कि उनके पिताजी और अन्य परिवार वाले राजा महाराजओं की हवेलियों में उनके रानीयों के लिए लाख के कडे और कुंडल भेट करते थे लेकिन आज के फेशन की दुनिया में लाख की चूडियों को युवा पीडी कम ही पसंद करती है। फिर भी करवा चौथ पर सुहागिनें लाख की चूडियां ही पहनना ज्यादा पसंद करती है। 


        उन्होंने कहा कि पहले वह तीन चोटी की लहरिया चूडियां बनाते थे लेकिन अब यह चार से छह चोटी तक पहुंच गयी है, इन में भी विशेष रूप से सूची कडी चूडियां, सोलह रंग की लहिरया चूडियां महिलायें ज्यादा खरीदना पसंद करती है। करवाचौथ का इतिहास यह कहता है कि बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वह पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। यह जानकर सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है बाद में उसे पता चलता है कि इस गलती के कारण उसके पति का निधन हो गया है और वह बहुत पछताती है। 


         उसके बाद वह निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है, उसकी देखभाल करती है,उसके ऊपर उगने वाली घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो वह उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित करा सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। इस पर उसकी भाभी उससे कहती है कि कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत आता है यह व्रत सुख-सौभाग्य, दांपतत्य जीवन में प्रेम बरकरार रखता है और रोग, शोक व संकट का निवारण करता है। यह व्रत शाम को चंद्र दर्शन के बाद खोला जाता है। इससे एक खास परंपरा भी जुड़ी है। करवा चौथ का चांद हमेशा छलनी से ही देखा जाता है।, यह कहकर वह चली जाती है। यह जानकर करवा करवा चौथ पर उसी रीति रिवाज से व्रत रखती है और अंतत उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। उसके बाद से ही समूचे भारत में करवा चौथ काे सुहागिनों के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। 


 

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